Sonali Misra. कहते हैं गिद्धों का कोई रूप नहीं होता, वह हर तरह से आ जाते हैं, हर मौके पर आ जाते हैं। वह एक बार फिर से सक्रिय हैं, पर इस बार वह रूप बदल कर आए हैं। इस बार वह मदद के नाम पर आए हैं। कुछ लोग जो मदद के नाम पर चीखपुकार मचाए हुए हैं, वह कौन हैं, उनके विषय में जानना आवश्यक है और उनका यह करने का उद्देश्य क्या सकारात्मक है या फिर कुछ मदद के नाम पर फिर से सरकार को कोसकर राजनीतिक अस्थिरता फैलाना? यह समझना अत्यंत आवश्यक है।
वरुण ग्रोवर का नाम हम सभी जानते हैं और हम यह भी जानते हैं कि वरुण ग्रोवर की मानसिकता क्या है? यदि आप रोगियों की सहायता कर रहे हैं, तो यह बहुत अच्छी बात है, पर क्या आपका उद्देश्य मात्र सहायता करना है? आइये कुछ उदाहरणों से समझते हैं।
वरुण ग्रोवर ने कुछ नियम बताए हैं, उसके आधार पर कुछ लोग ग्रुप बनाकर काम कर रहे हैं। मेसेज आते हैं, उन्हें आगे फॉरवर्ड किया जाता है और सहायता दिलाने का दावा किया जाता है? पर यह सहायता किस आधार पर? क्या उन्हें यह वाकई पता है कि कौन मरीज कितना बीमार है? क्या वाकई जरूरत है या नहीं? क्या जो नंबर दिया गया है वह सत्य है या नहीं? यह आशंका वैसे न उपजती, पर यह आशंका उपजी, जब राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य सेवा न सम्हाल पाने का ठीकरा भी केंद्र सरकार और सबकी नफरतों का केंद्र नरेंद्र मोदी पर फोड़ा जा रहा है।
इतना ही नहीं सरकार को ऐसे दिखाया जा रहा है जैसे सरकार ने कुछ नहीं किया है और जो किया जा रहा है वह इन्हीं कॉपी पेस्ट फॉरवर्ड के हाथों हो रहा है। पर एक प्रश्न इस पूरे गैंग से पूछा जाना चाहिए कि आखिर यह लोग किस हैसियत से बेड वगैरह की बातें कर रहे हैं। और अपनी धौंस जमाकर कार्य करवा रहे हैं।
क्या यह माना जाए कि जो व्यक्ति फेसबुक या ट्विटर पर नहीं है, और जिसकी बात ट्विटर पर नहीं है, उसकी हालत कम गंभीर है? क्या वह व्यक्ति जो गाँव से चलकर अपने किसी प्रियजन का इलाज कराने आया है, वह इनके फॉरवर्ड किए गए मेसेज वाले मरीजों की तुलना में कम गंभीर होगा? और इनके द्वारा शोर मचाए जाने पर क्या किसी वाकई में जरूरत मंद व्यक्ति का तो अधिकार नहीं छीना जा रहा है? यह कौन देखेगा?
किसी की सहायता करना दुनिया का सबसे नेक काम है, परन्तु यदि वह अच्छी मंशा के साथ किया जाए, सेल्फ मार्केटिंग के लिए नहीं किया जाए। कुछ ही दिनों पहले तक जो लोग यह कॉपी पेस्ट मेसेज फॉरवर्ड करने वाला गैंग है, वह बिना मास्क के और बिना शारीरिक दूरी के किसानों को समर्थन देने के लिए जा रहे थे और बजाय किसानों को यह समझाने के कि वह अपने अपने गाँव वापस जाएं, उन्हें इस सरकार के खिलाफ उकसा रहे थे। इतना ही नहीं यही गैंग था जिसने 26 जनवरी को हुई हिंसा का समर्थन किया था और हिंसा को सरकार का षड्यंत्र बताया था। यहाँ तक कि हाथरस मामले पर हंगामा भी लगभग इसी गैंग ने किया था।
इस चौकड़ी में कई लोग हैं, पर फिर भी साहित्य जगत से अशोक कुमार पाण्डेय एंड गैंग, जिसमें कई उभरती हुई फेमिनिस्ट लेखिकाएं हैं, जिनमें से अधिकतर अपना परिवार भी सम्हाल नहीं पाई हैं और वह प्रधानमंत्री मोदी पर देश न सम्हालने का आरोप लगाती हैं। मनोरंजन जगत से वरुण ग्रोवर जैसे स्टैंडअप कॉमेडियन हैं। कुछ सिने समीक्षक हैं और कई ऐसे पत्रकार हैं जिनका पहले रसूख बहुत चलता था, मगर मोदी सरकार के आने के बाद उनकी दुकाने बंद हो गयी हैं, वह अपने रसूख का इस्तेमाल करके लोगों को बेड या ऑक्सीजन दिलाना चाहते हैं, मगर अब उनसे पूछ रहे हैं कि आप कौन हैं? कुमार विश्वास का यही दर्द था! खैर!
एजेंडा चलाने वालों की दुकाने सज चुकी हैं, नए नए मॉडल्स से, नए नए कार्टून से!
यह कार्टून कई साहित्यिक समूहों में चल रहा है, कि सरदार पटेल की मूर्ति अधिक आवश्यक थी, पर जिन्होनें यह कार्टून बनाया है, उन्हें यह नहीं पता कि यह घटना किसी भी तरह कोरोना से सम्बन्धित नहीं है। यह वर्ष 2018 की तस्वीर है, पर जो कथित साहित्यकार पकिस्तान के मजदूरों के पैरों को भारत की तस्वीर बताकर भारत को अपमानित कर सकते हैं, वह यह भी कर सकते हैं।
इतना ही नहीं अशोक पाण्डेय नामक साहित्यकार का यह स्क्रीन शॉट भी सोशल मीडिया पर घूम रहा है. यह सत्य है या नहीं इसकी पुष्टि मैं नहीं कर सकती क्योंकि सहिष्णुता की दुकान चलाने वाले और मोदी जी को जम जम कर कोसने वाले माननीय साहित्यकार ने मुझे ब्लाक कर रखा है. इसलिए इनकी वाल पर मैं जा नहीं सकती पर हाँ, चूंकि कई वाल पर मैंने यह स्क्रीनशॉट देखा है तो सत्य होने की संभावना ही प्रतीत होती है। इन्होनें कश्मीरनामा सहित कई अन्य पुस्तकें लिखी हैं और यह लीक हुई क्लब हाउस चैट में भी शामिल थे. अशोक कुमार पाण्डेय इस सरकार के घनघोर विरोधी है, और इन दिनों इधर उधर मेसेज करने का काम कर रहे हैं, टीम के साथ.
और इतना ही नहीं जैसे टूलकिट थ्रेटा ने बनाई थी जो दुर्भाग्य से लीक हो गयी थी, वह शायद प्रयोग में लाई जाने लगी है और जहां नाना और माँ दोनों की मृत्यु को इन्हीं लोगों द्वारा भुनाया जा रहा है। और यही लोग हैं, जो राम मंदिर के विरोध में खड़े थे, और जिनकी हर कविता आदि में और कुछ नहीं केवल राम एवं अन्य देवताओं के लिए गाली होती है, शिवलिंग पर कंडोम चढ़ाया जा रहा होता है, यही लोग हैं जो त्रिशूल को इस प्रकार दिखाते हैं कि सामने वाले के हृदय में जुगुप्सा का भाव जागृत कर दे। और यही लोग हैं, जो कथित उच्च जातियों को भारत की हर समस्या की जड़ बताते हैं और भगवान का अपमान करने के लिए हर क्षण तैयार रहते हैं, और यही लोग हैं, जो अब भेष बदल कर सामने आए हैं।
रविश कुमार जैसे पत्रकार तो दिल्ली, महाराष्ट्र आदि की तरफ से आँखें मूँद कर बैठ गए हैं. वह उत्तर प्रदेश को जैसे नोचने के लिए आ गए हैं! न केवल रविश कुमार बल्कि कथित निष्पक्ष पत्रकार के साथ कथित निष्पक्ष राष्ट्रवादी पत्रकार इस सरकार को नोचने के लिए आ गए हैं.
एक बार फिर से प्रोपोगैंडा युद्ध चालू हो गया है, और अब यह आम जनता पर निर्भर करता है कि वह इस शोर मचाने वाले समूह का शिकार होती है, जिसके निशाने पर हिन्दू है, सरकार है, जिसका एकमात्र लक्ष्य देश में आर्थिक अस्थिरता लाना है, क्योंकि यही वह जमात है जो कभी केजरीवाल से प्रश्न नहीं करती, जो कभी उद्धव ठाकरे से प्रश्न नहीं करते, जो कभी यह प्रश्न नहीं करते कि जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों से कोविड से निपटने की तैयारी के लिए सुझाव मांगे जा रहे थे, उस समय राज्य सरकारों ने सुझाव या कदम क्यों नहीं बताए? यह लोग केरल के आंकड़े छिपाते हैं, और गुजरात को लेकर कोसते हैं।
यह लोग सबसे दोगले लोग हैं, जो हर कीमत पर केवल और केवल इस सरकार के प्रति नफरत से भरे हुए लोग हैं, और इस सरकार को गिराना अंतिम लक्ष्य है। मोदी जी के बाद योगी जी को रोकना इनका लक्ष्य है तभी वह राजस्थान पर शांत है, पंजाब जहां से कल हजारों कथित किसान आन्दोलन के लिए निकले हैं, उस पर शांत हैं और बोल रहे हैं केवल मोदी सरकार पर। इस बात से मंशा समझी जा सकती है।
टुकड़े टुकड़े गैंग एक बार फिर से देश के टुकड़े करने के लिए सक्रिय हो गया है। इसे रोकना अब जनता का कार्य है। इसकी असलियत समझनी ही होगी। क्या यह कांग्रेस की वही नेट की टीम है जिसके बारे में कुछ दिन पहले कहा गया था कि कांग्रेस इतने लोगों को रीक्रूट करेगी? क्या भाजपा की मीडिया टीम का सामना करने के लिए कांग्रेस की टीम अब देश और धर्म के खिलाफ जाकर खड़ी हो जाएगी?
यह प्रश्न देश की जनता भी इन कथित मददगारों से पूछेगी कि उनका लक्ष्य क्या है, सहायता करना या फिर सरकार गिराना?