देश के बड़े अख़बार दैनिक भास्कर के दिवंगत ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक की आत्महत्या के मामले में मंगलवार को बहस के दौरान न्यायाधीश ने ऐसी टिप्पणी की, जो इस अख़बार विश्वसनीयता पर कड़ा प्रहार करती है। न्यायाधीश ने कहा जिस संपादक ने इस अखबार को खून पसीना देकर खड़ा किया, उसकी मौत को भी जब ये लोग सच्चे तरीके से नहीं छाप सकते तो इनकी विश्वसनीयता कहां है। एक ऐसा अख़बार जो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की नींव पर खड़ा हुआ, उसके कंगूरे पर सेकुलरिज्म और राष्ट्र विरोध अट्टाहस कर रहे हैं।
सन 1958 में दैनिक भास्कर बहुत छोटे स्वरूप में शुरू हुआ था। 1983 आते-आते इसने मध्यप्रदेश में अपने पैर पसारना शुरू कर दिए थे। नब्बे के दशक में भास्कर राम जन्मभूमि की शानदार रिपोर्टिंग कर अचानक पाठकों का प्रिय अख़बार बन गया। ये वक्त बाहुबली नईदुनिया के ढहने का समय था और भास्कर के उदय का। जैसे-जैसे इस अख़बार के कदम शिखर पर बढ़ते चले गए, राष्ट्रवाद नदारद होने लगा। सेकुलरिज्म के कोढ़ ने जल्द ही भास्कर को आ घेरा। सन 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद ये अख़बार केवल मोदी और सरकार का विरोधी बनकर रह गया।
पत्रकारों की बेहतरी के लिए आए मजीठिया वेतन आयोग का सारे ही अख़बारों ने विरोध किया लेकिन दैनिक भास्कर ने तो इस प्रकरण में क्रूरता की सीमाएं पार कर दी। कितने ही प्रतिभाशाली पत्रकार प्रताड़ित किये गए। कितनों से इस्तीफे लिखा लिए गए। भास्कर के सैकड़ों कर्मचारी अपने परिवार सहित सड़कों पर आ गए। जिन लोगों ने कोर्ट की शरण ली, उन्हें मजीठिया का पैसा तो मिल गया लेकिन वे भास्कर में नौकरी करने लायक नहीं रहे। स्थापित होने के बाद अख़बार ने उन विश्वासपात्र कर्मचारियों/पत्रकारों पर तलवार चलानी शुरू कर दी, जिन लोगों ने इसे शीर्ष पर लाकर खड़ा किया था।
आज दैनिक भास्कर कई गंभीर प्रकरणों में घिरा हुआ है। भास्कर पर आरोप है कि अपने संस्कार वैली स्कूल के लिए वन विभाग की 35 एकड़ जमीन हड़प कर निर्माण करवा दिया। जबकि ये भूमि चरनोई की थी। अब मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित है। भास्कर के संचालकों के नाम एक बड़े घोटाले में भी आए हैं। मध्यप्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम का ये घोटाला लगभग सात हज़ार करोड़ का बताया जा रहा है। भास्कर के संचालक सुधीर अग्रवाल और गिरीश अग्रवाल पर इस मामले में एक बार गिरफ्तारी वारंट तक जारी हो चुके हैं।
जब दैनिक भास्कर ने होली पर पानी बचाओ अभियान की शुरुआत की थी, तब इसे लोगों ने सामान्य तौर पर लिया था। जबकि ये अभियान दैनिक भास्कर के हिन्दू विरोधी अभियान की शुरुआत थी। इसके बाद तिलक वाली होली का अभियान आया तो कम संख्या में ही सही विरोध शुरू हो चुका था। अब तक स्पष्ट हो चुका था कि कभी हिंदुत्व की बात करने वाले भास्कर पर अब ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का रंग चढ़ने लगा है। आए दिन त्योहारों को लेकर भास्कर की अपीलें लोगों को परेशान करने लगी। भास्कर ने कभी ईद पर बकरे काटने के विरोध में अपील जारी नहीं की, इस कारण पाठकों का गुस्सा और बढ़ने लगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चढ़ता सितारा इस अख़बार को रास नहीं आया। भास्कर ने फेक ख़बरों के माध्यम से प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की छवि ख़राब करने प्रयास किया। मोदी विरोध इस कदर हावी रहा कि अख़बार के कार्टूनिस्ट और फ़िल्मी कॉलम भी मोदी विरोध के काम आने लगे। दैनिक भास्कर शीर्ष पर बैठा भांप नहीं सका कि उसकी छवि राष्ट्र विरोधी हो चुकी है और वह हिंदुत्व पर प्रहार कर रहा है। हाल ही में पुलवामा हमले की रिपोर्टिंग में अख़बार की बेशर्मी सामने आई और देश के लोगों का गुस्सा फट पड़ा। अख़बार ने पहले पेज पर विज्ञापन लगाकर जताया कि पुलवामा अटैक उसके लिए रोजमर्रा की घटना है।
पुलवामा के जवानों के बलिदान को व्यवसायिक रूप से भुनाने वाला भास्कर अब भी अपनी घटती लोकप्रियता से बेखबर है। पुलवामा पर अपने बेशर्मी के लिए माफ़ी मांगना तो दूर, उसने कार्टूनों की एक नई सीरीज शुरू कर दी। जवानों के बलिदान से आहत भारत की जनता ने अब खुलकर भास्कर का विरोध शुरू कर दिया है। भास्कर ने जता दिया है कि वह आगे भी ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के हाथों खेलता रहेगा। शिखर पर चढ़ना उतना मुश्किल नहीं होता, जितना उस पर टिके रहना। दैनिक भास्कर के पैर शिखर से फिसल रहे हैं। भास्कर से प्रताड़ित सैकड़ों कर्मचारियों की बद्दुआ और देश के लाखों लोगों की लानत-मलानत अब रंग ला रही है। राष्ट्रवाद की लौ से प्रज्जवलित हुआ भास्कर का सूर्य अस्त होने की ओर अग्रसर है।
URL: Dainik Bhaskar’s opposition is increasing.
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