विपुल रेगे। इसी वर्ष फरवरी में अंग्रेज़ी फिल्म ‘डेथ ऑन द नाइल’ प्रदर्शित हुई थी। विश्वप्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यासकार अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास पर आधारित ये मर्डर मिस्ट्री अनसुलझी गुत्थियों के सिरे तक पहुँचने की कहानी है। अगाथा का कहानी कहने का ढंग निराला था। वें अपने पात्रों का ‘कैरेक्टराइजेशन’ बहुत ही सजीवता के साथ करती थीं। ‘डेथ ऑन द नाइल’ को देखना उनके उपन्यास को सजीव होते देखने का विरल अनुभव है। सिनेमाई दृष्टिकोण से ‘डेथ ऑन द नाइल’ फिल्म मेकिंग के स्टूडेंट्स के लिए एक आदर्श क्लासरुम है।
कहानी प्रथम विश्व युद्ध से शुरु होती है। हरक्यूल पोरोट बेल्जियन इन्फेंट्री कंपनी में तैनात है। हरक्यूल का दिमाग बहुत तेज़ चलता है। उसका कैप्टन उसकी रणनीति पर भरोसा कर अपनी बटालियन को आगे बढ़ाता है। एक दिन दुर्घटना घटती है। हरक्यूल का कैप्टन मारा जाता है और वह स्वयं बुरी तरह घायल हो जाता है। इसके बाद हरक्यूल सेना की नौकरी छोड़ निजी जासूस की सेवाएं देने लगता है। इस केस की शुरुआत सन 1937 में लंदन क्लब में होती है।
इस महंगे क्लब में रसूखदारों का आना-जाना लगा रहता है। हरक्यूल नोटिस करता है कि वहां जैकलीन नामक एक सुंदरी अपने हैंडसम प्रेमी साइमन के साथ आई हैं। वहां जैकलीन की एक खूबसूरत दोस्त लिनेट भी आई हुई है। जैकलीन लिनेट से कहती है कि उसके प्रेमी को नौकरी की आवश्यकता है। लिनेट हरक्यूल को नौकरी देने के लिए मान जाती है। समय बीतता है और जैकलीन का हैंडसम प्रेमी लिनेट छीन लेती है।
एक दिन साइमन इजिप्ट की नाइल नदी पर क्रूज पार्टी आयोजित करता है। यहाँ रहस्यमयी ढंग से लिनेट मारी जाती है। इसके बाद क्रूज पर एक मौत और होती है। हरक्यूल जानता है कि हत्यारा क्रूज पर ही मौज़ूद है। इन हत्याओं को बहुत सफाई से अंजाम दिया गया है। हरक्यूल के लिए ये पहेली सुलझाना एक चुनौती की तरह है क्योंकि क़ातिल उसकी नज़रों से बहुत दूर है। अगाथा क्रिस्टी की इस कहानी पर माइकल ग्रीन ने कैची स्क्रीनप्ले बनाया है।
निर्देशक कैनाथ ब्रेना ने इस स्क्रीनप्ले को परदे पर वास्तविक ढंग से पेश किया है। दर्शक को आखिरी तक बांधे रखने का हुनर इस शानदार स्क्रीनप्ले में है। कैरेक्टर्स की इमेज बिल्डिंग चतुराई से की गई है। हर किरदार के चरित्र को खूबसूरती के साथ उकेरा गया है। हैरिस जेम्बरल्यूकोस की सिनेमेटोग्राफी में इजिप्ट और नाइल नदी के दृश्य आँखों को ठंडक देते हैं। सिनेमेटोग्राफी फिल्म का एक स्ट्रांग पॉइंट बनकर उभरता है।
सस्पेंस आखिर तक कायम रहे, इसी में मर्डर मिस्ट्री की जीत मानी जाती है। फिल्म में आखिर तक दर्शक को अनुमान नहीं होता कि कातिल कहाँ छुपा बैठा है। इसी शीर्षक से सन 1978 में एक और फिल्म बन चुकी है और अब नए अवतार में प्रस्तुत हो रही है। उस समय इस फिल्म को ब्रिटिश-फ्रेंच निर्देशक जॉन गेलरमिन ने बनाया था। कैनाथ ब्रेना के लिए चुनौती ये थी कि उन्हें फिल्म के लॉन्ग शॉट दृश्यों और बाज़ारों आदि के दृश्यों में सन 1937 का प्रभाव पैदा करना था।
ये काम उन्होंने शानदार ढंग से किया है। हमारे यहाँ बॉलीवुड ऐसा प्रभाव पैदा नहीं कर पाता लेकिन दक्षिण का सिनेमा कर पाता है। उसकी एक ही वजह है। उनकी रिसर्च और दृश्यों की डिटेलिंग बहुत बारीकी से होती है। वे पहनावे से लेकर, कपड़ों से लेकर होटल में खाना परोसने वाले वेटर पर भी रिसर्च करते हैं। इसलिए ‘डेथ ऑन द नाइल’ तीस के दशक में सांस लेती प्रतीत होती है। ये फिल्म अभी डिज्नी+हॉटस्टार पर उपलब्ध है। ये परिवार के साथ देखने योग्य नहीं है।
ये वयस्क दर्शकों की फिल्म है। यदि आप फिल्मों को टेक्निकली देखने वाले दर्शक हैं, बैकग्राउंड की ताकत और कैरेक्टर बिल्डिंग के बारे में जानते हैं तो ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी। आम दर्शक के लिए भी ये एक रोचक फिल्म तो है ही। ये एक बिलेटेड रिव्यू है। एक अच्छी फिल्म को देरी के कारण मूल्यांकन से चूकना नहीं चाहिए।