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India Speaks Daily > Blog > समाचार > संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही > दिल्ली सरकार को ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार
संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही

दिल्ली सरकार को ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार

Courtesy Desk
Last updated: 2023/05/11 at 7:49 PM
By Courtesy Desk 69 Views 10 Min Read
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नई दिल्ली: दिल्ली का असली बॉस कौन होगा इसपर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ये सर्वसम्मति का फैसला सुना रहे हैं और वो इसे दो हिस्से में सुना रहे हैं। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने सुनवाई के बाद 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली सरकार को अफसरों का ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार है। इस मामले में दिल्ली सरकार की सुप्रीम कोर्ट की जीत हुई है। वहीं सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जमीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस का अधिकार केंद्र के पास रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें

-दिल्ली दूसरे केंद्रशासित प्रदेशों से अलग है क्योंकि यहां चुनी हुई सरकार है। दिल्ली सरकार को वही शक्तियां हैं तो दिल्ली विधानसभा को मिली हुई हैं। चुनी हुई सरकार के पास हो प्रशासनिक व्यवस्था।
-एग्जिक्यूटिव मामले में अधिकार एलजी के पास। उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता के साथ काम करेंगे।
-आदर्श स्थिति यही होगी दिल्ली सरकार को अधिकारियों पर नियंत्रण मिले। पुलिस और कानून व्यवस्था और जमीन जो दिल्ली सरकार के दायरे में नहीं आते हैं उसके अलावा बाकी अधिकारियों पर अधिकार दिल्ली सरकार को मिलनी चाहिए।
-चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार का अपने अधीन अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं होगा तो वो ठीक से काम नहीं करेंगे। वो सरकार की बात नहीं मानेंगे।
-अगर चुनी हुई सरकार है तो उसको शक्ति मिलनी चाहिए। NCT पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली की चुनी हुई सरकार लेकिन अधिकार कम।

-चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दिल्ली के कुछ मामलों में एलजी का एकाधिकार है। विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।
-चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ पढ़ रहे हैं फैसला। लोकतंत्र और संघीय ढांचे का सम्मान जरूरी।
-चीफ जस्टिस ने कहा कि ये बहुमत का फैसला है। 5 जजों की संविधान पीठ का है फैसला। 2019 के फैसले से सहमत नहीं हैं। इस साल केंद्र को सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का पूरा अधिकार दे दिया गया था।
-चुनी हुई सरकार की जनता की जवाबदेही होती है। केंद्र सरकार का इतना नियंत्रण नहीं हो सकता है कि राज्य का कामकाज प्रभावित हो। लोकतंत्र और संघीय ढांचे का सम्मान जरूरी है।

UT सिर्फ केंद्र सरकार का विस्तार: केंद्र
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील रखी कि संविधान में कभी ऐसा विचार नहीं किया गया था कि यूटी (केंद्र शासित प्रदेश) के लिए अलग सर्विस कैडर हो। यह सिर्फ यूनियन ऑफ इंडिया का एक्सटेंशन है और यूटी में जो भी कर्मी काम करते हैं, वे केंद्र के अधीन काम करते हैं। 2007 से लेकर अभी तक सिर्फ चार बार ऐसा मौका आया है, जिसमें चुनी हुई दिल्ली की सरकार और एलजी के बीच मतभिन्नता हुई और मामला राष्ट्रपति को रेफर हुआ था। सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि मामले को लार्जर बेंच को रेफर करने की जरूरत इसलिए है कि मामला संघीय ढांचे से जुड़ा है। साथ ही, केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश के बीच संघीय सिद्धांत को देखना जरूरी है। वहीं, चीफ जस्टिस और अन्य जजों ने मामले में सॉलिसिटर जनरल को अलग से नोट पेश करने की इजाजत दी थी।

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कंट्रोल ना होने पर कैसे करें काम: दिल्ली सरकार
दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी थी कि राज्य या फिर यूनियन टेरिटेरी तब तक काम नहीं कर सकता, जब तक कि सिविल सर्विसेज पर उनका नियंत्रण न हो। नोटिफिकेशन के जरिए वह कंट्रोल नहीं लिया जा सकता। सिंघवी ने कहा कि अगर अधिकारी की कोई जवाबदेही नहीं होगी तो वह अपने हिसाब से काम करेगा और अराजक स्थिति हो जाएगी। क्या कोर्ट इस बात की कल्पना कर सकता है कि एक केंद्र शासित प्रदेश, जिसकी अपनी विधानसभा है, उसका सिविल सर्विसेज पर कंट्रोल नहीं होगा? यही इस केस का मूल है। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल ने जब कहा कि दिल्ली देश की राजधानी है तो सिंघवी ने कहा कि निश्चित तौर पर राजधानी है, दिल्ली राज्य की तरह है और यह यूटी की तरह नहीं है।

सामूहिक जिम्मेदारी और सलाह लोकतंत्र की बुनियाद: SC
सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि वह इस मामले में संतुलन की तलाश करेगा और यह तय करेगा कि सर्विसेज का कंट्रोल दिल्ली सरकार के पास हो या केंद्र के पास या फिर इसमें बीच का रास्ता होना चाहिए। संवैधानिक बेंच ने यह भी टिप्पणी की थी कि सामूहिक जिम्मेदारी और सलाह लोकतंत्र की बुनियाद है। अनुच्छेद-239 एए सामूहिक जिम्मेदारी और सलाह की रक्षा करता है और यह लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है। ऐसे में आपको संतुलन बनाना होगा। हमें इस सवाल का जवाब तलाशना है कि पब्लिक सर्विसेज का कंट्रोल कहां रहे। यह कंट्रोल एक के हाथ में रहे या दूसरे के हाथ में रहे या बीच का रास्ता हो।

बेंच ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी की कि राज्य की कार्यकारी शक्ति केंद्र नहीं ले सकता। अनुच्छेद-73 के तहत संविधान कहता है कि केंद्र सरकार राज्य की कार्यकारी शक्ति नहीं ले सकती, जैसे सीआरपीसी समवर्ती सूची में है और केंद्र सरकार इसको लेकर कानून बना सकता है, लेकिन राज्य की शक्ति नहीं ले सकता। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि जहां तक दिल्ली की विधायी शक्ति का सवाल है, तो दिल्ली की स्थिति विशिष्ट है और यहां संसद को समवर्ती सूची के साथ-साथ राज्य की लिस्ट में भी कानून बनाने का अधिकार है। ऐसे में देखा जाए तो दिल्ली में राज्य सूची और समवर्ती सूची वस्तुस्थिति में समवर्ती सूची की तरह है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि दिल्ली सरकार पब्लिक ऑर्डर, कानून व्यवस्था और जमीन को लेकर कानून नहीं बना सकती और एनसीटी इस मामले में कार्यकारी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकती। हमें देखना है कि क्या सर्विसेज इसी दायरे में आता है?

पूरा मामला ऐसे समझें
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच को यह मामला रेफर किया गया था। संवैधानिक बेंच को यह मामला 6 मई 2022 को रेफर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच मामले में उठे सवाल पर सुनवाई करेगी। सिर्फ सर्विसेज मामले में कंट्रोल किसका हो, इस मुद्दे पर उठे संवैधानिक सवाल को संवैधानिक बेंच के सामने रेफर करते हैं। यानी जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच सर्विसेज का कंट्रोल किसके हाथ में हो, इस मामले में फैसला देंगे।

मामले में दो जजों का अलग-अलग था मत
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को जो फैसला दिया था, उसमें दिल्ली में प्रशासनिक नियंत्रण किसके हाथ में हो, इसको लेकर दोनों जजों का मत अलग-अलग था। लिहाजा इस मामले में फैसले के लिए तीन जजों की बेंच गठित करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया था। इसी बीच केंद्र ने दलील दी थी कि मामले को और बड़ी बेंच को भेजा जाए। दिल्ली में एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने के केंद्र सरकार के 2021 के कानून को भी दिल्ली सरकार ने चुनौती दी थी, जो मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पेंडिंग है।

4 जुलाई 2018 का संवैधानिक बेंच का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे, अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे उस पर अमल करेंगे, यानी खुद कोई फैसला नहीं लेंगे। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने राजधानी दिल्ली में प्रशासन के लिए एक पैरामीटर तय किया है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-239 एए की व्याख्या की थी।

रिव्यू पिटिशन और क्यूरेटिव पिटिशन का रास्ता
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद जिस भी पक्ष को संतुष्टि नहीं है वह उसी बेंच के सामने रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकता है। रिव्यू पिटिशन वही जज सुनते हैं, जिन्होंने फैसला दिया हो। हालांकि रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई आमतौर पर चैंबर में होती है और कई बार ओपन कोर्ट में सुनवाई का भी फैसला लिया जाता है। रिव्यू पिटिशन के बाद क्यूरेटिव पिटिशन का रास्ता बचता है। इसके तहत जजमेंट में अगर कोई कानूनी सुधार की गुंजाइश है तो उसे ठीक करने की गुहार लगाई जाती है।

साभार

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Courtesy Desk May 11, 2023
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