हमारे जजों के पास एस गुरुमूर्ति जैसे राष्ट्रवादी पत्रकार तथा राजनीतिक टिप्पणीकार के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना का मामला चलाने के लिए समय है लेकिन राम मंदिर पर सुनवाई करने के लिए समय नहीं है। सवाल है कि जब मीडिया में प्रकाशित सामग्रियों को कोर्ट सबूत नहीं मानता है तो फिर उसे कोर्ट अवमानना योग्य कैसे मानी जा सकती है? जहां तक अभिव्यक्ति की बात है तो यह हरेक को संविधान प्रदत्त अधिकार प्राप्त है। क्या कोर्ट अपने संदर्भ में आम लोगों से अभिव्यक्ति की आजादी छीनना चाहता है?
#DelhiHC Chief Justice took the Suo Motu cognizance and initiates Criminal contempt proceedings against Chartered Accountant & Political Commentator Mr S. Gurumurthy for his article & tweets against Justice S Muralidhar for being biased releasing Gautam Navlakha.
— India Legal (@indialegalmedia) October 29, 2018
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश राजेंद्र मेनन ने चार्टर्ड एकाउंटेट और राजनीतिक टिप्पणीकार एस गुरुमूर्ति के खिलाफ आपराधिक अवमानना का केस दर्ज करने को कहा है। इस मामले में गुरुमूर्ति को नोटिस भी जारी कर दिया गया है।
मालूम हो कि हाल ही में मुंबई कोर्ट से लेकर दिल्ली की हाईकोर्ट तक ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच शहरी नक्सलियों की जमानत खारिज करते हुए उन्हें हिरासत में लिया गया। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट के जज एस मुरलीधर ने गौतम नवलखा की जमानत मंजूर कर ली। नवलखा को मिली जमानत के बाद एस गुरुमूर्ति ने आलेख और ट्वीट के सहारे नवलखा को मिली जमानत के लिए दिल्ली हाईकोर्ट की आलोचना की थी।
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य जज राजेंद्र मेनन ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए एस गुरुमूर्ति के खिलाफ आपराधिक अवमानना केस दर्ज करने को कहा है। सवाल उठता है कि आखिर दिल्ली हाईकोर्ट के जज अपनी आलोचना सह क्यों नहीं सकते? क्या सुप्रीम कोर्ट अभिव्यक्ति की आजादी खत्म करने को आतुर नहीं दिख रहा है?
मालूम हो कि एस गुरुमूर्ति ने नवलखा जैसे शहरी नक्सली को जमानत देने को लेकर कुछ ट्वीट और आलेख लिखकर सरकार के फैसले की आलोचना की थी। उन्होंने अपने आलेख में दिल्ली हाईकोर्ट पर भेदभाव करने की बात लिखी है।
URL: Delhi HC Issues Contempt Notice to S. Gurumurthy for Tweets Against Justice Muralidhar
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