CAA और NRC का विरोध करने वाले ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप इन दिनों चर्चा में है । देश विरोधी माने जा रहे शहरी माओवादी इस ग्रुप के दो सदस्यों-देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को दिल्ली पुलिस ने फरवरी माह में हुए उत्तर पूर्व दिल्ली दंगे के मामले में 23 मई को गिरफ्तार किया था।
अगले दिन दोनों आरोपियों को अदालत से जमानत मिलते ही दिल्ली पुलिस ने आर्म्स एक्ट और हत्या व हत्या की कोशिश समेत UAPA धाराओं के तहत फिर से गिरफ्तार कर लिया। दरअसल दिल्ली पुलिस नहीं चाहती कि ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप के दोनों सदस्य जेल से बाहर आएं क्योंकि दोनों राजधानी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन चुके हैं। दोनों पर आरोप है कि उन लोगों ने सीएए और एनआरसी की आड़ में मुस्लिम समाज के लोगों को भड़काया और Fake News फैलाया, जिसके चलते दिल्ली में दंगे हुए।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिल्ली दंगे को लेकर ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप की भूमिका संदिग्ध है और इस ग्रुप के एक-एक सदस्य की भूमिका की जांच की जा रही है।
पुलिस को जांच में पता चला है ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप का जन्म जिस उद्देश्य को लेकर हुआ था उससे यह संगठन भटक गया है। ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप की शुरुआत हॉस्टल और पेइंग गेस्ट के तौर पर रहने वाली महिलाओं के लिए पाबंदियों के खिलाफ था। ग्रुप के सदस्यों का कहना था कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर उनके उपर भेदभापूर्ण पाबंदियां लगाना उचित नहीं है । इससे उनके अधिकारों का हनन होता है।
‘पिंजरा तोड़’ का जन्म करीब 5 साल पहले दिल्ली में ही हुआ और बाद में आजादी की चाह रखने वाली बहुत सी लड़कियां इसमें जुड़ती चली गईं। आंदोलन की शुरुआत दिल्ली के महाविद्यालयों की लड़कियों ने की। बाद में देश के कई कॉलेजों की छात्राओं ने भी कैंपस में महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के लिए ‘पिंजरा तोड़’ नाम का इस्तेमाल किया।
वैसे सबसे पहले जामिया मिलिया इस्लामिया की एक पूर्ववर्ती छात्रा ने पत्र लिखकर गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों को नाइट आउट पार्टी नहीं करने के नियम पर आपत्ति जताई थी। इस पत्र ने देश के अन्य विश्वविद्यालय में एक नई सोच को जन्म दिया और इस ग्रुप को पहली सफलता तब मिली जब जामिया प्रशासन ने लड़कियों के हॉस्टल वापस आने का समय बढ़ा दिया।
दरअसल, बात अगस्त 2015 की है। जब गर्मी की छुट्टियों के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय खुला था, उसके बाद जामिया मिलिया इस्लामिया प्रशासन ने अपने कॉलेज में पढऩे वाली छात्राओं को लेकर एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में कॉलेज के हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों को रात 8 बजे के बाद बाहर रहने की अनुमति नहीं दी गई थी। उन्हें हर हाल में 8 बजेे तक हॉस्टल में जरूर वापस आना था। छात्राओं के विरोध के बाद दिल्ली माहिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने जामिया प्रशासन से पूछा यह फैसला क्यों लिया गया? इस पर जामिया प्रशासन ने अपने फैसले को वापस ले लिया।
इसके बाद छात्राओं ने दूसरे मुद्दे उठा दिए। बाद में देखते देखते कई और विश्वविद्यालयों में पढऩे वाली छात्राएं इनसे जुड़ती चली गई। फिर क्या था, उन्होंने अपने-अपने यहां के कॉलेज प्रशासन द्वारा लिए गए कुछ फैसलों पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। इसके बाद कुछ छात्राएं विरोध और उसके तरीकों को लेकर कुछ ज्यादा उत्साहित हो गईं और उन्होंने एक ग्रुप बनाया, जिसका नाम रखा ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप।
अगले कुछ वर्षों में यह ग्रुप महाराष्ट्र ,पंजाब, कोलकाता, उड़ीसा और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भी सक्रिय हुआ और वहां विभिन्न मुद्दों को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया। जिसके बाद ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप से लड़कियां जुड़ती ही चली गई। एक दिन ऐसा भी आया, जब यह महिलाओं की अधिकारों की मांग करने वाला ग्रुप नहीं गुटबाजी का अड्डा बन गया।
20 फरवरी 2019 का वह दिन था, जब इससे जुड़ी कुछ छात्राओं-महिलाओं ने ग्रुप से अलग होने का ऐलान कर दिया। विरोधी गुट का दावा था कि ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप में सवर्ण हिंदू महिलाएं हावी हो गई हैं और इन्हीं की बातें इसमें सुनी और मानी जाती हैं। आरोप लगे कि यह ग्रुप ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप नहीं बल्कि, सवर्ण हिंदू महिला ग्रुप बन गया गया है।
एक बार फिर यह ग्रुप दिल्ली दंगों को लेकर चर्चा में आया जब इसके दो सदस्यों को गिरफ्तार किया गया । इस ग्रुप के दो सदस्यों को गिरफ्तार किए जाने के बाद यह माना जाने लगा कि इस ग्रुप में शहरी माओवादिओं की भरमार है। यही वजह है कि सीआईए और एनआरसी के विरोध में चल रहे राजधानी में आंदोलन के दौरान इस ग्रुप ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में नागरिकता कानून के विरोध में मुस्लिम वर्ग की महिलाओं को भडक़ाने और विभिन्न जगहों पर सुनियोजित तरीके से प्रदर्शन कराने और हिंसा कराने में ‘पिंजरा तोड़’ ग्रुप ने अहम भूमिका निभाई। ग्रुप की सदस्य नताशा नरवाल और देवांगना कलिता की PFI से जुड़े कुछ लोगों के साथ कई बार मुलाकात हुई थी, जिसमें हिंसा की साजिश रची गई।
आरोप है कि एंटी सीएए और देश के विभिन्न राज्यों में इसको लेकर फैली हिंसा में पीएफआई ने भी प्रमुख रोल अदा किया है।इससे पहले, 13 फरवरी 2017 को ग्रुप की कुछ सदस्यों ने दिल्ली में ‘Avoid bra and panty’ नाम से एक थिएटर शो किया था। इसके बाद कुछ सार्वजनिक जगहों पर ‘ब्रा’ लटकाकर छोड़ दिए गए, जिसको लेकर काफी विवाद हुआ था।