उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों को लेकर हाल में ही दिल्ली पुलिस के द्वारा जारी आदेश पर अदालत ने पुलिस को क्लीन चिट दी है। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने एक आदेश जारी करके अपने कर्मियों को आगाह किया था कि दंगों के सिलसिले में की जा रही गिरफ़्तारियों से हिंदुओं के मन में रोष पैदा हो रहा है। किसी भी गिरफ्तारी से पहले उसकी जांच पड़ताल अवश्य की जाए।
इस तरह के इस आदेश को खारिज करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गयी लेकिन हाई कोर्ट ने पुलिस के आदेश को ख़ारिज नहीं किया बल्कि इस नए आदेश पर क्लीन चिट दे दी है ।
दरअसल दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रवीर रंजन ने एक आदेश जारी किया था। इसमें बताया गया था कि ख़ुफ़िया एजेंसियों ने यह सूचना दी है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के चांद बाग़ और खजूरी ख़ास इलाक़े से कुछ हिंदू युवाओं की गिरफ़्तारी की वजह से हिंदू समुदाय में जबरदस्त विरोध है और रोष फैला हुआ है। हिंदू समुदाय के लोग आरोप लगा रहे हैं कि गिरफ़्तारियां बिना किसी सबूत के हो रही हैं। जो कुछ गिरफ्तारियां की गई है उनका इन दंगों से कोई लेना देना नहीं है। इन लोगों की गिरफ्तारियां कुछ और वजह से की गई है।
इसके अलावा हिंदू समुदाय में इस बात से भी नाराज़गी है कि चांद बाग़ के 25 फ़ुटा रोड के मोहम्मद राशिद और मोहम्मद आज़म खान के खिलाफ़ पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की जबकि दोनों कथित तौर पर नागरिक कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में मुस्लिम समुदाय की भीड़ को भड़काने का प्रयास कर रहे थे।
इस आदेश पत्र के जरिए पुलिस ने उन शिकायतों का जवाब दिया था। साथ ही पुलिसकर्मियों को नसीहत दी थी कि दिल्ली पुलिस को इस वजह से कटघरे में खड़ा किया जा रहा है कि दंगा मामले की जांच करने वाली पुलिस हिंदुओं को ज्यादा परेशान कर रही है। इसी आदेश में सभी मामलों को लेकर प्रत्येक पहलुओं से जांच किए जाने के बाद ही किसी की गिरफ्तारी सुनिश्चित किए जाने के लिए कहा गया था।
इस पर पंचमक्कारों’ ने यह प्रोपोगंडा फैलाया कि दिल्ली पुलिस दंगे में लिप्त हिंदुओं को बचाने का काम कर रही है। इसको लेकर सियासत शुरू हो गई। इस आदेश के सार्वजनिक होते ही साहिल परवेज़ और मोहम्मद सईद सलमान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की और बताया कि उनके माता पिता की दंगों के दौरान मौत हो गयी थी इस पर क्या कार्रवाई हुई? अलबत्ता यह पता चला है की पुलिस हिंदुओं को पकड़ने की बजाय बचाने में जुटी है ।
याचिका में मांग की गयी थी कि दिल्ली पुलिस के 8 जुलाई के ऑर्डर को ख़ारिज किया जाए, साथ ही स्पेशल सीपी प्रवीर रंजन से पूछा जाए कि उन्होंने किस आधार पर आदेश जारी किया। ऐसे ग़ैरक़ानूनी आदेश जारी करने के लिए उनके खिलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
इस पर मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत की एकल बेंच ने दिल्ली पुलिस से ऑर्डर की प्रति मांगी और पूछा कि किन आधारों पर ऐसा आदेश जारी किया गया। अदालत के पूछे सवाल के जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया कि खुफिया रिपोर्ट के आधार पर यह आदेश जारी किया गया था। ये एक सामान्य सा आम तरीक़ा है, जिसकी मदद से अफ़सरों को केस से सही तरीक़े से डील करने के लिए गाइड किया जाता है।
दिल्ली पुलिस के वक़ील ने सुनवाई के दौरान कहा कि अब तक दंगों के मामले में 535 हिंदुओं और 513 मुस्लिमों की गिरफ़्तारी हो चुकी है जबकि अधिकांश केसों में चार्जशीट भी दाख़िल की जा चुकी है। वकील ने साफ किया आदेश का पहला अनुच्छेद इंटेलिजेन्स इनपुट के आधार पर था, जबकि दूसरा अनुच्छेद अफ़सरों को ये बताने के लिए था कि किसी भी गिरफ़्तारी के समय सावधानी के साथ काम करें।
सुनवाई के दौरान अदालत ने अपने ऑर्डर में माना कि जारी किए गए इस आदेश की वजह से कोई भेदभाव नहीं हुआ है। सुनने के बाद अदालत ने पुलिस के आदेश को ख़ारिज करने से इंकार कर दिया। अदालत ने यह आदेश भी दिया कि अगर कोई सीनियर अधिकारी कोई ग़ैरक़ानूनी आदेश जारी करता है तो जांच करने वाली एजेंसियों को अपने अधिकारियों के दबाव में किसी तरफ़दारी की दृष्टि से काम नहीं करना चाहिए।