दिल्ली दंगे के दौरान हेट स्पीच देने के चलते सोनिया गांधी के करीबी हर्ष मंदर दिल्ली पुलिस के रडार पर हैं। राजधानी में हुई हिंसा की चार्जशीट में भी उनका भी नाम शामिल है।
पूर्व आईएएस और तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे मुस्लिमों को उकसाने और न्यायपालिका के बारे में अवमानना भरी बातें कहने का भी आरोप है।
यह शख्स शहरी नक्सली समूह का प्रमुख चेहरा है और खुद को कथित बुद्धिजीवी कहता है। विवादास्पद विचारों का धनी हर्ष मंदर पूर्व में भी साल 2008 में मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादी अजमल आमिर कसाब और साल 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की फांसी रोकने की मांग कर चुका है। हर्ष मंदर की एक राजनीतिक पहचान भी है और वह कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी का बेहद करीबी रहा है। मनमोहन सरकार पर नियंत्रण के लिए सोनिया गांधी द्वारा बनाए गये NAC का सदस्य रह चुका है हर्ष मंदर। हिंदुओं के प्रति उसके अंदर इस कदर घृणा भरी हुई है कि सोनिया गांधी की पहल वाली सांप्रदायिक हिंसा विधेयक बनाने वालों में उसका नाम सबसे ऊपर था। इसमें हिंदुओं को हमेशा के लिए दंगाई साबित करने की साज़िश रची गई थी।
हर्ष मंदर को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में जलाए गये हिंदुओं से सहानुभूति नहीं थी! वह बस गुजरात दंगे में बिज़नस देख रहा था। गुजरात दंगे की आड़ में उसने नौकरी छोड़ी और NGO गैंग का सदस्य बनकर भारत व हिंदुओं को बदनाम करने के उद्देश्य में जुट गया। इसी दौरान कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के वह करीब आया, और फिर सोनिया की सत्ता आने पर उनकी गैर संवैधानिक गतिविधियों का केंद्र NAC का सदस्य बन गया। हर्ष मंदर हमेशा से हिंदू और मोदी विरोधी रहा है।
हर्ष मंदर पर आरोप है कि वह दिल्ली हिंसा की साजिश रचने वालों के साथ था। उसने इस दौरान जगह- जगह भड़काऊ भाषण दिया। नागरिक कानून बनने से पहले उसका कथन था कि यदि नागरिकता कानून संसद से पास हो गया तो वह इसके विरोध स्वरूप मुस्लिम बन जाएगा।
केंद्र के मोदी सरकार द्वारा इस विधेयक के दोनों सदनों में पास कराए जाने के उपरांत हर्ष मंदर मुस्लिम तो नहीं बना, हां वह सड़कों पर उतरकर देश विरोधी दंगे में शामिल मुस्लिम को भड़काने में अवश्य जुट गया।
हर्ष मंदर ने नागरिक कानून का विरोध करते हुए पिछले साल 16 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों के सामने भड़काऊ भाषण दिया था। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में पुलिस की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया था कि मंदर ने लोगों से कहा कि संसद और सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद करना बेकार है और उन्हें इंसाफ पाने के लिए सड़क पर उतरना होगा। इसके बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने हर्ष मंदर से जवाब दाखिल करने को कहा था।
इस पर उनके वकील का दावा था कि जिस भाषण के आधार पर यह कार्यवाही शुरू की गई, उसे कोर्ट के सामने गलत तरीके से पेश किया गया जबकि उस भाषण में न्यायपालिका के लिए कोई अवमानना भरी बात नहीं कही थी। मंदर के वकील ने आरोप लगाया कि हर्ष मंदर ने सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के खिलाफ शिकायत की, इसलिए सरकार उन्हें निशाने पर ले रही है।
दरअसल हर्ष मंदर ने 16 दिसंबर की शाम जामिया के बाहर मुस्लिम लोगों की जमा भीड़ के सामने जो कहा था वह वीडियो के रूप में वायरल हो चुका था। उसने कहा था- “ये जंग, जो शुरू की है, ये हमारे देश के लिए, हमारे संविधान के लिए और प्यार के लिए है। केंद्र सरकार ने भारत के लोगों के खिलाफ जंग शुरू कर दी है और यह सबसे बड़ी विडंबना है कि सत्तारूढ़ दल उन लोगों से प्रेरित है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं निभाई थी। सरकार अब उन लोगों से बदला ले रही है, जो संविधान में निहित मूल्यों के लिए खड़े हैं और एंटी नेशनल होने का तमगा झेल रहे हैं और यह लड़ाई संसद में नहीं जीती जाएगी और न ही इसे सुप्रीम कोर्ट में जीता जाएगा।”
दिल्ली पुलिस का मानना है कि हर्ष मंदर ने लोगों को भड़काया, जिसके परिणाम स्वरूप उत्तर पूर्व दिल्ली में भीषण दंगे हुए, जिसमें 53 लोग मारे गए।
एक तरफ तो हर्ष मंदर का कहना है कि नागरिक कानून, अयोध्या और कश्मीर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्युरिज्म की रक्षा नहीं की इसलिए अब फैसला सड़कों पर होगा दूसरी तरफ यही हर्ष मंदर बीजपी के नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण के मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया था, हालांकि सर्वोच्च अदालत ने हर्ष मंदर की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था।
इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए.बोबडे ने हर्ष मंदर के वकील से कहा था कि हर्ष मंदर के खिलाफ लगे आरोप बेहद गंभीर हैं और जब तक इस आरोप पर सफाई नहीं आ जाती, तब तक इस याचिका पर सुनवाई नहीं होगी। उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उन्हें इस बयान की सत्यता की पुष्टि के लिए समय चाहिए, जिस पर सॉलिसिटर जनरल ने हैरानी जताई और कहा कि अपने ही बयान की जांच के लिए समय मांगने वाले लोग दूसरों के मामले में तुरंत एफआईआर की मांग कैसे कर सकते हैं? इतना छीछालेदर होने के बाद हर्ष मंदर ने अदालत से अपनी याचिका वापस करने की मांग भी कर डाली थी।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि चूंकि सारा मामला अदालत के विचाराधीन है, इस वजह से हर्ष मंदर को अभी जांच के दायरे में नहीं लाया गया है, लेकिन अदालत से अनुमति मिलने के बाद इस बाबत कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
आपको बताता चलूं कि ये वही हर्ष मंदर हैं, जिन्होंने देश के कुछ बुद्धिजीवियों के साथ मिलकर संसद हमले के दोषी आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु के लिए राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) का सदस्य रह चुका हर्ष मंदर खुद को बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और भूखे, बेघर, हिंसा पीड़ित लोगों का मसीहा साबित कर विदेशी फंड बटोरता रहा है।
यह शख्स ने साल 2010 से 2012 तक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में उस वक्त काम किया जब सोनिया गांधी इसकी अध्यक्षता संभाल रही थी। कांग्रेस पार्टी से लगाव रखने वाला हर्ष मंदर साल 1993 में केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान नए आईएस अफसरों को मसूरी में प्रशिक्षण दिया करते था। राजीव गांधी फाउंडेशन के एक प्रोजेक्ट में भी हर्ष मंदर काम कर चुका है। साल 2002 में गांधी परिवार की वफादारी के ईनाम स्वरूप राजीव गांधी फाउंडेशन संस्था ने हर्ष मंदर को राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से भी उपकृत किया था।