विपुल रेगे। सन 2014 के बाद से बॉलीवुड अधिक उन्मुक्त और विद्रोही हो चुका है। नई सरकार आने के बाद से हिन्दी फिल्मों में अश्लीलता और हिन्दू घृणा में तेज़ी से बढ़ोतरी देखी गई। बॉलीवुड अधीरता से नई सरकार के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। विगत छह साल में बॉलीवुड की विवादित फिल्मों के विरुद्ध लोग सैकड़ों बार न्यायालय गए, अपनी ही सरकार के सामने दुखड़ा रोया लेकिन सब व्यर्थ ही रहा। बाकी की कसर प्रकाश जावड़ेकर ने पूरी कर दी। बॉलीवुड को रोज़-रोज़ के विरोधों से बचाने के लिए जावड़ेकर कानून बनाने के बजाय ऐसी गाइडलाइंस लेकर आए, जिसका उद्देश्य न केवल बॉलीवुड को बचाना था, बल्कि हिन्दू अपमान के लिए उनको लाइसेंस भी देना था।
पिछले दिनों देश के सूचना व प्रसारण मंत्री ने बड़ी शान से प्रेस वार्ता करते हुए घोषणा कर दी कि ओटीटी पर व्याप्त गंदगी को रोकने के लिए वे कानून नहीं बनाएँगे लेकिन गाइडलाइंस अवश्य लेकर आए हैं। जाहिर है बॉलीवुड की ओर से प्रकाश जावड़ेकर की इस पहल का सबसे पहले स्वागत किया गया था। ये बात और है कि न्यायालय ने जावड़ेकर के दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए कह दिया था कि वे बिना नाख़ून और बिना दांत का ये शेर कहाँ से ले आए हैं।
केंद्र सरकार ने ये दिशा-निर्देश जारी कर समझ लिया कि अब बॉलीवुड में सब कुछ ठीक हो चुका है और देश के लाखों लोगों का गुस्सा भी दूर हो गया है। केंद्र इसी खुशफहमी में है कि बॉलीवुड अब देश और धर्म के विरुद्ध गंदगी नहीं फैलाएगा। हालांकि परिस्थितियां इसके बिलकुल विपरीत दिखाई दे रही है। अब तो बॉलीवुड को केंद्र सरकार की ओर से विष्ठा फैलाने का प्रमाणपत्र मिल चुका है।
केंद्र ने बॉलीवुड के हाथ खोल दिए और देश की जनता के हाथ बांधकर रख दिए। जावड़ेकर के कथित दिशा-निर्देशों के जारी होने के ठीक बाद पगलैट जैसी घोर आपत्तिजनक फिल्म प्रदर्शित हुई। आपत्ति की पराकाष्ठा ये कि फिल्म में सौतेले भाई-बहन के बीच रोमांस पनपते हुए दिखाया गया। बॉलीवुड का एक फिल्म निर्माता तो जैसे ठान बैठा है कि वह भारत के हिन्दू बहुल समाज को अधिक से अधिक पीड़ा देगा।
फिल्म निर्माता करण जौहर की ताज़ा वेबसीरीज देखते हुए तो यही महसूस हो रहा है। करण जौहर की नई वेबसीरीज ‘अजीब दास्तानस’ हाल ही में प्रदर्शित हुई है। इसे नेटफ्लिक्स और धर्मा प्रोडक्शन ने मिलकर बनाया है। इसकी चार कहानियों को देखे तो पता चलता है कि नेटफ्लिक्स भारत के विरुद्ध किसी षड्यंत्र के तहत कार्य कर रहा है। एक कहानी में पति अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाता, क्योंकि वह समलैंगिक है।
एक कहानी में एक दलित महिला का एक ब्राम्हण महिला के साथ समलैंगिक संबंध बताया गया है। दलित महिला के साथ उच्च जातियों का शोषण दिखाया गया है। करण जौहर अपने एजेंडे पर कायम है। प्रकाश जावड़ेकर के सड़े-गले दिशा-निर्देश उसे रोक नहीं पा रहे हैं। हम देख रहे हैं कि ओटीटी के मार्ग से सांस्कृतिक आतंकवाद और भी ताकतवर होकर उभर रहा है।
केंद्र सरकार के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि फिल्म निर्माता सेल्फ रेगुलेशन करेंगे। करण जौहर को यदि लगता है कि वह अपने घर की होमोसेक्सुअल गंदगी को समाज पर थोपकर कुछ गलत नहीं कर रहा है तो सेल्फ रेगुलेशन क्यों और कैसे होगा। जावड़ेकर ने इन सांस्कृतिक आतंकियों को मनभावन शस्त्र दे दिया है। ऐसा कैसे हो सकता है कि नेटफ्लिक्स और करण जौहर जावड़ेकर की दी परखनली में अपनी गंदगी को डालकर जांचे और सोचे कि ये समाज के लिए सही रहेगा या नहीं।
इस मंच पर पहले ही कह दिया गया था कि केंद्र द्वारा लाए गए ये दिशा-निर्देश इस सांस्कृतिक आतंकवाद को रोक नहीं सकेंगे, बल्कि उन्हें और बल प्रदान करेंगे ताकि एजेंडा तेज़ी से दौड़ सके। मुझे ये समझ नहीं आता कि ऐसी समलैंगिक कथाओं में जौहर हिन्दू धर्म के कैरेक्टर ही क्यों डालता है। ऐसा करके वह एक धर्म के प्रति निष्ठा और सम्मान दिखाता है और दूसरे धर्म के प्रति अपने एजेंडे को रेखांकित कर देता है।
भारत के प्रबुद्ध नागरिकों के मन में यही प्रश्न उठ रहा है कि आखिर ये सब कैसे रुकेगा? हमारी सरकार तो एक तरह से इन आतंकवादियों के सामने समर्पण कर चुकी है। न्यायालय केंद्र को इसके लिए लगातार फटकार लगा रहा है। ये सब देखते हुए हमारे मंत्री की चुप्पी निहायत ही शर्मनाक है। प्रकाश जावड़ेकर को क्या लज्जा नहीं आती?