देवासुर संग्राम चल रहा , पर इंद्र बहुत मक्कार है ;
असुरों से ये इश्क लड़ाता , देवों का गद्दार है ।
जब तक ऐसा इंद्र रहेगा , देव कभी न जीतेंगे ;
सदा असुर ही हावी होंगे , देव सदा पीड़ित होंगे ।
सारे असुर सदा ही जागृत , नये – नये दांव चलाते हैं ;
पर सारे देव इंद्र को देखें , इसी से धोखा खाते हैं ।
इंद्र तुम्हारा बिका हुआ है , तुमको ही मरवा देगा ;
अपने इंद्र को फौरन बदलो , ये सबका गला कटा देगा ।
इंद्र सदा ही धोखा देता , नाटक – नौटंकी करता है ;
लटकों झटकों में फंसा-फंसा कर , अपना काम बनाता है ।
गलियारों की चकाचौंध में , ये मंदिर तुड़वाता है ;
खुलकर जजिया बांट रहा है , मंदिर को लुटवाता है ।
इसकी चालों को फौरन समझो,तत्क्षण अपने इंद्र को बदलो
आने वाले चुनाव से पहले , हर हालत में इसको बदलो ।
वरना तुम सब हार जाओगे , सदा-सदा को मिट जाओगे ;
सारे दल हैं पाप के दलदल , इनसे कैसे बच पाओगे ?
अब तो केवल यही मार्ग है , सारी पार्टी बाजी छोड़ो ;
किसी भी दल का या निर्दल हो, केवल कट्टर-हिंदू पकड़ो ।
केवल कट्टर-हिंदू जीते , या “नोटा” ” ब्रह्मास्त्र” चलाओ ;
या तो जीते कट्टर-हिंदू , वरना चुनाव ही रद्द कराओ ।
चाहे जितने चुनाव रद्द हों , उसमें भी कल्याण ही होगा ;
मुट्ठी भर जितने जीतेंगे , कट्टर-हिंदू का बहुमत होगा ।
मिली-जुली सरकार बनेगी , कट्टर-हिंदू सरकार बनेगी ;
हिंदू – राष्ट्र बनेगा भारत , मानवता भी बची रहेगी ।
वरना असुर- राज्य आने पर , धर्म-सनातन नहीं बचेगा ;
सर्वश्रेष्ठ जो धर्म-सनातन , उसका कोई नाम न लेगा ।
बड़ा दुखद है इंद्र का बिकना , पूरा दल ही हुआ नपुंसक ;
किंकर्तव्यविमूढ़ हैं सारे-हिंदू , उनके नेता पूर्ण- नपुंसक ।
हिंदू अपने नेता बदलो , उनके पीछे चलना छोड़ो ;
“नोटा” है “ब्रह्मास्त्र” तुम्हारा, उससे हवा के रुख को मोड़ो ।
साफ करो ये दलों का दलदल, एक-एक वोट को तरसाओ ;
केवल कट्टर-हिंदू ही जिताकर , देश को हिंदू-राष्ट्र बनाओ ।
हिंदू – शासन सर्वश्रेष्ठ है , “मनुस्मृति” से इसे चलाओ ;
धर्म , राष्ट्र व देश के दुश्मन , इनसे पूरी मुक्ति पाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”