मुंबई शहर कभी नहीं रुकता। बाढ़ इसे चुनौती देती है। आतंकी हमले इसे पटरी से उतारने की कोशिश करते हैं लेकिन ये शहर न रुकता है, न थकता है। आज 26/11 को हुए दस वर्ष बीत गए हैं। कसाब नहीं है लेकिन उसकी कड़वी यादें आज तक मुंबई के जेहन से दूर नहीं हो सकी है। खून से लथपथ उस रात को मुंबई घायल हुई लेकिन उसका हौंसला कसाब नहीं गिरा सका। उस रात का साक्षात्कार कर चुके कुछ लोगों के जज्बे के बारे में जानना आज जरुरी हो जाता है।
विष्णु जेंडे उस वक्त सीएसटी पर अनाउंसर के पद पर कार्यरत थे। उस रात को याद करते हुए आज भी उनका चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है। उनकी जुबानी ये कहानी सुनिए। ‘उस समय रात के 9:50 बजे थे। जहाँ से एक्सप्रेस गाड़ियां रवाना होती है, वहां एक धमाका हुआ और लोग इधर-उधर भागने लगे। मैंने जीआरपीएफ को अनाउंस किया कि घटना स्थल पर पहुंच जाए। मैं लोगों को घोषणा कर एक नंबर प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए कहने लगा। फिर अचानक फायरिंग की आवाज़ों से स्टेशन गूंज उठा। इसके बाद मैंने लोगों से कहा कि प्लेटफॉर्म पर न आकर बाहर के रास्ते से निकलने की कोशिश करे।
मुझे कसाब की वो कुटिल हंसी याद है। राइफल के साथ वो प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ता आ रहा था। हंसते और लोगों को गालियां देते हुए अपनी राइफल से गोलियां चलाता जा रहा था। इसके बाद मेरी अनाउसमेंट की स्पीड अपने आप बढ़ने लगी। इसके बाद उन्होंने ऊपर की तरफ फायरिंग की। एक गोली आफिस की खिड़की तोड़ती हुई निकल गई। मुझे लगा ये मेरा आखिरी दिन है। फिर सोचा आखिरी बार परिवार से बात कर लेता हूँ। मैंने परिवार से कहा सेफ हूं लेकिन मैं जानता था कि वो लोग अंदर घुसकर कभी भी मुझे मार सकते थे।
जब रात को बाहर निकला तो स्टेशन पर चारो ओर खून और लाशों का ढेर लगा था। मैं कुछ सोचकर वापस लौट आया और सुबह तक लोगों की मदद करता रहा। मुझे सुबह सीनियर अधिकारी ने कहा आपको किसने बोला था मदद करने के लिए। मैं बोला कोई था ही नही बताने के लिए। प्रेस में छापा तो पत्नी ने बोला बताया क्यो नही। इसके बाद मुम्बई को अहसास हुआ कि रेलवे उदघोषक का काम अपने आप मे कितना बड़ा है।
मारुति फड़ स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री की गाड़ी चलाते थे। टीवी पर देखा आतंकी हमला हुआ है। प्रिंसिपल सेक्रेटरी का फोन आया कि तुरंत मंत्रालय जाना हैं। मैं जब वहां पहुंचा तो कसाब और उसका साथी आईपीएस ऑफिसर दाते पर ग्रेनेड डालकर भाग रहे थे। तभी ये दोनों कार के सामने आ गए। मैं समझ पाता इससे पहले ही कसाब और उसके साथी ने बाइक पर आए दो पुलिसकर्मियों पर गोली चलाईं। मैंने तुरन्त उनके ऊपर गाड़ी चढ़ा दी । फुटपाथ पर गाड़ी चढ़ी तो वो नीचे गिर गए। उसका वेपन हाथ से छूट गया। मैंने दो बार गाड़ी चढाने की कोशिश की लेकिन वे बच गए।
फिर कसाब ने बाए हाथ से वेपन उठाकर मुझपर फायर किया। मैं पीछे हट गया। एक गोली सीट कवर को फाड़ते हुए निकल गई और दूसरी ने मेरी बाए हाथ की उंगली तोड़ दी। मैंने नीचे झुककर लगभग 35 मीटर गाड़ी रिवर्स ली। एक गोली कार के दरवाजे से टकरा कर मेरी कमर में घुस गई। एक गोली ने गाड़ी के लेफ्ट टायर में घुस गई। इसके बाद उन्होंने ग्रेनेड फेंका। ग्रेनेड गाड़ी के नीचे से लुढकर आगे जाकर फूटा। इसके बाद मैंने मोबाइल बंद किया, गाड़ी लॉक कर दी और मरने की एक्टिंग करने लगा। वे मेरी कार के बिल्कुल करीब आ गए। दोनों ने कार के गेट खोलने की कोशिश की लेकिन गेट नहीं खुला। मुझे मरा समझकर वे आगे बढ़ गए।
श्याम सुंदर चौधरी घटना वाली रात विले पार्ले में सड़क पार कर रहे थे और एक टैक्सी धमाके की चपेट में आ गए। उनकी गंभीर चोटें आई। डाक्टरों ने कहा सर्जरी करनी पड़ेगी। उनकी पत्नी बेबी चौधरी ने बताया कि शरीर का दायां हिस्सा हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो गया। ब्रेन लगभग डेमेज हो चुका है। इलाज का खर्च इतना हुआ कि संयुक्त परिवार टूट गया। ससुर गुजर गए। मैंने नौकरी कर ली। ज़िंदगी से लड़ना सीखा। पत्नी उम्मीद करती है कि ये ठीक हो जाएंगे।
देविका रोटावन को जब कसाब ने गोली मारी थी तब वे सिर्फ नौ साल की बच्ची थी। दस साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता के साथ कोर्ट जाकर कसाब को पहचाना। उनकी गवाही न होती तो कसाब को फांसी देने में बहुत मुश्किल आती। घटना वाली रात देविका अपने पिता और भाई के साथ पुणे जा रही थी। स्टेशन पर कसाब ने उन्हें गोली मार दी।
उनका परिवार इस मामले में पीछे हट गया लेकिन देविका और उनके पिता नहीं घबराए। देविका के जीवन का लक्ष्य उस रात के बाद हमेशा के लिए बदल गया। अब वे आईपीएस अधिकारी बनकर आतंकियों का सफाया करना चाहती है। ये बात और है कि देश की इतनी बड़ी सेवा करने वाली देविका के परिवार को सिर्फ इसलिए किराए का घर नहीं मिलता क्योंकि उन्होंने कसाब के खिलाफ गवाही दी थी।
URL: Memories of the Mumbai attack are still fresh
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