Sandeep Deo:-धीरेंद्र शास्त्री महाराज जी की ‘जात-पात की करो विदाई’ पदयात्रा का स्वागत है, परंतु पहले इसके लिए बड़े पैमाने पर जाति सर्टिफिकेट छोड़ने के लिए भी तो लोगों को पदयात्रा में समझाना होगा न? जैसे कभी स्वामी सहजानंद सरस्वती जी ने बड़ी संख्या में सवर्ण जमिंदारों से जमीन छुड़वाया था?
१) आखिर कितनों ने धीरेंद्र शास्त्री जी की पद यात्रा में अपनी जाति का सर्टिफिकेट फाड़ कर यह शपथ लिया है कि वो या उनका परिवार नौकरी आदि किसी कार्य में अपनी जाति का उपयोग नहीं करेगा?
२) पदयात्रा में शामिल आरक्षित वर्ग के कितने अमीर लोगों से उन्होंने यह शपथ लिया है कि वो स्वयं से अपने आरक्षण का त्याग कर हिंदू एकता स्थापित करें। इस पर तो बकायदा कुछ समय पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक निर्णय में निर्देश दिया था!
३) पदयात्रा में सम्मिलित होने वाले कितने नेताओं ने यह शपथ लिया है कि वो हिंदू एकता के लिए आगे से जाति की राजनीति नहीं करेंगे?
४) ‘एक है तो सेफ है’ कहने वाले सरकार के नुमाइंदों ने क्या यह आश्वासन दिया है कि वह जातिगत व मजहबी योजनाओं को निरस्त कर, केवल अमीर-गरीब के आधार पर योजनाओं को लागू करेंगे ताकि ‘एक हैं’ की सही फिलोसॉफी समाज में ऊपर से नीचे तक लागू हो सके?
५) क्या इस पदयात्रा में सम्मिलित नेताओं ने यह शपथ पत्र दिया है कि वह संविधान में वर्णित जन्मगत जाति के आधार को समाप्त कराने हेतु प्राइवेट मेंबरशिप बिल संसद में पेश करेंगे?
यदि इन पांचों में से एक भी काम हो गया तो समझो पदयात्रा सफल है, अन्यथा ‘एक पार्टी विशेष’ को ‘झुंड का झुंड’ हिंदू वोट दिलाने के अलावा इसका कोई दूरगामी प्रभाव नहीं पड़ने वाला है! अच्छी फसल के लिए जड़ की गुराई करनी पड़ती है, न कि पत्तियों की!