अनिल गुप्ता । बात कोई तेरह चौदह साल पुरानी है सेंधवा नाके (मध्य-प्रदेश महाराष्ट्र का नाका) पर हाई फाई चेकिंग के दौरान एक बहुत ही ज्यादा ओवरलोड ट्रक पकड़ा गया। ट्रांसपोर्ट कम्पनी का दुर्भाग्य/संजोग देखिये उसी कम्पनी का एक ट्रक दोसा राजस्थान के निकट एक बेहद रसूखदार की कार के साथ एक्सीडेंट का शिकार हो गया था समाचार-पत्रों में घायलों के, ट्रक और कार के बड़े बड़े फोटो छपे थे।
इधर जब सेंधवा नाके पर ओवरलोड ट्रक के कागजात आदि चेक किये जा रहे थे उसी समय क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (RTO) कडकडाती ठण्ड में धूप खाते हुए समाचार-पत्र पढ़ रहे थे। अचानक उन्हें कुछ अजीब सा लगा क्योंकि दौसा राजस्थान में जिस ट्रक का एक्सीडेंट हुआ था वो नंबर उन्होंने अभी अभी यहाँ सेंधवा नाके पर पकड़ा है। उन्होंने ट्रक के कागज़ात दुबारा मंगवाए नंबर बिलकुल वही था समाचार-पत्र में एक्सीडेंट वाले ट्रक के समान।
अधिकारी के कान खड़े हो गए उन्होंने दौसा दुर्घटना स्थल के पुलिस अधिकारी से संपर्क किया और सारे कागज़ कॉपी करके तुरंत मेल करने को कहा! अधिकारी महोदय उस समय हैरान रह गए जब दोनों ट्रकों की एक एक जानकारी ‘एज इट इज’ समान निकली उन्हें माजरा समझते देर ना लगी, उन्होंने ट्रक को जब्त किया और ट्रांसपोर्टर को बिना सूचना दिए ट्रांसपोर्ट के मुख्यालय शायद इंदौर या ग्वालियर पहुँच गए।
ट्रांसपोर्टर को तलब किया गया जो काफी मोटी खाल वाला बन्दा था भारतीय भ्रष्टाचारी अर्थ-व्यवस्था के तालाब में अठखेलियाँ करता मगरमच्छ! रिश्वत पर चलती व्यवस्था का पुराना खिलंदड़! उसने मामला बेलेंस करने के लिए राजनैतिक रसूख से लेकर अपने सारे पत्ते फेंके लेकिन RTO साहब किसी और मिट्टी के बने थे शहर के पूरे मीडिया को सूचना दी हुई थी बात नहीं बनी और कोर्ट से आग्रह करके ट्रांसपोर्टर साहब रिमांड पर ले लिए गए।
जो सच सामने आया बहुत ही हैरतअंगेज था। एक एक रजिस्ट्रेशन पर चार ट्रक चल रहे थे यानी पांच रजिस्ट्रेशन पर बीस ट्रक अब इस बात के अन्दर ज्यादा नहीं जाउंगा आप खुद सोचिये यातायात कर/व परमिट से लेकर इसके अन्य कितने लाभ उन्होंने पंद्रह बीस साल में उठाये होंगे.अब आते हैं भारतीय अर्थव्यवस्था में जारी की हुई 1000 और 500 के नोटों के मूल्य पर यह कुल इकोनोमी में साढ़े चौदह लाख करोड़ है जिसमे से आज तक करीब बारह लाख करोड़ जमा हो जायेंगे।
अब सवाल यह उठता है, क्या अब भारत में सिर्फ ढाई लाख करोड़ के ही नोट बेंको के बाहर रह गए हैं?
अगर यह आंकड़ा पंद्रह लाख करोड़ को पार कर गया तो क्या यह माना जाए कि ट्रक की तरह पांच सौ और हजार के नोटों की एक ही सीरीज कई बार छापकर मार्केट में पेल दी गई। क्योंकि एकबार नोट बाजार में उतर जाता है तो उसके नंबर,सीरीज से किसी को कोई मतलब नहीं रह जाता है। बेंक और बेंक की मशीने भी सिर्फ असली नकली नोटों पर ध्यान देती है एक ही नम्बर और एक ही सीरीज के कितने ही नोट अर्थव्यवस्था में घूम रहे हो उसका रिकोर्ड रखना या पकड़ा जाना लगभग असंभव होता है।
जहां तक मैं जानता हूँ RBI में एक-एक नोट का रिकॉर्ड रहता है तो फिर इतने सारे हजार पांच सौ के नोट भारतीय अर्थ-व्यवस्था में कैसे विचरण कर रहे हैं क्योंकि बेंकों में नकली नोट जमा करना किसी हालत में संभव नहीं है। क्या नोटों की छपाई में बहुत बड़े गोरखधंधे चल रहे थे? क्या आर.बी.आई के कुछ आला-अधिकारी, वित्त-मंत्रालय भी बहती गंगा में हाथ धो रहे थे?
दोस्तों हजार पांच सौ के नोट अगर बेंकों में साढ़े चौदह लाख करोड़ को पार कर जाते हैं तो समझ जाओ कि इस देश को मिटने में बहुत कम समय बाक़ी रह गया था और पिछली सरकारों में कुछ लोग पाकिस्तानी जावेदखनानी से भी बड़े देश के गद्दार थे जो इस देश को दीमक की तरह चाट रहे थे।
अगर यह बैंक मैनेजरों की मिली भगत नहीं है तो आखिर कैसे सौ करोड़ से अधिक मूल्य के नए नोट बरामद हो रहे हैं! चैन्नई में 170 करोड़ के नए नोट और 144 करोड का सोना बरामद हुआ है। सरकार तत्परता से कालाबाजारियों और बैंक मैनेजरों के नेक्सस पर प्रहार करे अन्यथा अभी तकलीफ सह कर भी समर्थन कर रही जनता का मूड उखड़ते देर नहीं लगेगी।
साभार:अनिल गुप्ता वाया वरिष्ठ पत्रकार सुमन भट्टाचार्य के फेसबुक वॉल से.
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