ये नेता भी अकबर जैसा , दीनेइलाही चला रहा है ;
जैसा हश्र हुआ था उसका , वैसा ही ये बुला रहा है ।
पता नहीं क्या इसके मन में ? कितनी बर्बादी लायेगा ;
छिन्न – भिन्न कर देगा सब कुछ , तब ही ठंडक पायेगा ।
इसका पद में रहना घातक , हिंदुस्तान मिटा देगा ;
दो साल का समय बहुत है , पहले ही राष्ट्र भगा देगा ।
एक-एक दिन बहुत कठिन है , हमको राष्ट्र बचाना है ;
परम – साहसी राष्ट्रभक्त अब , यूपी – आसाम से लाना है ।
एक – एक हिंदू उठ जाओ , अब केवल ये ही मांग करो ;
हर – हालत में हर- सूरत में , राष्ट्र का अब ये काम करो ।
अब भी हिंदू चुप बैठेगा , समझो धर्म से घात करेगा ;
ये नेता है धर्म का द्रोही , हिंदू पर आघात करेगा ।
कितना कायर,कमजोर है कितना,क्यों ये धर्म का दुश्मन है;
राष्ट्र ने इसको दिया है सब कुछ, फिर भी क्यों गंदा मन है ?
धर्म-विरोधी बातें आखिर , क्यों इतनी बकवास कर रहा ?
धर्म का क ख ग न जाना,फिर भी पंडित सी बात कर रहा ।
तुझको मजहब इतना प्यारा , जाकर उसको अपना लो ;
नहीं दोगलापन अच्छा है , जो मन में है वो कर लो ।
नहीं बांधता धर्म-सनातन , कोई भी आकाश चुनो ;
जितनी क्षमता तेरे अंदर , उतनी ऊंची परवाज चुनो ।
क्षमता से ज्यादा मत उड़ना , मुंह के बल गिर जाओगे ;
सोच-समझकर कदम उठाओ , वरना केवल पछताओगे ।
सूरज को दीपक दिखलाते , कब तक घटिया बात करोगे ?
जो भी बोलो तौल के बोलो, वरना अपना नुकसान करोगे ।
जिस बारे में कुछ न जानो , उस बारे में मौन रखो ;
तेरे जितने सलाहकार हैं , उनमें कुछ विद्वान रखो ।
विद्वानों से धर्म को सीखो , सारे मजहब भी जानो ;
तुलनात्मक अध्ययन को करके , धर्म – सनातन पहचानो ।
हालांकि उम्मीद नहीं है , तेरे सही राह आने की ;
राष्ट्र का अब कल्याण इसी में , बारी है तेरे जाने की ।
पूरब से ही सूरज आता , यूपी – आसाम में सूर्योदय ;
उसको पूरे – राष्ट्र में छाना , तेरा अब है अस्ताचल ।
खुशी-खुशी अस्ताचल जाओ , ससम्मान विदाई हो ;
वरना होनी तो होके रहेगी , बस तेरी रुसवाई हो ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”