स्वामी विज्ञानंद जी आईआईटी और अमरीका से पढ़कर, फिर सब छोड़कर संन्यासी हो गये। वे आरएसएस से गहराई से जुड़े हैं और अमरीका के संघ (आरएसएस) से जुड़े हिंदुओं पर उनका अच्छा प्रभाव है। भारत में भी वे लगातार हिंदू हित में प्रचार करते हैं।
शालिग्राम शिला पर मेरे कल के लेख पर उन्होंने अंग्रेज़ी में लिखा, ‘ विनीत नारायण जी तिरूपति बाला जी में 8 फीट ऊँचा बाला जी का विग्रह शालिग्राम को तराश कर बनाया गया है। जो नेपाल से लाया गया था। आप वहाँ पता कीजिये।’
मैंने तिरूपति देवस्थान से प्रशिक्षित व दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध शिल्पकार श्री डीएनवी प्रसाद ( जिनके निर्देशन में संकर्षण भगवान का विग्रह तैयार हुआ था ) से फ़ोन पर पूछा तो वे बोले कि “ बाला जी का ये विग्रह स्वप्रगट है किसी ने तराशा नहीं। इसका वर्णन वराह पुराण में आता है।उन्होंने ये भी कहा कि शालिग्राम शिला को तराशा नहीं जा सकता। वे तो स्वयं साक्षात विष्णु विग्रह हैं।”
फिर ब्रज के एक और संत ने बताया कि ब्रज की विभूति रहे संत श्री प्रियाशरण दास बाबा जी महाराज कहते थे कि शालिग्राम शिला को बायें हाथ से छुआ भी नहीं जा सकता। ये बहुत अपराध होता है। बाईं हथेली पर वस्त्र बिछाकर सीधे हाथ से उन्हें उठा कर तब रखा जाता है। उन पर नक़ली नेत्र चिपकाना या अन्य तरह का शृंगार करना भी वर्जित है। उन्हें केवल तुलसी-चंदन अर्पित किया जाता है।” फिर शालिग्राम शिला को एक हाथ से कैसे तराशा जाएगा ?
तब मैंने स्वामी विज्ञानानंद जी से विनम्र निवेदन किया कि वे इस बात का लिखित प्रमाण प्रस्तुत करें कि किस काल में और किन शिल्पकारों के द्वारा इन्हें तराश कर बनाया गया था। क्योंकि लोकमान्यता तो ये है और शास्त्रों में भी उल्लेख है कि बाला जी इस विग्रह के रूप में ही द्वापर में प्रगट हुए थे।
विनीत नारायण
द ब्रज फाउंडेशन
वृंदावन