कथित रूप से अमेरिका में आयोजित हुई ‘डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्वा’ कांफ्रेंस की पहली विचित्र बात यह है कि इस के आयोजकों की पहचान गायब है। उस की केवल एक वेबसाइट हैं। जिस के होम-पेज पर न कोई नाम है, न पता, न फोन नं, न ई-मेल आई.डी.। कांफ्रेस भी ऑनलाइन होगी। इसलिए, यह संभव है कि इस के आयोजक यहीं दिल्ली-कलकत्ते या श्रीनगर में बैठे हों, जैसे गुड़गाँव स्थित ‘कॉल-सेंटर’ हैं। बहरहाल, 10-12 सितंबर को हुए इस सम्मेलन में केवल वक्ताओं के नाम जाहिर हैं। उन में अनेक जाने-माने हिन्दू विरोधी प्रचारक, विद्वान हैं। कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों के नाम इस आयोजन के ‘सहयोगी’ रूप में हैं, किन्तु उस की सचाई संदिग्ध है। कुछ विश्वविद्यालयों ने उस में अपना नाम जोड़ने पर आपत्ति की है। यानी, आयोजकों ने प्रोपेगंडा के लिए ‘50+’ विश्वविद्यालयों का सहय़ोग बता दिया है। dismantling global hindutva conference
जिन्हें दस वर्ष पहले गुलाम नबी फई प्रकरण याद हो, उस में ऐसे अनेक सम्मेलनों का आयोजक तो फई था, लेकिन असली आयोजक छिपा रहता था। उन आयोजनों में राजेन्द्र सच्चर, कुलदीप नैयर, अरुंधती राय, गौतम नवलखा, प्रफुल्ल बिदवई, कमल मित्र चिनाय, आदि बुद्धिजीवी अमेरिका जाया करते थे। फई ने अपनी और अपने ‘कश्मीरी अमेरिकी काउंसिल’ (के.ए.सी.) की असलियत छिपा रखी थी। यह असलियत कि फई दशकों से पाकिस्तानी आई.एस.आई. के निर्देश व पैसे से भारत-विरोधी प्रोपेगंडा करता था। लेकिन वह अपने को ‘स्वतंत्र’ बताकर काम करता था, जो धोखाधड़ी थी। इस से अमेरिकी लोग गुमराह होते थे। वे आई.एस.आई. प्रोपेगंडा को किन्हीं बुद्धिजीवियों, पीड़ितों का स्वर समझते थे। इसी धोखे के लिए फई को अमेरिकी पुलिस ने गिरफ्तार था।
बहरहाल, तब से मिसिसिपी में बहुत पानी बह चुका। पर जिस तरह, और जिस समय यह आयोजन है, उस से साफ है कि इस्लामी जिहाद, तालिबान, और शरीयत की क्रूरताओं से ध्यान बँटाने के लिए हिन्दू-विरोधी सम्मेलन किया जा रहा है। आयोजक छिपे हुए हैं, जबकि घोर हिन्दू-द्वेषी वक्ता, विद्वान जमा हो रहे हैं। आयोजकों द्वारा उग्र भाषा में हिन्दू समाज के विरुद्ध दुष्प्रचार और घ़ृणा फैलाई जा रही है।
दूसरी विचित्रता यह है कि आयोजन के पोस्टर में साफ-साफ आर.एस.एस. की पोशाक पहने व्यक्ति को रैंची (रेकिंग बार) से खींचा जा रहा है, जैसे कील उखाड़ी जाती है। ऐसे हिंसक पोस्टर के बावजूद संघ-भाजपा के नेताओं की ओर से अभी तक संभवतः एक शब्द नहीं कहा गया! शायद इसलिए कि हिन्दू धर्म-समाज के नाम पर आर.एस.एस. को निशाना बनाना दोनों पक्ष को पंसद है। तमाम हिन्दू-द्वेषी – वामपंथी, मिशनरी, इस्लामी – किसी भी हिन्दू चिन्ता को झुठलाते, उस पर पर्दा डालते हैं। सो, हिन्दू समाज के स्वर को डुबाने के लिए वे आर.एस.एस. का हौवा खड़ा कर राजनीतिकरण करते हैं। कि देखो, यह संघ-परिवार राक्षस है जो गैर-हिन्दुओं पर अत्याचार करता है। बस। चूँकि संघ-परिवार राजनीतिक ताकत है, इसलिए अनजान दुनिया को यह बात फिट लगती है। बल्कि, इसे भाजपा के देसी राजनीतिक विरोधियों, पार्टियों का भी समर्थन मिल जाता है।
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इस प्रकार, वृहत हिन्दू समाज पर हो रहे कानूनी, शैक्षिक, धार्मिक अत्याचार, भेदभाव सब डूब जाते हैं। सामने ही नहीं आ पाते। सारे हिन्दू समाज को दबा कर आर.एस.एस. का हौवा खड़ा करने से हिन्दू-द्वेषियों को यह शानदार लाभ मिलता है। इसलिए, संघ के आलोचक हिन्दू या स्वतंत्र विद्वान भी क्यों न हो, सब को ‘संघी’ भड़ैत कह कर निपटाया जाता है। उन की बातें उपेक्षित रहती हैं, उन्हें सुनने से भी रोका जाता है। यह कई दशकों से सफलता पूर्वक होता रहा है। सीताराम गोयल, के. एस. लाल, श्रीकान्त तलाघेरी, जैसे हिन्दू विद्वानों को भी ‘संघी टट्टू’ कहकर डिसमिस किया गया। आम भारतीय समाज भी उन्हें जान न पाया!
यह तो सोशल मीडिया के आने से कुछ बातें खुलनी शुरू हुई हैं कि सारे हिन्दू स्वर संघ-भाजपा के नहीं हैं। बल्कि मुख्यतः गैर-संघी ही हैं। अभी भी देख सकते हैं कि इस कांफ्रेंस की आलोचना में संघ-परिवार के नेता तो मौन हैं। वे अपने ‘एक डीएनए’ और ब्रिटिश-निंदा राग में मस्त हैं। सारी आलोचना स्वतंत्र हिन्दू लेखक, पत्रकार या हिन्दू समर्थक विदेशी विद्वान कर रहे हैं।
जबकि सत्ता हाथ में होने से संघ-परिवार इस कांफ्रेस के आयोजकों का पता सरलता से लगा सकता है। पर उसे तो ऐसे आयोजनों से लाभ ही है! सारे हिन्दू समाज को संघ में सिमटा देने से चुनावी फायदा होता है। इसीलिए, इस बिन्दु पर तमाम हिन्दू-द्वेषी लोग और संघ-परिवार सहमत हैं, कि हिन्दू समाज का एकाधिकार संघ के पास है। यह हिन्दू-हितों के लिए कितना भी घातक हुआ हो, पर संघ-भाजपा के लिए फायदेमंद रहा है! क्या इसीलिए वे कुलदीप नैयरों, नामवरों, वहीदुद्दीनों, शहाबुद्दीनों, अकबरों, आदि को पद-पुरस्कार देते नहीं अधाते? इसीलिए वे सीताराम गोयल जैसे मनीषियों को उलटे लांछित भी करते रहे हैं? आज भी, सोशल मीडिया पर जितने प्रखर हिन्दू स्वर हैं, उन्हें वामंपथियों, इस्लामियों से ज्यादा गालियाँ संघियों से मिलती हैं। यह हिन्दू समाज को अँधेरे में डुबाए रखने की ऐसी दुरभिसंधि है जहाँ ‘डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्वा’ कांफ्रेंस के आयोजक और संघ-भाजपा नेतृत्व एक हैं।
राजनीतिक दृष्टि से यह स्वभाविक भी है। यह साफ इतिहास है कि हिन्दू समाज पर जितनी चोट पड़ती रही है, उस की वेदना, छटपटाहट का चुनावी लाभ भाजपा को होता है। तब वे ऐसी चोट से क्यों परेशान हों? बल्कि हिन्दुओं को जेब में मानकर मुसलमानों, क्रिश्चियनों को माल-पानी देते रहते हैं। अभी भी यही हो रहा है। बंगाल में जिहादियों के हाथों या अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा हिन्दुओं-सिखों की दुर्दशा, अपमान, और नया हौसला पाए इस्लामियों पर कुछ भी बोलने के बजाए वे मरे हुए ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कोस रहे हैं। यह विचित्र रुख अनायास असंभव लगता है!
कारण जो हो, व्यवहार में यही हुआ है कि संघ-भाजपा ने हिन्दुओं की दुर्गति को वोट में बदलने के सिवा किसी बात की परवाह नहीं की। उलटे विविध हिन्दू-विरोधी प्रावधान, कानून, संस्थान, आयोग, आदि बनाने में सहयोग किया। सीधे मारे जाते हिन्दुओं से भी आँखें फेरे रखीं। बंगाल और बिहार इस के ताजे उदाहरण हैं। कश्मीर से लेकर केरल तक यह पहले भी होता रहा है। कुछ दिखावटी मुद्दे वे हिन्दू भावना का दोहन करने के लिए उठाते रहते हैं। ताकि हिन्दू-आक्रोश गर्म रहे। लेकिन सत्ता पाकर या सत्ता से बाहर भी वे असली, बुनियादी हिन्दू-हितों का नाम तक नहीं लेते। इसीलिए अपनी शिक्षा से लेकर अपने मंदिरों तक हिन्दू समाज दूसरों की तुलना में वंचित, प्रताड़ित, शोषित हैं। जबकि दर्जन भर राज्यों और ऊपर भी भाजपा सत्ता मजे से स्वच्छता, गैस, दवाई, सड़क, पुल, सिटी, पर्यटन, या फिर दलित-ओबीसी, आदि तमाशों में लगी रहती है। मानो उसे चेतना तक न हो कि हिन्दू समाज दिनो-दिनों तोड़ा, मिटाया जा रहा है। वह केवल अपने वोट, सीट, बिल्डिंगें, गद्दी, आदि बढ़ाने में मस्त है।
सो, यह बिल्कुल संभव है कि जैसे गुलाम नबी फई के हमप्याले कुलदीप नैयर को बार-बार सम्मान देकर संघ-परिवार ने आभार जताया। वैसे ही, इस आयोजन के देसी-विदेशी सितारे भी पद्म-पुरस्कार या भारत रत्न की आशा रख सकते हैं। आखिर, संघ-भाजपा की सच्ची सेक्यूलरता-उदारता का दावा करने के लिए इस से अधिक मुफीद बात क्या हो सकती है! dismantling global hindutva conference