मीडिया से ज्ञात हुआ कि सिरम इंस्टीट्यूट की ‘कोवीशील्ड’ तथा भारत बॉयोटेक की ‘कोवैक्सिन’ को रिस्ट्रिक्टेड इमर्जेंसी प्रयोग हेतु डी जी सि आई ने मंज़ूरी दे दी है।
डी जी सी आई ने बताया कि ये दोनों ही वैक्सीन 110% सुरक्षित हैं। एप्रूवल मिलते ही सीरम इंस्टीट्यूट के सी ई ओ ने कहा कि फाइजर, मॉडर्ना तथा ऑक्फर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन की गुणवत्ता साबित हो चुकी है बाक़ी अन्य सभी वैक्सीन पानी की तरह सुरक्षित हैं।
इस प्रकार का बयान ऐसे वक़्त पर और भी दुर्भाग्यपूर्ण है जब वैक्सीन की गुणवत्ता को लेकर सभी असमंजस में हैं।
आज ही पता चला कि पुर्तगाल में फाइजर की वैक्सीन लगवाने के दो दिनों बाद एक स्वास्थ्य कर्मी सोनिया की बिना किसी लक्षण के मृत्यु हो गई, सभी स्वास्थ्य कर्मी सकपे में हैं।
आपको याद होगा कि वैक्सीन बनाने के लिये सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की फ़ंडिंग बिल गेट्ज़ ने की है। मीडिया के ज़रिये पता चला है कि सिरम इंस्टीट्यूट ने 40-50 मिलियन (4-5 करोड़) वैक्सीन एप्रूवल के पहले ही बना ली है।
क्या वैक्सीन का एप्रूवल महज़ औपचारिकता है। यह कोरोना विशेष समिति, डी जी सि आई एवं स्वास्थ्य मंत्रालय के लिये एक बहुत बड़ी ऑपार्चुनिटी है जिसका भारत सरकार पूरा-पूरा लाभ अवश्य उठायेगी।
सिरम इंस्टीट्यूट द्वारा bबनाई जा चुकी वैक्सीन की क़ीमत लगभग 2000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। वास्तविकता तो यह है कि सरकार द्वारा सिरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन बनाने का ऑर्डर अनौपचारिक रूप से पहले ही दिया जा चुका है
अब तो मीडिया का प्रयोग कर औपचारिकता का जामा पहनाया जा रहा है जिससे किसी को इस घोटाले की भनक ना लगे।
मीडिया ने सरकार की इस उपलब्धि को घंटों इस प्रकार से परोसा कि समूचे देशवासियों को वैक्सीन बनाने पर गर्व हो रहा होगा।
देश और दुनिया के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों तथा डॉक्टरों के अनुसार कोरोना का नया स्ट्रेन 70% से अधिक तेज़ी से फैलता है परन्तु घातक नहीं है और पूर्व में निर्मित वैक्सीन इस स्ट्रेन पर भी बराबरी से असरकारक होगी।
इस वक्तव्य को सुनने के बाद वैज्ञानिकों और डॉक्टरों से विश्वास उठना लाज़मी है। यदि कोरोना का नया स्ट्रेन घातक नहीं है तो वैक्सीन लेने की क्या आवश्यकता है?
दूसरा यदि कोरोना के बदलते हुये स्ट्रेन पर पुरानी वैक्सीन कारगर हो सकती है तो फिर एच आई वी की भी वैक्सीन जल्द ही आ जानी चाहिये क्योंकि एच आई वी की वैक्सीन ना बन पाने का मुख्य कारण तेज़ी से बदलता हुआ स्ट्रेन ही है।
वैज्ञानिकों तथा डॉक्टरों का यह भी कहना है कि एक वैक्सीन की एफीकैसी 40-50% और दो वैक्सीन लेने पर 70% एफीकैसी की संभावना है अत: वैक्सीन लेने के बावजूद भी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं है।
वैज्ञानिकों की माने तो सुरक्षित वैक्सीन बनाने में कम से कम 10 वर्ष का समय लगता है अत: 10 महीनों में तैयार होने वाली वैक्सीन के लॉंगटर्म साइड इफ़ेक्ट का अनुमान भी नहीं है।
हमारे देश में बिना वैक्सीन, दवा व थिरैपी के कोरोना का रिकवरी रेट 97% हो गया है और अभी तक में मात्र 1,48,738 मृत्यु हुई हैं। कोरोना से कहीं अधिक मृत्यु कई अन्य बीमारियों से होती हैं परन्तु सरकार कोरोना को लेकर सबसे अधिक चिंतित दिख रही है।
क्या सरकार कोरोना को नई बिज़नेस ऑपार्चुनिटी मान बैठी है ? देश का तो नहीं पता परन्तु सरकार ने कोरोना से अरबों-खरबों का व्यापार कर लिया है और सभी को वैक्सीन लगवाकर तो ऐतिहासिक व्यापार करने वाली है।
इस प्रकार की आपाधापी में वैक्सीन को इमरजेंसी एप्रूवल देना मानवता के साथ एक जघन्य अपराध है। सबसे अच्छी बात यह है कि यह वैक्सीन स्वास्थ्य विभाग के लोगों को सबसे पहले दी जाने वाली है।
मेरा सुझाव है कि वैक्सीन स्वास्थ्य विभाग के के कर्मचारियों के बाद देश के गणमान्य लोगों को लगवाना चाहिये जिससे उन्हें कोरोना से सुरक्षित किया जा सके।
आश्चर्यजनक बात है कि कोरोना से संबंधित ये सभी तथ्य मीडिया के माध्यम से सरकार निरंतर परोसती जा रही है और जनता बिना किसी तर्क के अनुसरण करती जा रही है।
कमाण्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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