मधुकिश्वर। 1. #Self_Declared_GangaPutra,@narendramodi ji,क्या sewage व industrial effluents लिप्त गंगा-यमुना का पानी पूजनीय कहलाने का हक़दार है ? यह अनोखा संयोग रहा कि मेरी तीन बार पूरी प्लानिंग हो गई इस वर्ष के कुंभ में सम्मिलित होने की, लेकिन तीनों बार प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा। मैं कुंभ में स्नान करने नहीं, हिंदुओं की हज़ारों वर्षों से चली आ रही धार्मिक आस्थायों को जीवंत रखने की कटिबद्धता को नमन करने जाना चाहती थी। मैंने सन् 1994 में माँ गंगा और यमुना की बदहाली देखते हुए यह प्रण लिया था कि मैं तब तक गंगा-यमुना में स्नान नहीं करूँगी जब तक हमारा हिंदू समाज अपनी संगठित शक्ति द्वारा भारत की असुरी सरकार को इस बात के लिए बाध्य नहीं कर लेता कि हमारे घरों के sewage और industrial waste को हमारी पावन और पूजनीय नदियों के आँचल में उड़ेलना बंद किया जाये। और अब तो National Green Tribunal ने मोदी सरकार की Namami Gange Program की धज्जियाँ उड़ाते हुए यह रिपोर्ट जारी कर ही दी कि गंगा यमुना का पानी पीने या आचमन लायक़ तो छोड़ो, नहाने लायक़ भी नहीं है। इतनी बड़ी मात्रा में उसमें faecal matter और अन्य प्रकार की गंदगी पायी गई कि उसमें डुबकी लगाने से आप स्वयं को प्रदूषित करके निकल रहे हैं। शायद आज का हिंदू समाज इसी लायक़ है कि मल मूत्र व industrial effluents से लिप्त पानी में स्नान करके अपनी सेल्फ़ियाँ पोस्ट करने से धन्य महसूस करे।



2. मैं तीन बार कुंभ पर्व में शामिल हुई— 1. सन् 2010 में हरिद्वार का कुंभ, 2. सन् 2013 में प्रयागराज; 3. सन् 2017 में फिर हरिद्वार। लेकिन तीनों बार मैंने कुंभ स्नान नहीं किया। अन्य कारणों से जब भी हरिद्वार या ऋषिकेश जाना हुया तब भी गंगा स्नान नहीं किया—ना ही हाथ या पाँव तक धोये। मुझे समझ नहीं आता कि हमारे धर्म गुरु गंगा यमुना इत्यादि के प्रदूषण से विचलित क्यूँ नहीं होते? काश उन्होंने एक स्वर में सरकार को चेताया होता कि हम अपनी धार्मिक परम्परायों की मर्यादा बनाए रखने हेतु कुंभ आयेंगे तो अवश्य, लेकिन सभी हिन्दुओं को आग्रह करेंगे कि गंगा में स्नान की बजाय वहाँ बैठकर सामूहिक धरना व प्रार्थना की जाए कि ईश्वर हमारे शासकों को इतनी सी अकल दे कि वे हमारी नदियों को प्रदूषित करना बंद करे। सोचिए करोड़ों हिंदू यदि इस बात पर सामूहिक दबाव डालने लगें कि वोट उसी को देंगे जो हमारे शहर के गंदे नाले हमारी पावन नदियों में जाने से तुरंत रोकने का इंतज़ाम करने को तैयार हैं।
1. #Self_Declared_GangaPutra, @narendramodi ji,
क्या sewage व industrial effluents लिप्त गंगा-यमुना का पानी पूजनीय कहलाने का हक़दार है ?
यह अनोखा संयोग रहा कि मेरी तीन बार पूरी प्लानिंग हो गई इस वर्ष के कुंभ में सम्मिलित होने की, लेकिन तीनों बार प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा।… pic.twitter.com/RffwGUC7uu
— Madhu Purnima Kishwar (@madhukishwar) February 20, 2025




3. मेरे गंगा स्नान ना करने के प्रण के पीछे की कहानी यूँ है। सन् 1973 के दशक में हिमालय पर्वत श्रृंखला व वहाँ की नदियों को बचाने हेतु चिपको आंदोलन शुरू हुया तो मैंने उसके बारे में बहुत उत्सुकता से पढ़ना शुरू किया। सन् 1979 में जब मैंने मानुषी पत्रिका launch की तो चिपको जैसे आंदोलनों का और भी ध्यान से अध्यन किया और कई सारे लेख मानुषी में छपे। लेकिन सन 1991-1992 से मैं सक्रिय रूप से हिमालय व नदियाँ बचाओ आंदोलन से जुड़ गई। उस दौरान कई बार उत्तराखंड जाने का अवसर मिला । हिमालय पर्वत और वहाँ से उत्पन्न हमारी पूजनीय नदियों की बढ़ती दुर्दशा देख कर मन बहुत विचलित हुया, विशेषकर जब यह देखा कि गौमुख के तुरंत बाद से ही हिमालय की दैवी नदियों का पवित्र जल खींचकर इनमें मैला पानी, कूड़ा कचरा उड़ेलने का काम शुरू हो जाता है। ऋषिकेश और हरिद्वार के सभी हिंदू आश्रम अपना अपना sewage माँ गंगा के आँचल में उड़ेलते हैं। उसी समय यह प्रण लिया कि मैं तब तक गंगा-यमुना स्नान नहीं करूँगी, ना ही इनके जल से कभी आचमन करूँगी जब तक माँ गंगा और माँ यमुना के आँचल में sewage और industries का chemicals लिप्त ज़हरीला पानी इन पावन नदियों में उड़ेला जाता रहेगा।


4.@jyotirmathah के स्वामी अविमुक्तेश्वरान्द , स्वामी सानंद उर्फ़ प्रोफेसर G D Aggarwal और हरिद्वार स्थित शिवानन्द आश्रम के तपस्वियों को छोड़कर शायद कोई विरला ही हो जिसने गंगा के साथ हो रहे दुष्कर्मों के विरोध में मज़बूत आवाज़ उठायी हो।सन् 1994 में ही मैंने प्रण किया था कि: 1. मैं sewage water को गंगा जल मान कर ना तो कभी गंगा जल की एक भी घूँट पियूँगी और ना ही उसमें स्नान करूँगी। 2. मैं गंगा यमुना में स्नान या आचमन तभी करूँगी जब तक इन नदियों की पवित्रता फिर से बहाल नहीं हो जाती। और इस दिशा में मैं अपनी ओर से यथा संभव सहयोग करती रहूँगी। उन सारे अनुभवों की लंबी कहानी फिर कभी। उस समय से ही सरकार के Ganga Cleaning Abhiyan के दावों को सुनकर मेरा खून खौल उठता है। सरकार हमारी गंगा माँ को “साफ़” करने की जुर्रत कैसे करती है जबकि सरकारी सिस्टम के तहत ही हमारे घरों को मैला, मल मूत्र और ज़हरीले industrial effluents सरकारी तंत्र ही हमारी पूजनीय नदियों में उड़ेलने का काम कर रही है? यही नहीं इस उजड्ड सिस्टम को अंग्रेजों ने हम पर थोपा। उस समय श्री मदन मोहन मालवीय जी जैसे कांग्रेसी नेताओं ने इसका पुरज़ोर विरोध किया था लेकिन नेहरू जैसे असुरी नेता इस विषय पर भी अंग्रेजों के पिछलग्गू बने रहे।




5. सन् 1947 में अंग्रेज़ी हकूमत परोक्ष रूप से ख़त्म होने के बावजूद भी वामपंथी-हिंदू-विरोधी नेहरू सरकार ने अंग्रेज़ी हकूमत के सभी तौर तरीक़े, क़ानून और नीतियाँ बरकरार रखीं। अंग्रेजों द्वारा स्थापित असुरी SEWERAGE SYSTEM पर “modern” और “hygienic” city management का ठप्पा लगाकर, यह प्रणाली जबरन हर शहर और हर क़स्बे पर थोपी जाने लगी। आधुनिक शहर की यही सबसे बड़ी पहचान बन गई कि सरकार ने वहाँ underground नाले बनाकर हर घर का मैला पानी और हर industry द्वारा प्रदूषित किया जल समीप की नदियों में उड़ेलने का पुख़्ता इंतज़ाम किया है। मेरी दिनचर्या के सबसे दुखदाई पल वही हैं जब मुझे अपने बाथरूम की फ्लश का बटन प्रेस करके अपना मैला नगर निगम के हवाले करना पड़ता है ताकि वे उस बदबूदार सड़े -गले पानी को बड़े बड़े नालों के माध्यम से माँ यमुना के सीने पे उड़ेल दे। मैं चाहूँ भी तो इस भद्दी परिस्थिति को बदल नहीं सकती क्योंकि बिना “modern sewage system” का हिस्सा बने नगर निगम किसी भी घर या बिल्डिंग का नक़्शा पास ही नहीं करती। यानी चाहे-अनचाहे हर हिंदू को अपनी पवित्र नदियों को प्रदूषित करने के घोर पाप में सहभागी बनना पड़ता है!



6. हम सब मूक बने देखते हैं कि अरबों रुपया खर्च के हमारी सरकार की विभिन्न एजेंसियाँ पावन नदियों के जल को प्रदूषित करती हैं। और फिर वहीं सरकारें एक और भ्रष्ट fraud हमें परोसती हैं– जिसके चलते प्रदूषित नदियों को “साफ़” करने हेतु करोड़ों अरबों रुपया खर्च कर के Sewage Treatment Plant लगाये जाने की नौटंकी की जाती है। Sewage Treatment Plant से England की Thames नदी या अमेरिका की Hudson नदी तो शायद “साफ़” हो जाये। लेकिन दुनिया के किसी Sewage Treatment Plant की यह क़ाबलियत नहीं है कि वह गंगा नदी में sewage मिले पानी को “गंगा जल” जैसा पवित्र स्वरूप दे सके! बल्कि Sewage Treatment Plant तो नदी के पानी में और भी ज़हरीले केमिकल मिला देते हैं, जिनमें chlorine सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है। Chlorine मिला पानी कितना नुक़सानदायक है यह Google search करके स्वयं देख लीजिए।




7. आज मैं उस दैवी शक्ति को नमन करती हूँ कि मेरे तीन बार बने plans के बावजूद मुझे कुंभ जाने से रोका। मालूम नहीं ज़िंदा लौट भी पाती की नहीं। हालाँकि मुझे मृत्यु से डर नहीं लगता लेकिन मृत्यु में dignity को भी कुचला जाये, वह स्वीकार्य नहीं। हमारे मंदिरों की तरह, हमारे धमस्थानों के सरकारीकरण की वजह से उनकी गरिमा तबाह होती जा रही है। कुंभ के दौरान राजनैतिक दलों ने भद्दे फ़साद मचाये रखे, यहाँ तक कि जब सैंकड़ों लोग भीड़ में कुचल कर मारे गये तब भी भाजपा, कांग्रेस, सपा समेत सभी दल घटिया राजनीति ही करते रहे।



8. जैसा मैंने शुरू में कहा, जब तक हिंदू समाज भारत सरकार पर इस बात पर नकेल डालने में सफल नहीं होता कि हमारे घरों के मल मूत्र से loaded sewage water या industrial waste water हमारी किसी भी पावन नदी में ना जाये, मैं कभी भी गंगा या कुंभ स्नान नहीं करूँगी, कभी भी उस जल की एक बूँद भी मुँह में नहीं डालूँगी, भले ही गंगा-यमुना माँ के पवित्र स्वरूप की बहाली को देखने के लिए सैकड़ों/हज़ारों वर्ष लग जायें। हिंदू होने का यह तो बहुत बड़ा वरदान है ही कि हमारा पुनर्जन्म निहित है। इस जन्म में ना सही, इस कलयुग में ना सही, मेरा पूर्ण विश्वास है कि पृथ्वी पर सतयुग के आगमन की शुरुआत ही माँ गंगा और माँ यमुना की स्वाभाविक पवित्रता बहाल करने के साथ होगी। और मुझे यह भी विश्वास है कि उस दिव्य काल के परिवर्तन की साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे अवश्य प्राप्त होगा।

