राजकिशोर सिन्हा। माना कि अयोध्या में बहुत काम हुआ है। माना कि वाराणसी से कैंडिडेट भी खराब नहीं था, तो भी विश्लेषकों-महाशयों को रंज बहुत है कि वाराणसी में जीत का अन्तर डेढ़ लाख से कम क्यों रह गया!
कल से पूरे सोशल मीडिया में सार्वजनिक रूप से, समवेत स्वर में, एकत्रित होकर हिन्दुओं को टोकरी भर-भर कर गालियाँ दी जा रही हैं। कोई उन्हें जयचंद कह रहा है और न जाने किन-किन शब्दों से अपमानित किया जा रहा है, जिसका कोई अंत नहीं है। अयोध्यावासियों को तो विशेष रूप से धिक्कारा जा रहा है, कोई उन्हें निर्लज्ज और गद्दार कह रहा है, कोई बेहया कह रहा है, मतलब, हजार लानतें भेजी जा रही हैं जिनका सिलसिला अभी भी जारी है। पीड़ा वही है कि अयोध्या में हार क्यों हुई और वाराणसी में वोट का अन्तर डेढ़ लाख से कम क्यों रहा। अब इसका वास्तविक कारण तो अयोध्यावासी और वाराणसीवासी ही बतायेंगे, मैं केवल सामान्य बुद्धि से कुछ बतला देता हूँ।
मैंने दिल्ली में वोट डाला। प्रातः साढ़े छः बजे ही मतदान केन्द्र पर हमलोग पहुँच गये थे और सात बजे बूथ पर पंक्तिबद्ध होकर खड़े हो चुके थे, पंक्ति में सबसे आगे मैं ही था। लेकिन वोटिंग कराने में विलम्ब हुआ। हमारे सामने EVM मशीन को चेक किया गया, मोमबत्ती जलाकर सील किया जा रहा था, औपचारिकताएँ पूरी की जा रही थी। मतलब, सुबह सात बजे मतदान शुरू नहीं हुआ। लोग परेशान हो रहे थे। पंखे की कोई व्यवस्था नहीं थी। पंक्ति में खड़ी महिलाओं को प्यास लगी थी, लेकिन पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। लगभग सात बजकर बीस मिनट पर मतदान प्रारम्भ हुआ। मात्र इन्हीं बीस मिनटों में अत्यधिक असहनीय गर्मी के कारण कुछ लोग बगैर मतदान किये ही वापस घर लौट गये। अब, मतदान व्यवस्था की इस ढिलाई के कारण जितने मतदाता घर लौट जाने के लिये विवश हुए और जितना वोट कम हुआ, क्या उसके जिम्मेदार मतदातागण हैं?
कुछ समाचार सर्वविदित हैं – “मतदान के लिये पहुँचे कर्मचारियों पर गर्मी ने कहर ढा दिया और हीट वेव से 18 मतदान कर्मचारियों की मृत्यु हो गई है। सबसे अधिक मिर्जापुर में 12 मतदानकर्मी भीषण गर्मी नहीं सहन कर सके और दम तोड़ दिया। पड़ोसी जिले सोनभद्र में तीन मतदानकर्मियों की जान गई है। वाराणसी-मऊ और चंदौली में एक-एक मतदानकर्मी की मौत हुई है।” ऐसे दुःखद समाचार देश के कई स्थानों से प्राप्त हुए हैं, जिनसे आप भी अवगत होंगे।
वातानुकूलित कमरों में बैठकर, आभासी पटल पर हिन्दुओं को, अयोध्यावासियों और वाराणसीवासियों को कोसनेवालों से मेरा प्रश्न यह है कि मई की आग उगलती गर्मी में चुनाव क्यों कराया गया? यह असंवेदनशील निर्णय जिसका था, उसको क्या दण्ड मिला? क्या वोट देने वाली जनता रोबोट है या लोहे-पत्थर की बनी हुई है? क्या मतदान करनेवाली जनता और मतदान सम्पन्न कराने वाले मतदानकर्मियों के प्राणों का कोई मूल्य नहीं है? बिहार में गाँवों में एक कहावत प्रचलित है – खस्सी के जान जाय, आर खवैया के स्वादे नै।
जितने वोट मिले हैं, उसे जनता का उपकार समझिये और उसे हार्दिक कृतज्ञता अर्पित कीजिये, मतदाताओं को सादर प्रणाम कीजिये। यदि यह नहीं करना है, यदि इतनी भी करुणा और संवेदना हृदय में नहीं बची है, तो अगली बार तपती गर्मी में चुनाव करा कर देख लेना। जितने वोट इस बार मिले हैं, उतने के लिए भी तरस जाइयेगा।