देश के संविधान के शिल्पी रहे बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की आज जयंती है। उन्होंने अपनी मेधा और प्रतिभा के बल पर देश का गौरव बढ़ाया और दूनिया भर में कीर्ति प्राप्त की। इसके साथ ही उनसे जुड़ा एक तथ्य और भी है। उन्होंने जिन धारणा को लेकर संविधान की रचना की बाद में उन्हीं की नहीं चलने दी गई। यहां तक की उनकी अवहेलना हुई। इससे क्षुब्ध होकर उन्हें कांग्रेस के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। आंबेडकर ने समग्र देश को चलाने के लिए संविधान रचा, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें दलितों का महानेता बना कर छोड़ दिया। इसी संदर्भ में आज एक सवाल मौजू हैं कि आखिर बाबा साहेब किसके ?
मुख्य बिंदु
* आंबेडकर से जुड़ी पांच जगहों को पंचतीर्थ में विकसित कर रही केंद्र सरकार
* पहले प्रधानमंत्री नेहरू से आहत होकर छोड़ दिया था उनका मंत्रिमंडल
* कांग्रेस ने संसद के सेंट्रल हॉल में नहीं लगने दिया था आंबेडकर का चित्र
कांग्रेस का एक इतिहास ये भी रहा है कि वह यूज एंड थ्रो करती रही है। आंबेडकर के साथ भी वही किया। तभी तो उसने कभी आंबेडकर को लोकसभा नहीं पहुंचने दिया। वे अपने जीवन में दो बार लोकसभा के लिए कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन दोनों बार साजिश के तहत हार मिली। वो भी तब जब कांग्रेस का देश पर एकक्षत्र राज था। दूसरी बार अगर भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनकी मदद नहीं करते तो वे राज्यसभा भी नहीं पहुंच पाते। इसमें कोई दो राय नहीं कि उस समय पंडित नेहरू उन दोनों को पसंद नहीं करते थे। अपने इतिहास को भूल कर वही कांग्रेस आज आंबेडकर का नाम रटने को मजबूर है। कांग्रेस कभी भी योग्यता की नहीं बल्कि हमेशा सत्ता दिलाने की क्षमता की पूजा की है।
देश में आंबेडकर का सम्मान करने वालों की कभी कमी नहीं रही। शुरू में भारतीय जनसंघ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी हो या बाद में केंद्र में पहली बार भाजपा के नेतृत्व में गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी, या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबों ने उनकी योग्यता के अनुरूप सम्मान दिया। बाबा साहेब को एनडीए की पहली सरकार ने ही देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया था। वहीं कांग्रेस जो हमेशा से आंबेडकर अपना कहती रही लेकिन संसद के सेंट्रल हॉल में उनकी तस्वीर नहीं लगने दी। भारत रत्न देने के बारे में सोचना तो दूर की बात है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा पर दलितों के नाम पर आंबेडकर को अपमानित करने का आरोप लगा रहे हैं। अन्य दूसरी पार्टियों ने भी यही आरोप लगाया है। कांग्रेस हो या कोई और दल सही मायने में बाबा साहेब के नाम के अनुरूप कोई काम किया हो इसका दूर तक कोई मिसाल नहीं मिलती। हां मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में यूपी में जगह- जगह उनकी मूर्तिया जरूर लगवाईं। लेकिन मायावती के इस काम के पीछे की मंशा जमीन हड़पना था। उनकी मंशा को देख आंबेडकर की आत्मा भी रोती ही होगी। उन्होंने जगह-जगह मूर्ति लगाकर जितना सम्मान दिया उससे कहीं नोएडा में उनकी मूर्ति से बड़ी अपनी मूर्ति बनाकर अपमान किया। फिर भे ये लोग बाबा साहेब को अपना बता रही हैं। बताना भी चाहिए, क्योंकि बाबा साहेब एक के नहीं पूरे देश के हैं। दिक्कत ये है कि ये लोग वोट के लिए उनके नाम की माला जपते हैं। इनलोगों को उनकी कीर्ति की बदौलत देश को मिले गौरव से कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस भी तो यही कर रही है ताकि उनके नाम से दलितों का वोट मिल जाए।
वहीं भाजपा बाबा साहेब के संघर्ष, कीर्ति और योग्यता को दुनिया के सामने ला रही है ताकि उनसे दुनिया को प्रेरणा मिले। आंबेडकर की निजी जिंदगी से जुड़ी पांच जगहों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित करने का काम भाजपा आज से नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आंबेडकर से जुड़ी जगहों को पंचतीर्थ बनाने को भाजपा का सौभाग्य मानते हैं। तभी तो आंबेडकर की जन्मभूमि महू हो या महाराष्ट्र स्थित इन्दू मिल की चैतन्य भूमि पर स्मारक बनाने की पहल, नागपुर में दीक्षास्थल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने की बात हो या दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल हो स्मारक बनाने की कोशिश, केंद्र सरकार इसे पंचतीर्थ के रूप में विकसित करने में जुटी है।
कभी भी नाम जपने से किसी का सम्मान नहीं बढ़ता बल्कि उनकी कीर्ति को दुनिया के सामने लाने से उनका सम्मान बढ़ता है। सही मायने में किसी मुर्धन्य पुरुष का सम्मान यही होता है। इसलिए बाबा साहेब किसके जैसे सवाल पर दृढ़ता से उत्तर दिया जा सकता है कि जो उनकी कीर्ति का सम्मान करे उसके।
URL: Dr Bhimrao Ambedkar whose BJP vs Other
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