महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की अदालत के एक निर्णय ने 2016 से देश भर में चल रही देशद्रोही गतिविधियों में शामिल उन वर्गों को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है, जो लगातार देश तोड़ने की कोशिशों में जुटे हैं! जिस तरह से फरवरी 2016 में जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह’,’भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी’ के नारे लगाए गए, उसके बाद बंगाल के जादवपुर विवि को डिस्टर्ब किया गया और अब जब इसी साल फरवरी 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में कश्मीर की आजादी के नारे लगाए गए, उस सब का पैटर्न एक समान रहा है!
इसमें जेएनयू और दिल्ली विवि के प्रोफेसर उकसाने वाले की भूमिका में, JNU व DU के छात्र देशद्रोही नारे लगाने वालों में और वामपंथी पत्रकार इन देशद्रोही गतिविधियों को वैचारिक कवर देने वालों में शामिल हैं। यही कार्यप्रणाली जी.एन.साईबाबा पर आए अदालती निर्णय में भी स्पष्ट हुआ है।
गढ़चिरौली की अदालत ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने प्रोफेसर साईबाबा के साथ जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा, पत्रकार प्रशांत राही और तीन अन्य लोगों को UAPA एक्ट के तहत दोषी पाया है।
अदालत ने कहा कि साईबाबा और बाकी लोगों पर माओवादियों के साथ रिश्ते होने और भारत के खिलाफ जंग छेड़ने के आरोप साबित हुए हैं। प्रोफेसर साईबाबा को मई 2014 में उनके दिल्ली आवास से गिरफ्तार किया गया था। जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा और पत्रकार प्रशांत राही सन 2013 में पकड़े गए थे। इन सभी के पास से आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद हुए थे।
दिल्ली विवि के रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाले प्रोफेसर साईबाबा को छुड़ाने के लिए पूरी वामपंथी मीडिया, प्रोफेसर, छात्र, एनजीओ काफी समय से लगे हुए थे। वामपंथी विचारधारा वाले साईबाबा रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम के संगठन से जुड़े रहे हैं।
वामपंथी बिरादरी ने उनकी विकलांगता का हवाला देते हुए मुंबई हाईकोर्ट से पिछले साल जून में उनके लिए जमानत भी हासिल कर लिया था। जिस तरह से न्यायपालिका में भी बड़ी संख्या में वामपंथी विचारधारा के लोग मौजूद हैं, उससे इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में संसद हमले के आरोपी रहे प्रोफेसर गिलानी की तरह प्रोफेसर साईबाबा भी शायद छूटने में सफल हो जाएं?
लेकिन फिलहाल तो अदालत ने साईबाबा सहित जेएनयू के छात्र और दिल्ली के leftist पत्रकार को सजा देकर उस पैटर्न पर एक तरह से मुहर लगा दिया है कि आज देश की शैक्षणिक संस्थाएं और मीडिया हाउस माओवादियों को वैचारिक कवर देने के कार्य में शिद्दत से जुटे हुए हैं!