आज जब पृथ्वी राज चौहान 100cr से अधिक का घाटा सह चुकी है, और दशक की सबसे विफल फिल्मों में शामिल हो चुकी है तो मेरे मन में एक सत्य उद्घाटित करने की इच्छा हुई। डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी को चाणक्य के कारण हम सभी पसंद करते हैं, परंतु उसके बाद कैरियर के दबाव या अन्य जो भी कारण रहा हो, लेकिन वो न केवल बिखरते चले गये, बल्कि एक जगह तो उन्होंने अहंकारवश सारी सीमा ही पार कर दी!
उनकी एक फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी'(यदि मुझे ठीक से याद है) में काफी गाली-गलौच था, जिस कारण वह फिल्म सेंसर बोर्ड में काफी समय तक अटकी रही।
इससे क्षुब्ध होकर डॉ द्विवेदी ने इंडिया टुडे के एक वार्षिकांक में हिंदू धर्म शास्त्रों में गाली को उद्धृत करते हुए न केवल लेख लिखा, बल्कि उसकी गलत व्याख्या भी की। वह यह दर्शाना चाहते थे कि भारत का धर्म गालियों, अपशब्दों और अश्लीलताओं से भरा है, और यहां तुम नैतिकता का पाखंड कर मेरी फिल्म रोके पड़े हो! वह मोदी सरकार में सेंसर बोर्ड के व्यवहार से दुखी थे, परंतु उन्होंने सरकार की जगह अपने हमले के लिए सनातन धर्म को चुना।
उदाहरण के लिए शास्त्र कहते हैं कि अश्वमेघ यज्ञ में एक रात रानी घुड़साल में घोड़े के पास सोती हैं, चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इसका गूढ़ार्थ समझे बिना रानियों का घोड़े से संभोग करवा दिया! इसका सही संदर्भ मैं आपको शास्त्रों से कभी बताऊंगा तो आप गर्व करेंगे। लेकिन डॉ द्विवेदी ने इसे अपमानजनक बना कर प्रस्तुत किया!
उस लेख में क्षेपक वाले साहित्य का उपयोग कर और बिना हिंदू धर्म के गूढ़ार्थ को समझे कई ऐसी वाहियात बातें उन्होंने लिखी कि लगा जैसे हिंदू धर्म पर नहीं, वो पोर्न पर लिख रहे हैं! इंडिया टुडे ने बकायदा इसका जश्न मनाया। मुझे उनके विचारों में आए स्खलन को देखकर बड़ा दुख हुआ था, लेकिन उनके प्रति सम्मान के कारण मैंने तब इस पर नहीं लिखा था। मैं आध्यात्मिक हूं और भगवान श्रीकृष्ण के कर्मफल के उपदेश को अक्षरशः मानता हूं।
ध्यान से देखिए, हिंदू धर्म पर आक्रमण करने वालों को कितना भी जबरदस्ती कर इतिहास में घुसेड़ा गया, लेकिन समय के इतिहास ने उन्हें मिटा दिया। आज मुगलों का बीज तक अस्तित्व में नहीं है! व्यक्तिगत रूप से भी देखिए, हिंदू धर्म को गरियाने वाले अपने अस्तित्व को तरस गये हैं! डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के साथ वही हो रहा है।
उस लेख के बाद सफलता ने उनकी ओर से जैसे मुंह मोड़ लिया है। यशराज जैसे बड़े बैनर और बड़े बजट की फिल्म पृथ्वीराज को दर्शक न मिलने के कारण शो पर शो निरस्त करना पड़ रहा है। धर्म के अपमान ने जैसे उनकी मति को भी भ्रष्ट कर दिया है। अन्यथा पृथ्वीराज चौहान में वह उस समय अस्तित्व में भी नहीं आई भाषा ‘उर्द’ का बेतरतीब ढंग से उपयोग कदापि नहीं करते। वो विद्वान हैं, इसलिए उनका शोध १२वीं शताब्दी में ‘ऊर्दू’ ढूंढ ले, यह केवल मतिभ्रम के कारण ही संभव है!
मेरा जो इतना आग्रह सनातन धर्म को जीवन में उतारने को लेकर है, यह शास्त्र के अध्ययन और मेरी अनुभूति की उपज है। ऐसे ही शास्त्र ने नहीं कहा है, ‘धर्मो रक्षति रक्षित:!’ जो धर्म की रक्षा करेगा, धर्म भी केवल उसकी ही रक्षा करेगा। शास्त्रों में इतना स्पष्ट लिखा हुआ है, परंतु फिर भी अहंकार और अविवेक में जो लोग इस पर नहीं चलते वो किसी न किसी रूप में नष्ट होते ही हैं!
महादेव का भोजन अहंकार है। काशी में मंदिरों का विध्वंश और उसके बाद ज्ञानवापी से महादेव के प्रकट होने का प्रकरण ही यदि विवेक के साथ आप देखेंगे तो पाएंगे कि महादेव अपनी लीला दिखा रहे हैं। सब स्वत: अनावृत हो रहे हैं! परमात्मा सर्वव्यापी है। इसीलिए मैं बार-बार कहता हूं, ‘ईश्वर और ईगो दो किनारे हैं। जब तक ईगो को नहीं छोड़ोगे ईश्वर तक नहीं पहुंच पाओगे।’ अहंकार ईश्वर का भोजन है!
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥