आनंद राजाध्यक्ष। चेतावनी – यह पोस्ट शुरुआत में थोड़ी अलग लग सकते है, पौराणिक कथा लग सकती है। संक्षेप में – महिषासुर अपने असुर दल के साथ उन्मत्त हुआ, किसी को प्राणों की शाश्वती न रही तो आदिशक्ति का आवाहन किया गया। लेकिन यहाँ महत्व की बात यही है कि उसे आयुधों से सम्पन्न किया उसके भक्तों ने। आयुधों के साथ साथ ओज भी दिया । बाकी की कथा सब को पता है कि कैसे महिषासुर मारा गया।
पौराणिक संदर्भ यही तक।
आज पूर्वी भारत एक हिस्से में असुरों का प्रकोप है यह सर्वविदित है। आसुरी सत्ता के विरोध में जो भी खड़े हुए थे उनको असुर दल प्रताड़ित कर रहे हैं। असुर दलों की रणनीति टिपिकल फिल्मी स्टाइल की है कि गाँव में घुसकर यह घोषणा कर देते हैं कि हमें केवल फलाने से शत्रुता है, बाकी दूर रहे, कोई बीच में न आयें।वस्तुस्थिति यह होती है कि असुर दल कोई मशीनगन लेकर नहीं आते, अक्सर उनके पास धारदार शस्त्रों के अलावा कुछ नहीं होता। उसके मुक़ाबले के लिए पर्याप्त वस्तुएँ घर घर से निकलेंगी। यहाँ तफसील में नहीं जा रहा।
यहाँ थोड़ा आवश्यक विषयांतर। इनके यहाँ किसी घोषित गुनहगार को उठाने भी पुलिस जाती है तो उन्हें महिलाओं के सक्रिय विरोध का इस तरह सामना करना पड़ता है कि पुलिस पर महिलाओं से दुर्व्यवहार के फर्जी केस बनें। अन्यथा उल्टे पाँव दुम दबाकर भागना पड़े। इसीलिए महिला पुलिस को भी साथ लिया जाता है। मोबाइल के जमाने में ऐसे प्रसंगों के फर्जी विडियो भी बनाकर वायरल किए जाते हैं। रास्तेपर भी अगर इनके कोई स्त्रीपुरुष दोपहिया वाहन से जा रहे हैं तो भी ज़रा सी बात पर मारपीट पर उतर आते हैं और महिलाएं पुरुषों से अधिक आक्रामक और हिंसक भी होती हैं।
यह मुद्दे को इसलिए उठाया कि हिन्दू महिलाओं को दुर्गा बनने की आवश्यकता समझ में आए। आज असुर दल जैसे गाँव में घुसकर घोषणा करता है, गाँववाले अपने घरोंमें दुबक जाते हैं वे भी दरवाजे बंद कर के ताकि कह सकें कि हम ने कुछ देखा ही नहीं। असलियत तो यह है कि सभी गाँव वाले अपने घरों में उपलब्ध रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुओं को लेकर भी धार्य से बाहर निकले, असुर दल या तो पलायन करेगा या गाँव वाले चाहें तो उन्हें वहीं निपट भी सकते हैं।
जब असुरीयां गलत हो कर भी हिंसा पर उतर आती हैं, तो अपने घर में घुसे हिंसक असुर दल के साथ प्रतिहिंसा अधिकार ही नहीं, स्वयं के प्रति कर्तव्य भी है।अस्तु, बुआजी को मूंछें होती तो चाचाजी कह सकते, लेकिन यहाँ बात करूंगा तो उनकी जिनका घर निशानेपर है। असुर दल की परंपरा है महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार। इसीलिए जिनके घरों पर हमला होने की आश्वस्ति है उन्हें घर की महिलाओं को प्रशिक्षित करना चाहिए कि यह होगा ही, और तब तुम्हें क्या करना होगा।
गाँव के घरों में शहरवासियों जैसे सब बाज़ार से साफ़सूफ़ कर के पैकेट में नहीं आता, महिलाएं आज भी घरेलू उपयोग की वस्तुओं की खुद से सफाई करती है जिसमें काटने कूटने में काफी वस्तुएँ लगती हैं। ना ही गाँव की महिलाएं काँच की शहरी गुड़ियाएँ होती हैं। कुछ कमी है तो हिम्मत की। अपने घर मे घुसे हुए असुरों पर किन वस्तुओं से कैसे प्रहार किए जा सकते हैं यह तफसील सार्वजनिक पोस्ट का विषय नहीं हो सकता। महाराष्ट्र की कहावत है कि चक्की घुमाने बैठ जाओ तो गीत अपने आप स्मरण हो आता है।
परिस्थिति की मानसिक तैयारी हो तो जब सृजित हो जाये तो परिस्थिति स्वयं शिक्षा भी देती है। कंपनियों में, कारखानों में फायर ड्रिल होते हैं जहां हर कर्मचारी को कोई विहित काम करना पड़ता है ताकि अगर कभी आग लग जाये तो क्या करना है यह पता हो। असुर विरोधी कार्य करनेवाले लोगों को परिजनों को ऐसे ही फायर ड्रिल सदृश ट्रेनिंग देने और देते रहना चाहिए। जैसे कि स्पष्ट लिखा है कि कोई गैर कानूनी शस्त्र घर में रखने की आवश्यकता नहीं। इतना तो आवश्यक है ही, इसका विकल्प नहीं होता।
अगर प्रतिहिंसा में वीरगति प्राप्त हो तो भी कुछ असुर गिराने का समाधान रहेगा। क्योंकि वैसे भी उनके हाथों हत्या होने के पहले ऐसे दुर्गति का सामना करना होगा जिसका मैं वर्णन भी नहीं करना चाहता। इसलिए ब्रोईलर जैसा विलाप करते दुर्गति करवा लेने से योग्य प्रतिकार करते वीरगति को प्राप्त हो जाना अधिक सुखावह होगा। हो सकता है कि वीरगति भी न हो, अनपेक्षित और तीखे प्रतिकार से असुर भाग जाये।
असुर अगर नरक भेज दिये जाये तो यह प्रसिद्धि का विषय होगा। राक्षसी फिलहाल हिन्दू हत्याओं को दबा देती है, लेकिन असुर संहार प्रसिद्धि का विषय बनेगा। अगर किसी हिन्दू परिवार को यहाँ दुर्गति की जगह वीरगति प्राप्त हुई भी हो तो भी इस प्रक्रिया में जो असुर संहार हुआ है वह औरों के लिए प्रेरणा का विषय बन सकता है, बुआएँ चाचा बन सकती है।
पुराणों में किसी देवी द्वारा किसी राक्षसी का वध सुना नहीं, लेकिन यह निषिद्ध भी तो नहीं। किस्सा आज भले ही पूर्वी भारत का हो, वो भी भारत ही है और असुर केवल पूर्वी भारत में हैं ऐसी बात नहीं। घर घर दुर्गा हो यही धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक है ।
लेख समाप्त, आगे ले जाने का अनुरोध है। भाषा बोझिल है, मजबूरी समझ सकते हैं।