अर्चना कुमारी। मणिपुर जल रहा है और इसकी गूंज दिल्ली तक पहुंच चुकी है। लेकिन केंद्र सरकार हिंसा को रोकने में अब तक नाकाम साबित रहा है । इस बीच जंतर मंतर पर सैकड़ों मेइती समुदाय ने रविवार को मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति की वापसी का आह्वान करते हुए धरना प्रदर्शन किया। मौके पर मौजूद प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट रूप से विभाजनकारी राजनीति की निंदा की, उन लोगों का कहना था कि हिंसा के परिणामस्वरूप कुकी और मेइती दोनों पक्षों के जीवन और संपत्ति की अपूरणीय क्षति हुई है।
चाहे कुकी हो या मेइती, पीड़ितों की दर्दनाक कहानी एक ही है। ज्यादातर मामलों में, यह है निर्दोष नागरिक जो इस नरसंहार का खामियाजा भुगत रहे हैं। घरों को जलाना, और बीच में बंदूक की लड़ाई सुरक्षा बलों और कुकी उग्रवादी संगठनों का आज भी जारी है। यह रैली मणिपुर समन्वय समिति (दिल्ली) के बैनर तले आयोजित की गई थी। इसमें दिल्ली के मणिपुर सीएसओ और छात्र संगठन, और लोकतांत्रिक समूहों द्वारा समर्थित भारत के अन्य भागों में, भारत सरकार के विचार के लिए कुछ बिंदुओं का सुझाव दिया।
गौरतलब है कि मणिपुर में पिछले कुछ महीनों से हिंसा जारी है और हिंसा करने वाले को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं लेकिन इसके बावजूद शांति स्थापित नहीं हो पा रही है। बताया जाता है कि तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद से पूरा राज्य हिंसा की आग में समा गया और इस तरह की हिंसा की वजह से अब तक 10000 लोग विस्थापित हुए हैं। बताया जाता है कि मणिपुर में बीजेपी की अगुआई वाली सरकार ने फ़रवरी महीने में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था लेकिन इस बीच बताया जाता है कि लोग सरकार के इस रुख़ का विरोध कर रहे थे, लेकिन हालात बेक़ाबू तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश से हुआ । हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे जिसमें ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी।
बताया जाता है कि मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा है और यहां की कुल आबादी में से मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। इतना ही नहीं मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक इसी समुदाय से हैं जबकि दावा किया गया है कि 90 प्रतिशत पहाड़ी भौगोलिक क्षेत्र में प्रदेश की 35 फ़ीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं लेकिन इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुँचते हैं यह भी सत्य है कि मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिन्दू है और बाक़ी मुस्लिम लेकिन कहा जाता है
जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं, ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं और इनमें से कूकी मुख्य तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार बताया जाते हैं। यहाँ के जनजाति समूहों को लगता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे और वे पहाड़ों पर भी ज़मीन ख़रीदना शुरू कर देंगे लेकिन दूसरे समुदाय का कहना है कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले मैतेई को यहाँ जनजाति का दर्जा मिला हुआ था लेकिन नागा और कुकी इस बात को बर्दाश्त नहीं करते हुए लगातार हिंसा करने को उतारू है और केंद्रीय मंत्री अमित शाह की हस्तक्षेप के बावजूद यहां हिंसा जारी है और स्थानीय लोग पलायन करने को मजबूर हो गए हैं