भारत की नई शिक्षा नीति को कैबिनेट द्वारा स्वीकृति मिल चुकी है. शिक्षा नीती 2020 भारतीय शिक्षा के इतिहास में निश्चित तौर पर ही एक मील का पत्थर साबित होगी. इसकी सबसे प्रमुख दो वजह हैं. पहली वजह यह कि नयी एजुकेशन पांलिसी भारत में शिक्षा के घिसे पिटे ढर्रे को पूरी तरह से बदल रही है. स्कूलों की पढाई में आर्ट , साइंस और कामर्स के कृत्रिम विभाजन का समापन कर नई शिक्षा नीति मल्टीडिसिप्लिनरी स्टदीज़ यान बहुविषयक अध्ययन पर ज़ोर दे रही है. और दूसरी वजह यह है कि करीब तीन दशक के बाद देश में एक नई शिक्षा नीति को मंज़ूरी दी गयी है. इससे पूर्व 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गयी थी और 1992 में इसमे संशोधन किया गया था.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत में शिक्षा के पूरे ढांचे की ही एक बिल्कुल नये सिरे से परिकल्पना करती है. स्कूली शिक्षा में सृजनात्मक और इनोवेटिव टीचिंग मेथड्स पर स्पांटलाइट डाल यह एजुकेशन पांलिसी रोट लर्निंग यानि बिना किसी व्यावहारिक ज्ञान, वर्कशाप, फील्ड एक्टिविटी आदि के बस रट्टू तोता के तरह वही घिसे पिटे पाठ्यक्रम को परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिये बार बार रटते रहने की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से समाप्त करती है.
पाठ्यक्रम और एक्स्ट्रा करिक्युलर एक्टिविटीज़ के बीच के विभाजन को भी नई शिक्षा नीति अलविदा कहती है. यानि स्कूलों में होने वाली आर्ट, क्राफ्ट, नृत्य, संगीत, खेलकूद आदि की गतिविधियां और क्लासेज़ भी अब बाकायदा पाठ्यक्रम का ही हिस्सा मानी जायेंगी. अब तक हमारी शिक्षा व्यवस्था में ऐसा होता था कि इन सभी कला या खेल कूद से जुड़ी गतिविधियों को गंभीर पाठ्यक्रम से अलग माना जाता था. यानि इन्हे पढाई के रूप में नही लिया जाता था. तो शिक्षा नीति 2020 ने स्कूली पढाई को एक पूरा बहुआयामी व्यक्तित्व दे दिया है.
स्कूली पढाई के परिपेक्ष में ही जो दूसरा महत्व्पूर्ण बदलाब इस शिक्षा नीति ने किया है, वह है, कामर्स, साइंसेज़ और ह्यूमैनिटीज़ के विभाजन को खतम करना. अभी तक स्कूली शिक्षा व्यवस्था में 10वी कक्षा के बाद छात्रों को इन तीनों में से एक स्ट्रीम का चयन करना पड़्ता था और उसी के अनुसार उसकी आगे की पढाई चलेगी. यानि कोई छात्र यदि गणित और अंग्रेज़ी साहित्य दोनों को ही मुख्य विषयों के रूप में पढ्ना चाहता था, तो अब तक वो ऐसा नही कर सकता था. लेकिन नई शिक्षा नीति के बाद छात्र बिना किसी पाबंदी के अपनी इच्छानुसार सब्जेक्ट्स मिक्स और मैच कर पायेंगे.
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़े बदलाव किये गये हैं. हायर एजुकेशन के लिये सिंगल रेग्युलेटर रहेगा ( सिर्फ लां और मेडिकल की पढाई को छोड़्कर ). इसके अलावा ई शिक्षा पर भी अत्यधिक ज़ोर रहेगा. वर्चुअल लैब विकसित की जा रही हैं और एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नांलजी फोरम (NETF ) की भी स्थापना की जा रही है. ई पाठ्यक्रम अब क्षेत्रीय भाषाओ में भी विकसित किये जायेंगे. इसके अलावा उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फीसदी GER पहुंचने का लक्ष्य है.
स्कूली पढाई की रुपरेखा 5+3+3+4 के आधार पर की जायेगी. इसमे अंतिम चार वर्षों में 9वीं से 12वीं कक्षायें शामिल हैं.
हायर एजुकेशन सिस्टम में एक बहुत ही बड़ा और सकारात्मक बदलाव यह किया गया ह कि अब कोर्सेज़ करते समय मल्टीपल एग्ज़िट और एन्ट्री का स्स्टम रहेगा. यानि व्यक्ति यदि पूरा कोर्स किसी कारणवश कम्प्लीट नही कर पाया या नहीं करना चाहता तो विभिन्न समय अवधियों के अनुसार हे उसे अपनी पढाई के हिसाब से उपयुक्त क्वालिफिकेशन मिल जायेगी. यानि अगर उसने कांलेज की पढाई सिर्फ एक साल तक पूरी की है, तो उसे सर्टीफिकेट मिलेगा. यदि दो साल बाद उसे किसे कारणवश पढाई छोड़्नी पड़ी तो डिप्लोमा मिलेगा. और 4 साल का तो पूरा कोर्स ही है जिसके बाद में उसे पूरी डिग्री मिल जायेगी.
तो छात्र छात्राओं के हित मे यह एक बहुत बड़ा फैसला है. हम आये दिन देखते हैं कि किस प्रकार चिंता और तनाव की वजह से कितने ही स्टूडेंट्स आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं. उनके मन में बहुत सी बातें हो सकती हैं. हो सकता है उन्होने अभिभावकों के दबाव में आकर किसी कोर्स के लिये इन्रोल कर लिया हो लेकिन आगे वे कुछ और करना चाहते हों. हो सकता है कि कोर्स के बीच में ही उनका मन बदल जाये और वे कुछ और पढ्ना चाहते हों या कुछ और करना चाहते हों. या फिर यह भी हो सकता है कि किन्ही मजबूरियों की वजह से वे आगे फिलहाल पढ नहीं सकते. तो ऐसे में शिक्षा नीति 2020 द्वारा लाई गयी यह नयी व्यवस्था उनके लिये संजीवनी बूटी जैसी साबित होगी.
इसके अलावा उच्च चिक्षा के क्षेत्र में एक महत्व्पूर्ण बदलाव यह है कि मास्टर्ज़ के बाद जो छात्र डांक्टरेट करना चाहते हैं, वे सीधे पी एच डी कर सकेंगे. एम फिल की डिग्री को अब समाप्त किया जा रहा है.
थ्री लैंग्वेज पांलिसी यानि तीन भाषाओं मे पढाई की नीति इस नई शिक्षा नीति का एक और महत्व्पूर्ण निर्णय है जिससे क्षेत्रीय भाषाओं को बढावा मिलेगा. नीति में कहा गया है कि छात्रों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाओं में से कमसकम दो भाषायें भारतीय मूल की होनी चाहिये.
इसके अलावा शिक्षा नीति में यह भी रेखांकित है कि जहां भी संभव को, कमसकम ग्रेड 5 तक निर्देश का माध्यम मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा होगी. इसके अतिरिक्त जहां भी संभव हो स्थानीय भाषा को आगे भी एक अलग विषय के तौर पर लगतार पढाया जाये. नई शिक्षा नीति के अनुसार यह नियम सार्वजनीक और निजी दोनों प्रकार के स्कूलों में लागू होंगे.
वैसे तो इतना कुछ और है शिक्षा नीति 2020 में कि एक लेख में सब कुछ विस्तृत कर पाना बिल्कुल संभव नहीं. लेकिन अंत में इतना अवश्य कह स्काते हैं कि भारत की यह नयी शिक्षा नीति उस शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से अलविदा कहती है जो हमें स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज़ों से विरासत में मिली थी.
अग्रेज़ों ने अपने शासन काल में जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का भारत में विकास किया, उसका उद्देश्य अंग्रेज़ी दफ्तरों के लिये क्लर्क और बाबुओं का उत्पादन करना था. इसीलिये अंग्रेज़ी भाषा पर सारा ज़ोर दिया गया. हिंदी व विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं को पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया गया.
आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी हम उसी प्रकार की घिसी पिटी शिक्षा व्यवस्था को अपना रहे थे जिसमे जो कुछ भी पढाया जाता है और जिस प्रकर से पढाया जाता है, उसका हमारे परिवेश से, हमारे सांस्कृतिक बोध से यहां तक कि हमारी कल्पनात्मकता और सृजनशीलता से भी दूर दूर तक कोई सरोकार नही है. और इसी बेजान शिक्षा व्यवस्था को अब शिक्षा नीति 2020 ने पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है.