इतने अपराध किये हैं इसने , फांसी तक हो सकती है ;
सत्ता जाने से बहुत डर रहा , सांसें तक रुक सकती हैं ।
इसके जितने संगी-साथी , पाप में जो भी भागीदार ;
वे भी डरकर कांप रहें हैं , देश छोड़ने को तैयार ।
पर कहीं नहीं कोई भाग सकेगा , बंधकर वापस आयेंगे ;
हर-अपराध की सजा मिलेगी , सब जेलों में जायेंगे ।
क्या सोचा था कि भारत में ? मनचाहे अपराध करो ;
काले-अंग्रेजों की काली-करनी , अब जेलों में वास करो ।
देश का धन जितना लूटा है , ब्याज सहित वसूली होगी ;
देशद्रोह करने वालों को , उनको तो सूली होगी ।
कोई अपराधी नहीं बचेगा , जितने भी अब्बासी – हिंदू ;
हर-अपराधी को सजा मिलेगी , म्लेच्छ हो चाहे हो हिंदू ।
सदियों से भारत-वर्ष लुट रहा , हिंदू ! तेरी गफलत से ;
धर्म-सनातन छोड़ने वाले , बाज न आये फितरत से ।
वामी ,कामी ,जिम्मी ,सेक्युलर , यही तो हैं अब्बासी-हिंदू ;
टुकड़ा पाकर पूंछ हिलाते , उनको जानो सरकारी-हिंदू ।
अब्बासी हिंदू – सरकारी हिंदू , भारत के ये दोनों दुश्मन ;
तरह-तरह से देश को लूटा , लोकतंत्र कर दिया है भग्न ।
संविधान के यही शत्रु हैं , लोकतंत्र के अपराधी ;
चुनाव-प्रक्रिया दूषित कर दी , ये भारत के अपराधी ।
ऐंड़ी-चोटी का जोर लगा ले , पर सत्ता न बच पायेगी ;
चुनाव-आयोग ! धरती मत काटो , डरो कि जनता आयेगी ।
जनता ही इस देश की मालिक , तुम सब जनता के नौकर ;
संविधान की शपथ को लेकर , करते हो चोरी जाकर ।
कुछ तो शर्म करो बेशर्मों ! देशद्रोह को बंद करो ;
देशद्रोह की सजा मौत है , गद्दारों ! तुम जल्द मरो ।
तेरी सारी गंदी – दौलत , धरी की धरी रह जायेगी ;
कुछ भी साथ नहीं जायेगा , औलादें भी बिगड़ जायेंगी ।
पाप के धन से पलने वाली , औलादें नहीं पनपतीं हैं ;
पहले चाहे मिले सफलता , पर बाद में सब मिट जाती है ।
पाप की दौलत पाप बढ़ाती , सारे-पुण्य मिटाती है ;
मौत से बदतर जीवन होता , जब अपना असर दिखाती है ।
कोई नहीं बचा है इससे , सिद्धांत कर्म का सदा अटल है ;
कई जन्मों तक भोगना होगा , इस जीवन में भी फल है ।
सावधान अब्बासी – हिंदू ! बहुत बुरा होने वाला है ;
चाहे जितना जोर लगा ले , पर फांसी चढ़ने वाला है ।