ISD के काफी सारे दर्शक/पाठक कह रहे हैं कि आप चुनाव बहुत कम कवर करते हैं। एक यूपी के अलावा और किसी राज्य पर आप कुछ बोल या बता ही नहीं रहे हैं!
मेरा मन चुनावी राजनीति पर अब बोलने या लिखने का नहीं होता। हिंदुओं को बड़ी चालाकी से पांच साल चुनाव में फंसा और चुनाव के समय टोकन नारा थमाकर जिस तरह 40 से अधिक अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की योजनाएं व अवैध अल्पसंख्यक आयोग चलाया जा रहा है, उसके कारण चुनावी राजनीति से मेरा मोहभंग तेजी से हुआ है।
हिंदू विरोधी दिल्ली व बंगाल दंगे और असहाय व पलायन को मजबूर हिंदुओं के कारण मेरी सोच में बड़ा बदलाव आया है। इसीलिए मैं मूल समस्या पर बोलने, लिखने और उस पर प्रहार करने को चुनावी राजनीति से अधिक महत्वपूर्ण मानता हूं।
सनातन धर्म, इतिहास, संस्कृति की समझ जितने अधिक लोगों में बढ़ेगी, हिंदुओं को मूर्ख बनाना फिर राजनेताओं के लिए उतना ही कठिन होता जाएगा। इसलिए मैं मूल समस्या पर काम करना चाहता हूं।
हिंदुओं को संत, त्यागी और हिंदू बनकर रावण और गांधी काल से ठगा जा रहा है। इसे अब बड़े पैमाने पर समझाने की आवश्यकता है कि तुम्हें खतरा औरों से अधिक अपनों से है, अपनों का वेष धरे ठगों से है। भारत के विभाजन से लेकर संविधान को एक तरफा लागू करने तक में इसे आसानी से देखा और समझा जा सकता है।
हिंदू जब तक नेताओं को अपने पीछे चलाने की क्षमता प्राप्त नहीं करता, नेता लोग उसे अपने पीछे चलाते हुए उसे केवल चुनावी नारे ही देंगे, कोई ठोस योजना नहीं। योजना केवल अल्पसंख्यकों के लिए बनाएंगे और नारे हिंदुओं के लिए।
हिंदुओं का आज अपना कोई देश नहीं, और जो है वह भी हमारे नेता क्षुद्र स्वार्थ के लिए गंवाने को तैयार हैं।
मैं चुनावी राजनीति पर कम ही बोलूंगा/लिखूंगा, क्योंकि यह स्वतंत्र भारत में हिंदुओं को ठगने का एक टूल बन चुका है। मुझे मेरे पाठक/दर्शक क्षमा करें। धन्यवाद!