विपुल रेगे। अक्षय कुमार की फिल्म सम्राट पृथ्वीराज चौहान को पहले दिन कम दर्शक मिले हैं। साथ ही मिश्रित प्रतिक्रियाएं प्राप्त हो रही है। इसके बावजूद निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी की ये फिल्म दर्शकों के प्रकोप का शिकार होते-होते बच गई है। 300 करोड़ बजट की इस फिल्म को सफल होने के लिए कम से कम 400 करोड़ की कमाई करनी होगी। 400 करोड़ की कमाई करने के बीच में सबसे बड़ा रोड़ा है अक्षय कुमार की कॉस्टिंग। यदि मुख्य भूमिका के लिए कलाकार का चयन करने में गलती हो जाती है तो उसका प्रभाव बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर पड़ता ही है।
यशराज प्रोडक्शन और निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी के लिए राहत की बात ये है कि उनकी ऐतिहासिक फिल्म एकदम खारिज होने से बच गई है। यदि फिल्म बाल-बाल बची है तो उसका पूर्ण श्रेय चंद्रप्रकाश द्विवेदी को ही जाता है। ऐसी खबरें आई थी कि कलाकारों के चयन में निर्देशक से अधिक यशराज के सर्वेसर्वा आदित्य चोपड़ा की चली है। फिल्म की मुख्य भूमिका के लिए निर्देशक अक्षय कुमार के नाम पर तैयार क्यों नहीं हो रहे थे, ये फिल्म देखकर पता चल रहा है।
फिल्म में जो कुछ अच्छा है, वह डॉ.चंद्रप्रकाश के कारण ही है। उनका शोध कार्य और निर्देशन कम से कम फिल्म को इस लायक बना गया कि वह जैसे-तैसे एवरेज हो जाए। फिल्म को हिट होने के लिए वैतरणी पार करनी होगी। इसका भारीभरकम बजट इसे आसानी से आकाश में उड़ने नहीं देगा। पृथ्वीराज में संजय दत्त और सोनू सूद वे कलाकार हैं, जिन्होंने फिल्म में रोचकता बनाए रखी।
यदि निर्देशक अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर के भरोसे रहते तो आज थियेटर आधे भी नहीं भर पाते। फिल्म का वीएफएक्स बढ़िया है। सेट्स पर बहुत बारीक काम किया गया है। उस दौर की संस्कृति दिखाने के लिए निर्देशक को साधुवाद। हालांकि स्क्रीनप्ले उतना सरस नहीं है। फिल्म के गीत पहले से हिट नहीं हुए हैं। यदि फिल्म के गीत हिट न हो तो वे कहानी में बाधा बन जाते हैं। युद्ध के दृश्यों में निर्देशक वीएफएक्स के भरोसे ही रहे हैं।
आमने-सामने की लड़ाई के दृश्य बहुत ही कमज़ोर सिद्ध होते हैं। फिल्म की शुरूआत में शेरों से लड़ने वाले दृश्य अवश्य ही मनोरंजक और रोमांचक हैं लेकिन बाकी दृश्यों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता। चूँकि ये एक ऐतिहासिक फिल्म है इसलिए इसकी तुलना मगधीरा और बाहुबली से अवश्य की जाएगी। अक्षय कुमार के अभिनय से मैं बहुत निराश हूँ। उन्होंने इस चरित्र को आत्मसात नहीं किया है। वे एक भी दृश्य में पृथ्वीराज का शौर्य प्रस्तुत नहीं कर सके हैं।
ऐसी भूमिकाओं के अध्ययन के लिए ही कलाकार को महीनों देने होते हैं और अक्षय बहुत व्यस्त कलाकार हैं। पृथ्वीराज के चरित्र में घुसने का समय उनके पास नहीं है। वे इस फिल्म में चालढाल से अक्षय कुमार ही दिखाई देते हैं। मानुषी को इस किरदार के लिए क्यों लिया गया। संयोगिता का किरदार किसी मंझी हुई अभिनेत्री को दिया जाना चाहिए था। उनके चेहरे पर एक दो भाव आते हैं और वह भी बड़ी मुश्किल से।
यदि फिल्म के सबसे अच्छे दृश्य की बात करुं तो निःसंदेह स्वयंवर वाला दृश्य ही मानस पटल पर आता है। ये सीक्वेंस बड़े सुंदर ढंग से फिल्माया गया है। इस दृश्य में जयचंद की पत्नी का किरदार कर रही साक्षी तंवर ने कमाल कर दिया है। ये दृश्य दर्शक को बहुत देर तक याद रहेगा। जयचंद की भूमिका में आशुतोष राणा ने ज़ोरदार अभिनय दिखाया है। मोहम्मद गोरी की भूमिका में मानव विज कमज़ोर दिखे हैं। गोरी की क्रूरता को वे प्रस्तुत नहीं कर सके।
चंदबरदाई की भूमिका में सोनू सूद ने प्रभावित किया है। कान्ह की भूमिका में संजय दत्त स्वाभाविक दिखाई दिए हैं। उनके कारण गुमसुम बैठे दर्शकों को कुछ समय हंसने का अवसर मिल जाता है। फिल्म में स्त्री समानता का अच्छा खासा पाठ पढ़ाया गया है। गजनी के भाई की पृथ्वीराज से दोस्ती और उसके मरने पर पृथ्वीराज के रोने का दृश्य यशराज के सेकुलरिज्म की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं।
फिल्म की एडवांस बुकिंग मात्र 4.40 करोड़ की हुई है और पहले दिन थियेटर भी आधे ही भर सके हैं। हालांकि माउथ पब्लिसिटी के बल पर अगले दो दिन कलेक्शन में उछाल देखने को मिल सकता है। हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि पृथ्वीराज के मुकाबले में दक्षिण की दो वज़नदार फ़िल्में भी मैदान में है। उनमे से मेजर को बहुत अच्छी समीक्षाएं मिल रही हैं। 300 करोड़ का महाबजट पार कर लाभ अर्जित करना यशराज फिल्म्स के लिए बड़ी चुनौती जैसा है।
द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म भी 300 करोड़ का कलेक्शन पार नहीं कर सकी थी। केंद्रीय मंत्री द्वारा फिल्म के प्रमोशन का सकारात्मक असर दिखाई दिया है लेकिन फिल्म को बड़ी सफलता दिलाने जितना पर्याप्त नहीं है। सार यही है कि निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी के शोध और निर्देशन ने नाम खराब होने से बचा लिया है। चुनौती तो बजट पार करने की होगी।