‘एम्प्लायर प्रोविडेंट फंड संगठन के कामगारों ने बुधवार को हड़्ताल पर जाने की घोषणा की है.
कुल मिलाकर 18,000 कामगारों की हड़ताल पर जाने की सम्भावना है. कामगार संगठन की श्रमिक पांलिसेयों से खुश नहीं है इसीलिये अपनी मांगे सामने रखने के लिये उन्होने हड़्ताल पर जाने का निर्णय लिया है.
जो हड़्ताल पर उतरेंगे , वो बी , सी और डी केडर के श्रमिक हैं जिनका कहना है कि कम्पनी पांलिसी कुछ इस प्रकार की है कि कम्पनी का सारा पैसा ग्रेड ए के श्रमिकों के लिये सुख सुविधायें जुटाने में खर्च हो जाता है . उन्होने कम्पनी पर ये भी आरोप लगाया है कि उनसे ज़रूरत से ज़्यादा कठिन परिस्थितयों में बिना सुविधाओं के काम कराया जाता है, यहां तक कि, सरकार द्वारा निर्धारित छुट्टियों पर भी उनसे काम कराया जाता है और स्वास्थ्य अत्याधिक खराब हो जाने पर भी उन्हे मेडिकल लीव तक नहीं मिलती.
भारत में मज़दूरों को लेकर कई कानून बने हुए हैं. अब केंद्र सरकार ने ऐसी मुहिम छेड़ी है जिसके अंतर्गत भारत के विभिन्न मज़दूर कानूनों को चार लेबर कोड़्स के अंतर्गत लाया जायेगा. ऐसा करने का उद्देश्य इन कानूनों को इस तरह से पुन: संगठित करना है इन्हे समझने में आसानी हो और इन्हे सही तरीके से लागू किया जा सके. इनमें से श्रमिकों के लिये न्यूनतम आय का कानून तो लागू भी हो गया है.
लेकिन सरकार ने जिन नये लेबर कोड कानूनों की रूपरेखा तैयार की है, उनमें मज़दूरों के अधिकारों को लेकर जो भी फैसले होंगे, उसमे सरकारी हस्तक्षेप अधिक बढ़ जायेगा और मज़दूर संघों की अहमियत कम हो जायेगी, ऐसा मज़दूर संघों का कहना है. हालांकि मज़दूर संघ किस हद तक मज़दूरों की ज़मीनी सच्चाई से जुड़े हुए हैं, ये अपने आप में ही विचारणीय है. अगर इन मज़दूर संघों के नेता भी मालिकों की तरह मज़दूरों पर अपना रौब जमा अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं तो फिर इन संघों का पुनरअवलोकन होना शायद कुछ ज़रूरी भी है.
अब बात जहां श्रमिकों के अधिकारों की आती है तो कम्पनियां, खासकर कि प्राइवेट कम्पनियां अक्सर हर केडर के श्रमिकों से अपने मन मुताबिक काम कर उनके अधिकारों का बड़े ही सुनियोजित तरीके से हनन करती हैं. कांरपरेट कम्पनियों में काम कर रहे श्रमिकों को तो ये मालूम भी नहीं होता कि इनके अधिकार क्या है. और उनकी कोई यूनियन भी नहीं होती. और नौकरी की मारामारी के चलते इनके ज़ेहन में कभी भी यूनियन बनाने का या अपने अधिकारों के लिये लड़ने का खयाल तक नहीं उठता.
एम्प्लायर प्रोविडेंट फंड संगठन के श्रमिकों की हड़्ताल के मामले में श्रमिकों का कहना है कि उन्होने सरकार का ध्यान कई बार लिखित शिकायतों के माध्यम से संगठन में चल रही धांधलेबाज़ियों की ओर खींचने का प्रयास किया लेकिन सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया.
इस मुद्दे और बहुत सारे श्रमिकों से जुड़े मुद्दों के चलते भारत में ज़रूरत है ऐसे प्रावधानों कि जो कि कम्पनियों को श्रमिकों से जुड़े कानूनों को लागू करने के लिये बाध्य हों. नहीं तो उन कम्पनियों पर भारी जुर्माना हो या फिर ऐसे कुछ कठोर प्रावधान ज़रूर हों जिनसे कम्पनियों पर सरकार का दबदबा बना रहे और वो श्रमिकों के अधिकारों का हनन करने से पहले सौ बार सोचें.
और सबसे ज़्यादा महत्व्पूर्ण बान यह है कि हर तबके के श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाये. कांरपरेट कम्पनियों में सरकारी अधिकारी न सिर्फ ‘सर्प्राइज़ इंस्पेक्शन ‘ करें बल्कि वहां के कामगारों से उनकी समस्यायें भी सुनें. अगर सरकार कम्पनियों पर ज़रा सा भी शिकंजा कसे तो भारत में श्रमिकों की स्थिति वाकई सुधर सकती है.