मित्रबोध तो ठीक है लेकिन , शत्रुबोध अनिवार्य है ;
बिना न इसके हो सके , रक्षा का कोई कार्य है ।
सदियों से हम युद्ध कर रहे , पर शत्रु बहुत चालाक है ;
छल – प्रपंच ,धोखेबाजी में , बहुत अधिक चालाक है ।
हम लोग निपुण है धर्म युद्ध में ,क्षमा दया हथियार है ;
धोखा इसी से खा जाते हैं , शत्रु कुटिल गद्दार है ।
हम अब तक भी जान न पाये , दुश्मन का इतिहास ;
अपनों से भी छले गये हम , पढ़ते झूठा इतिहास ।
कामी , क्रोधी , लालची , जितने कुटिल , कपूत ;
हम पर शासन कर रहे , हम समझे थे सपूत ।
आरक्षण , तुष्टीकरण , वोट – बैंक की घात ;
इनके बल पर मिल रही , हमें लात पे लात ।
कितनी लातें खा चुके , भरा न अब तक पेट ;
शत्रुबोध जाग्रत करो , वरना मटियामेट ।
शत्रुबोध से जान लो , शत्रु मित्र का फर्क ;
मित्र जिन्हें हम जानते , करते बेड़ा – गर्क ।
हमको फुरसत नहीं तनिक भी , नोट छपाई करने से ;
गाड़ी , बंगला , जायदाद , रोक सके न मिटने से ।
अब सारे षडयंत्र को जानो,धिम्मी,सेक्यूलरिस्ट पहचानो ;
बस कहने को ये हिंदू हैं , इनको परम शत्रु ही मानो ।
सबसे बड़े शत्रु ये ही हैं ,किया राष्ट्र का सत्यानाश ;
इनने ही इतिहास बिगाड़ा ,धर्म का करते रहते नाश ।
आजादी के बाद से , धिम्मी की सरकार ;
अभी भी धिम्मीराज है , भरे हुये मक्कार ।
मुंह में राम बगल में ईंटा , ऐसे ये मक्कार ;
मिल जायें राम धमक दें ईंटा , गद्दारों के यार ।
हम ऐसे नासमझ हैं , जिन्हें समझते मित्र ;
बारीकी से देखिए , बिल्कुल नहीं है मित्र ।
केवल शत्रुबोध ही अब तो , भारत राष्ट्र बचायेगा ;
वरना छुपे हुये दुश्मन से , राष्ट्र नष्ट हो जायेगा ।
अब तो सही राह को पकड़ो , बाधा सभी मिटा डालो ;
शत्रु बोध को जागृत करके , हिंदू – राष्ट्र बना डालो ।
केवल हिंदू – राष्ट्र ही अब तो , हिंदू- धर्म बचायेगा ;
वरना छिपे हुए दुश्मन से , राष्ट्र नष्ट हो जायेगा ।
“वंदेमातरम- जयहिंद”
रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”