नॉस्टॉल्जिक का शाब्दिक अर्थ उदासीन, खिन्न और अतीत की याद होता है। मुझे nostalgia के ये अर्थ उपयुक्त नहीं लगते। मेरे अनुसार इसका अर्थ ‘अतीताघात’ होना चाहिए। ये एक मीठा आघात होता है। हर मनुष्य चाहता है, उसे कभी न कभी ये आघात हो। इन दिनों राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन ये मनभावन अतीताघात दे रहा है। कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन की स्थिति बनते ही दूरदर्शन पर रामानंद सागर की ‘रामायण’ के पुनः प्रसारण की मांग उठने लगी। दूरदर्शन ने इस मांग को एक अवसर के रूप में देखा और रामायण सहित अपने रिपीट वेल्यू वाले बेहतरीन धारावाहिकों का प्रसारण शुरू कर दिया। इसका परिणाम अत्यंत सुखद रहा। ब्रॉडकॉस्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ने 28 मार्च से 3 अप्रैल तक की रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार दूरदर्शन इस समय सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल बन गया है। सोनी और ज़ी जैसे बड़े चैनलों की रेटिंग भी दूरदर्शन पर ‘रामायण’ शुरू होने के बाद घट गई।
रामानंद सागर की ‘रामायण‘ की वापसी बड़ी सुखद रही है। सिर्फ एक सप्ताह में हमारा राष्ट्रीय चैनल सबसे ऊपर की पायदान पर जा पहुंचा। क्या ये इस बात का संकेत नहीं है कि तनाव देने वाले और षड्यंत्र सिखाने वाले तथाकथित धारावाहिकों से दर्शक तंग आ चुके थे और स्वस्थ मनोरंजन चाहते थे। रामायण की नॉस्टैलजिक वैल्यू अब पता चल रही है। ये तथ्य तो मानना ही होगा कि कोरोना महामारी से उपजी पीड़ा और निराशा से लोगों को उबारने का माद्दा वर्तमान टीवी चैनलों में नहीं था। ये मानव का मूल स्वभाव है कि विशेष परिस्थितियों में वह अपनी जड़ों में लौट जाना चाहता है। विशेष रूप से जब मानवता पर संकट के बादल छाए हुए हो तो हर कोई अपने स्वर्णिम अतीत में लौटना चाहता है। ये भी अबूझ बात है कि पीड़ादायी वर्तमान जब अतीत बनता है तो मानव के लिए प्रिय क्यों हो जाता है।
यदि रामायण और महाभारत एक पीढ़ी को नॉस्टैलजिक अनुभव दे रहे हैं तो युवा पीढ़ी को भी ये अवसर दे रहे हैं कि वे अपनी पुरातन जड़ों को पहचाने, सनातन के आधार को पहचाने। क्या ये सुखद अनुभूति नहीं है कि इन दिनों रामायण को लेकर युवाओं में सकारात्मक चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। सोशल मीडिया पर लक्ष्मणरेखा का उदहारण देकर लॉकडाउन का महत्व समझाया जा रहा है। रामायण के विभिन्न पात्रों को जानने की उत्सुकता हमारे बच्चों में खूब देखी जा रही है। मोबाइल और टीवी की उलटबाँसियों से तंग आ चुके युवाओं को दूरदर्शन की मासूमियत भाने लगी है। जैसे कोरोना के सकारात्मक प्रभाव के रूप में हम पृथ्वी का पर्यावरण निर्मल होते देख पा रहे हैं, वैसे ही हमारा मानसिक चित्त भी निर्मल हो रहा है।
देश के एक विशेष वर्ग को ये रास नहीं आ रहा है कि हमारे पौराणिक नायक आज टीवी रेटिंग में शीर्ष पर स्थापित हो चुके हैं। उन्हें ये भी अच्छा नहीं लग रहा है कि आमतौर पर बड़े ब्रांड्स के विज्ञापनों को तरसते दूरदर्शन की झोली विज्ञापनों से भर गई है। देश का एक शीर्ष पत्रकार और एक बड़े अख़बार के फिल्म लेखक अनवरत आलोचना कर रहे हैं। पत्रकार को समस्या है कि क्या आवश्यकता थी रामायण के प्रसारण की। फिल्म लेखक को समस्या है कि रामायण के साथ बुनियाद और हम लोग का प्रसारण क्यों नहीं किया जा रहा। जबकि लेखक को मालूम ही नहीं है कि दूरदर्शन हम लोग और बुनियाद का प्रसारण कबका शुरू कर चुका है। बार्क की रिपोर्ट बता रही है कि इस समय देश के डेढ़ करोड़ से अधिक दर्शक दूरदर्शन देख रहे हैं। और ये बात अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है कि इसका श्रेय केवल और केवल रामायण को जाता है।
जैसा मैंने ऊपर लिखा था मनुष्य नॉस्टॉल्जिक होना चाहता है। बचपन में लौट जाना चाहता है। जड़ों में लौटने की चाह कभी-कभी सम्पूर्ण परिवेश के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। लोगों ने एक इच्छा दर्शाई कि वे रामानंद सागर की रामायण देखना चाहते हैं और उसके बाद क्या हुआ। मनोरंजन के क्षेत्र में सारा सिनेरियो ही पलक झपकते बदल गया। आज के हाई डेफिनेशन कैमरे, आज की बेहतरीन एनिमेशन टेक्निक्स, आज के बेहतर एडिटिंग सॉफ्टवेयर उस सीरियल से पराजित हो गए हैं, जो अत्यंत साधारण कैमरों से शूट किया गया। जिसके एनिमेशन आज बचकाना लगते हैं। जिसकी एडिटिंग के लिए आज जैसे बेहतर साधन नहीं थे। रामायण सीरियल में एक अंतर्निहित दिव्यता है, जिसने आज के आधुनिक मनोरंजन जगत को हाशिये पर रख छोड़ा है।
Great… That’s what we,the indians are known for