भाजपा पर आरक्षण खत्म करने के झूठे आरोप लगाने वाले उर्मिलेश यादव राहुल गांधी के ‘पीडी पत्रकार’ गिरोह के सदस्य हैं! ‘पीडी पत्रकार’ यानी मालिक राहुल गांधी ने यदि झूठी घोषणा कर दी कि भाजपा आरक्षण खत्म कर देगी, तो उर्मिलेश यादव जैसे पत्रकार भी सत्यता को जाने बिना उसकी डुगडुगी बजाना शुरू कर देते हैं! जबकि इन पत्रकारों को अच्छी तरह से मालूम है कि बिना संसद में पारित कराए कोई भी दल आरक्षण खत्म नहीं कर सकती है! कांग्रेस शासन में राज्यसभा टीवी का भरपूर आर्थिक दोहन करने वाले उर्मिलेश यादव बेचैन हैं कि कहीं दलित शब्द पर अदालती बैन लग गया और संविधान में उल्लेखित अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग बढ़ गया तो वह अपने मालिक राहुल-सोनिया गांधी के विभाजनकारी दलितवादी राजनीति की आग में घी कैसे डालेंगे? इसीलिए वह ‘दलितवाद’ की तुरही बजाते रहने पर आमदा हैं!
एक जनहित याचिका की सुनवाई के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर शाखा ने सरकार से शीघ्र ही निर्देश जारी कर मीडिया और सरकारी दस्तावेजों में दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने को कहा है। अब जब कोर्ट ने निर्देश दिया है तो उसकी आलोचना भी शुरू हो गई है। वहीं उर्मिलेश (यादव) नाम के एक लुटियन पत्रकार ने तो कोर्ट के आदेश नहीं मानते हुए दलित शब्द का इस्तेमाल जारी रखने का इकबालिया ऐलान कर दिया है। उन्होंने तो इसके लिए सरकार द्वारा निर्धारित दंड भुगतने तक की बात कही है। उर्मिलेश यादव का यह बयान सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर आया है।
मुख्य बिंदु
* हर किसी को कोर्ट के आदेश का आदर करना सीखना चाहिए
* अपने सुविधानुसार संविधान की व्याख्या करना बंद करना चाहिए
वैसे तो उर्मिलेश अपनी यादवी राजनीति और अपनी यादव जाति को छिपाते फिरते हैं, लेकिन जैसे ही लालू यादव या मुलायम सिंह यादव जैसे जातिवादी नेता की राजनीति पर आंच आने लगती वे उसके समर्थन में कूद पड़ते हैं। वैसे भी वे जातिवादी राजनीति के पक्षधर रहे हैं। लोगों में ब्राह्मणवाद का खौफ भरते रहते हैं। उर्मिलेश ने कहा है कि दुनिया के किसी संविधान में ऐसे किसी शब्द पर पाबंदी नहीं लगती।
उनका कहना है कि दलित शब्द न तो अपशब्द है और न ही असंसदीय। अब इन्हें कौन समझाए कि कोर्ट ने इसे अपशब्द माना है तभी तो इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात कही है। जहां तक असंसदीय होने की बात है तो वह अब हो जाएगा। क्योंकि भारतीय संविधान में दलित शब्द का उपयोग कहीं नहीं है। उर्मिलेश को कोर्ट के निर्णय का आदर करना सीखना चाहिए तभी संविधान की रक्षा होगी। अपने सुविधानुसार संविधान को न पढ़े तो बेहतर होगा।
अपना उपनाम ‘यादव’ छुपाने वाले उर्मिलेश घनघोर जातिवादी हैं। जातिवादी सभा-सेमिनार-लेखों के जरिए वह फेक न्यूज और फेक नरेशन बनाने में माहिर हैं। इस कथित पत्रकार को सेना प्रमुख विपिन रावत के बयान पर भी ऐतराज है। कश्मीर में आतंकी सेना के जवानों को मारे या आतंकी के पक्ष में वहां के लोग सेना पर पत्थरबाजी करें, आईएसआईएस व पाकिस्तान के झंडे लहराएं, उर्मिलेश यादव जैसे पत्रकार बड़े आराम से प्रेस क्लब और आईआईसी में हाथ में गिलास थामे बतकही करते मिल जाते हैं! लेकिन ज्योंही सेना के जवान जेहादियों पर कार्रवाई करे, सेना के पक्ष में उतरने वालों को देशद्रोही की श्रेणी में रखे, इनके अंदर का जातिवाद-संप्रदायवाद जग जाता है और ये बकैती करने न्यूज चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक पर उतर आते हैं।
उर्मिलेश जी नाम के साथ अब अपना सही सरनेम लगा ही लीजिए, क्यों पत्रकारिता को धोखा दे रहे हैं?
अरे भाई! आप खुलकर खुद को ‘समाजवादी सर्टिफाई यादव पत्रकार’ क्यों नहीं लिखते?
URL: Even after Bombay HC order Urmilesh will not stop use dalit word
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