नयनों ने देखा मधुर स्वप्न,
सुंदर धरा अद्भुत उपवन।
देश मेरा भारत महान,
जहां बसते हैं सबके प्राण।
ना कोई लड़ाई, ना ही कोई द्वेष,
ना ही किसी ने डाला हो दिखावे का भेष।
ना हो नामोनिशान भ्रष्टाचार का,
बेमिसाल उदाहरण बने भारत शिष्टाचार का।
सभी ने ओढ़ी हो निष्ठा की चादर,
जहां दिल से किया जाता हो सबका आदर।
ऊंच बीच का ना हो कोई अंतर,
एक दूजे से सब प्यार करे निरंतर।
पढ़ना लिखना सबका अधिकार जहां,
होते हैं सबके स्वप्न साकार वहां।
रात्रि बीती,स्वप्न समाप्त,
दिन आया दे गया स्वप्न पूर्ति का समय पर्याप्त।