सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार को खून की आंसू रुला देंगें! यह उम्मीद पाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। वर्मा पर सार्वजिनिक भरोसे वाली देश की सबसे काबिल जांच एजेंसी की साख को बचाने की जिम्मेदारी थी लेकिन वे राजनीतिक मोहरे का शिकार होते रहे। उन्होंने जिस गोपनीयता की शपथ ली थी वो सीबीआई की आत्मा थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी उन्होने भरोसे के शिखर पर विराजमान संस्था की आत्मा को ताड़ ताड़ कर दिया। सीबीआई के निदेशक होते हुए वे एक खेमे के लिए पत्रकारिता कर रही वेब मीडिया को वो गोपनीय रिपोर्ट सौंप दी जो उन्हें अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को सौंपना था। जब सीबीआई निदेशक के वकील फली नरीमन को कुछ दस्तावेज देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जो रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी गई, वो पहले ही सार्वजनिक कैसे हो गई ! तो नरीमन हक्का बक्का रह गए। कोर्ट ने सख्त लहजे में नरीमन को सीवीसी और मीडिया रिपोर्ट की कॉपी लौटा दी। मतलब अदालत से पहले सीबीआई निदेशक, अपने आकांओं को सफाई दे चुके थे। जिसका सबूत भारत के मुख्य न्यायाधीश ने फली नरीमन को सौंप दी।
भारत की सुप्रीम अदालत ने कहा कि संस्थानों का सम्मान और उनकी मर्यादा बनी रहनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि मैं आपको कोई कागज दूं और मेरा स्टाफ बीच में ही उड़ा ले, ये क्या है। इसके अलावा कोर्ट ने सोमवार को दिए गए जवाब का लिफाफा भी नरीमन को लौटा दिया। जानते हैं फली नरीमन कौन हैं, जिसे भारत के मुख्य न्यायाधीश इतनी फटकार लगा रहे थे! नरीमन, राम जेठमलानी के बाद देश के वो सर्वसम्मानित वकील हैं जिनका अब सुप्रीम कोर्ट में कोई तोड़ नहीं।
एक बार जेठमलानी ने जिरह के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को यूं ही कह दिया मी लॉड जितनी आपकी उम्र नहीं उससे ज्यादा तो हमने अदालत में काला गाउन पहन कर बिता दिया। सुप्रीम कोर्ट के जज को पता था कि जेठमलानी क्या कहना चाहते हैं। जेठमलानी होने के मायने क्या हैं! वही मायने फली नरीमन होने के हैं। जो जेठमलानी होने के हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश के रिटायर्ड होने की उम्र 65 साल है। फली नरीमन 67 साल से काला गाउन पहन कर कानून की गुत्थी सुलझा रहे हैं। जिस फली नरीमन की दलील को चुपचाप मीलॉड भी गहनता से ग्रहण करते हैं उन्हें उस पिच पर पहली बार लज्जित होना पड़ा जहां उनका कोई तोड़ नहीं।
अपने मुवक्किल के शातिराना खेल की वजह से सुप्रीम अदालत में लज्जित हुए वरिष्ठ वकील फली नरीमन पहली बार भावकु दिखे। अदालत से उन्होंने कहा, ‘मैं पिछली सदी से कोर्ट में हूं. मुझे कोर्ट में 67 साल हो गए हैं, लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई। इतना अपसेट कभी नहीं हुआ।’ नरीमन भी अदालत से वो शब्द बोल सकते थे जो कभी जेठमलानी ने कहा था। आखिर में देश की सर्वश्रष्ठ जांच एजेंसी के निदेशक के वकील थे! सवाल यहां सिर्फ नरीमन की साख की नहीं जिसकी चिंता कोर्ट को भी थी इसीलिए अदालत ने कहा हम वकील नरीमन से नहीं उस नरीमन के रवैये ने दुखी हैं जो याचिकाकर्ता का वकील है। हम दुखी हैं कि जिस एजेंसी की साख को बचाने के लिए हमे गोपनीयता बनाए रखना चाहते थे उसके उच्च अधिकारी को इसकी चिंता ही नहीं।
आखिर देश के सबसे काबिल जांच एजेंसी के निदेशक किसके हाथो में खेल रहे हैं, जिसकी चिंता सुप्रीम अदालत को भी है। जिसने देश के सबसे वरिष्ठ वकील को सात दशक में पहली बार अदालत में लज्जित होने को मजबूर कर दिया।
सच तो यह है कि वर्मा और अस्थाना। घाघ तो दोनों हैं। जिसका सच अभी सामने आना बांकी है। सीबीआई में रहकर उनके निदेशक और विशेष निदेशक आपसी लड़ाई में इस हद तक जा सकते हैं तो आम आदमी संग वे क्या कर सकते हैं इसका अदाजा भर लगाया जा सकता है। एक दुसरे का वजूद नष्ट करने में वे इतने उलझे कि एक दूसरे का ही सिर फोड़ने पर उतर आए। और अपनी हरकतों से सीबीआई के साख का ही गला घोंट गए।
मगर वर्चस्व की लड़ाई में मीडिया के शातिराना इस्तेमाल के मामले में वर्मा का कोई जोड़ नहीं। अस्थाना इस मामले में पीछे छुट गए। सवाल तो यह भी उठता है कि वर्मा, मीडिया का इस्तेमाल कर रहे थे या मीडिया का वो वर्ग, अपने आका के लिए वर्मा का इस्तेमाल कर रहा था सरकार से बदला लेने के लिए! सच जो भी हो वर्मा ने सीबीआई निदेशक की साख को तार तार कर दिया है। गोपनीयता की जो शपथ उनके पद की गरिमा का उसूल होना चाहिए था उसे उन्होने एक मीडिया संस्था के पास गिरवी रख दिया। वर्मा के इस रवैये से सीबीआई की पूरी साख तबाह हो गई। वर्मा को इसकी चिंता होती तो वे अपने कनिष्ठ संग आपसी टकराहट के मुद्दे को इस स्तर तक नहीं गिराते। लेकिन वर्मा से बड़ी आस लगाए आशावानों को उन्होने जो झटका दिया है उसके बड़े मायने हैं। सीबीआई के दो सर्वश्रेष्ठ अधिकारी की आपसी टकराहट पर गिद्ध दृष्टि किसी का हो या नहीं, भारतीय न्याय व्यवस्था में सीबीआई से आखरी उम्मीद पाले लोगों को बड़ा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद जवाब दाख़िल करने से पहले ही उसका अंश मीडिया को लीक कर निजी फायदे और विशेष दिशा में माहौल बनाने की कोशिश बता रही है वर्मा साहब भी बड़े वाले खिलाड़ी है।
दिलचस्प देखिए ,राकेश अस्थाना की जांच रिपोर्ट में सतीश साना बयान देता है कि उसने डायरेक्टर साहब को दो करोड़ रुपये दिए और फिर डायरेक्टर साहब की ओर से कराई गई जांच रिपोर्ट में वही सतीश साना कहता है कि उसने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना जैसे दिखने वाले व्यक्ति( व्हाट्सअप डीपी देखकर अनुमान लगाया) को पैसे दिए। यानी दोनों अफसरों के बीच मोहरा सतीश साना ही हुआ। अब दोनो अफसर मिलकर पूरी व्यस्था का इस्तेमाल कर रहा है। हर किसी को जिसे अस्थाना और वर्मा मे अपना हित सध रहा है वो उसकी व्याख्या अपने हिसाब से कर रहा है।…
माना जा रहा है कि पूरे खेल में वर्मा की हर रणनीति में प्रशांत भूषण और एक अंग्रेजी अखबार का एक पूर्व संपादक शामिल हैं। एक तरफ से कानूनी दांव-पेंच तो दूसरी तरफ से सूत्रों के हवाले से क्या उड़ाकर कहां निशाना साधा जा रहा है।
वकील और पत्रकार के हाथों इस्तेमाल हो रहे और उन्हें इस्तेमाल कर रहे सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के 89 साल के बुजुर्ग वकील फली नरीमन को यह पता ही नहीं रहा होगा जिस जवाब को वह एक्सक्लूसिव बताकर सुप्रीम कोर्ट को सौंपने जा रहे हैं, उस रिपोर्ट की प्रूफ रीडिंग पहले ही करा चुके हैं। मुख्य न्यायाधीश ने खबर का प्रिंट आउट दिखाते हुए पूछ दिया कि ये जो आप जवाब दे रहे हैं, यह पहले से ही कैसे छप गया है! खुद उन्हें कोर्ट में कहना पड़ गया कि अब तक उनके जीवन में ऐसी शर्मिंदगी कभी नहीं झेलनी पड़ी। 67 साल से अदालती दांव पेंच के सर्वश्रेष्ठ मास्टर नरीमन साहब को पता नहीं रहा होगा कि जिसका केस लड़ रहे हैं, उसका अपना दांव है! उन्हें इंसाफ की दरकार नहीं। वो दरअसल कई पॉवर सेंटर के हाथों में खेल रहे हैं।