विपिन त्रिपाठी। श्रावण मास में उत्तराखंड में “हरेला का त्यौहार” बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। मैं इस बार हरेले के समय हल्द्वानी में था। वहां पर परिवार के सदस्यों के साथ इस त्यौहार को मनाया। मुझे अपना बचपन याद आ गया , बचपन में इस त्यौहार को मनाने के लिए सुबह से ही मिट्टी गूंथ कर शिव- पार्वती की मूर्तियां बनाने में जुट जाते थे ।
तब मूर्तिकला के ज्ञान से अनभिज्ञ थे I इस त्यौहार की खास बात यह थी की फूल तोड़ने के लिए हमें दूर-दूर भटकना पढ़ता था । क्योंकि इस रितु में फूल नहीं मिलते थे ।मुझे इस त्यौहार के बारे में लिखने की विशेष रूचि इसलिए उत्पन्न हुई की कुछ समय पहले मैं जब “अलबरूनी की इंडिया “का अध्ययन कर रहा था ।
उसमें अलबरूनी ने दो अनुच्छेदों में इस त्यौहार का वर्णन किया था मुझे सुखद -आश्चर्यच हुआ, क्योंकि हरेला का त्योहार जहां तक मेरी जानकारी है, उत्तराखंड के अलावा भारत में शायद हीं कहीं मनाया जाता है।
अलबरूनी 1030 में भारत आया था महमूद गजनवी के साथ वह काफी लंबे समय तक भारत में रहा, यहां के इतिहास, संस्कृति व सभ्यता के बारे में विस्तृत विवरण लिखा है। अलबरूनी को खगोल विज्ञान में विशेष रूचि थी। वह जानता था की भारतवासी खगोल शास्त्र में काफी पारंगत होते है ,इसलिए उसके अध्ययन के लिए वह भारत आया ।
उसने लिखा की भारत की सभ्यता और संस्कृति को गजनबी ने धूल में मिला दिया । भारतीय युद्ध कला से बिल्कुल अनभिज्ञ थे ,इसलिए गजनबी को कोई प्रतिरोध भारत में नहीं मिला। युद्धों से घ्रणा करना भारतीय संस्कृति में गहरी बैठी हुयी है , यही कारण है कि पाकिस्तान जैसा अदना सा देश भारत के विरुद्ध जेहाद- जेहाद की रट लगाए रह्ता है, और हिन्दुस्तानी शांति- शांति मंत्र जपता है I
जेहाद इस्लाम में प्रत्येक मोमिन के लिये अनिवार्य है I यदि भारतीय युद्ध विद्या से इसी तरह घ्रणा करते रहे ,तो भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने में पाकिस्तान शीघ्र सफल हो जायेगा I