भारत में कब भ्रष्टाचार जाति में बदल जाता है, यह पढ़ता था, लेकिन क्या पता था कि मुझे इसे भुगतना भी पड़ेगा? भारतीय टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन जब मैच फिक्सिंग में फंसे तो कहा, ‘मैं मुसलमान हूं, इसलिए मुझे फंसाया जा रहा है।’ वह भूल गये कि उनका मजहब देखकर नहीं, उनका खेल देख्कर उन्हें कप्तान बनाया गया था। ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं, जब भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार से बचने के लिए नेताओं ने, मैं मुसलमान हूं, मैं दलित हूं, मैं पिछड़ा हूं-इसलिए फंसाया जा रहा है का विक्टिम कार्ड खेला है!
लेकिन जब भ्रष्टाचार में फंसा कोई पत्रकार अपने प्यादों से जाति को लेकर हमला कराने लगे तो सोचिए कि भारतीय पत्रकारिता किस दुर्दिन से गुजर रही है! हालांकि पत्रकार दिलीप मंडल दलितवाद का तो राजदीप सरदेसाई कोंकणी ब्राह्मणवाद का कार्ड खूब खेल चुके हैं और बार-बार पत्रकारिता को शर्मसार कर चुके हैं। ऐसों के कारण पत्रकारिता तो मर ही चुकी है, लेकिन मुझे भी इसका भुगतान करना पड़ेगा, कभी सोचा नहीं था।
कभी राष्ट्रीय सहारा और तहलका के प्रधान संपादक रह चुके उपेंद्र राय का भ्रष्टाचार हमारी टीम ने इंडिया स्पीक्स पर क्या उजागर करना शुरु किया, मुझ पर भूमिहार समाज के नाम पर हमला बोल दिया गया। उपेंद्र राय और उसकी टीम ने मुझ पर और मेरी टीम को 100 करोड़ की मानहानि का नोटिस भेज दिया और उसके प्यादे भूमिहारवाद की आड़ में मुझे फोन, मैसेज से धमकाने लगे। मैं जाति तो नहीं मानता, लेकिन मैं सफाई पेश करता रहा कि भाई मैं खुद भूमिहार ब्राह्मण हूं, लेकिन इसका क्या मतलब? क्या भूमिहार होने से भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस मिल जाता है? लेकिन नहीं! प्यादे कहां चुप बैठने वाले थे?
मुझ पर खुल कर हमला होने लगा। जो लोग पहले भईया-भईया कहते थे, वो मुझे नकली भूमिहार, दोगला भूमिहार कहने लगे। भूमिहार समाज का ग्रुप बनाकर मेरे खिलाफ अभियान चला। गंदे से गंदा गाली मुझे दिया गया। मेरे पूरे परिवार पर अपशब्दों से हमला किया गया। मुझे झूठा, मक्कार, डॉ. सुब्रह्मनियन स्वामी का चमचा, दोगला-और न जाने क्या-क्या कहा गया! मैं इस सबसे विचलित नहीं होता, लेकिन मैं एक पारिवारिक आदमी हूं। मेरा परिवार डर गया। सबको चिंता सताने लगी। तब मेरी मम्मी-पिताजी गांव से आकर यहीं दिल्ली में रह रहे थे। मेरी मां रोने लगी। कही, ‘गांव चलो। यहां नहीं रहना है।’
25 अप्रैल 2018 को मैंने उपेंद्र राय पर पहली खबर इंडिया स्पीक्स पर छापी, उसी रोज से हमला बढ़ गया था। उसके करीब एक सप्ताह बाद ही 3 मई 2018 को उपेंद्र राय के वकील ने प्रधान संपादक के नाते मुझे, मेरे उपसंपादक संजीव जोशी एवं इंडिया स्पीक्स को 100 करोड़ का नोटिस भेज दिया। मैं अपने आप को बेच भी दूं तो 100 करोड़ नहीं आएंगे। लेकिन पत्रकारिता को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने की हमारी मुहीम को समझने की जगह उपेंद्र राय के चेलों ने भूमिहारवाद की ओट लेकर मुझ पर हमला कर दिया।
उपेंद्र राय उप्र के गाजीपुर के भूमिहार हैं। भ्रष्टाचार की चमक-दमक तो खूब होती ही है। वह भी जब सहाराश्री, पी. चिदंबरम जैसे धनपशु का हाथ सिर पर हो तो फिर उस चमक-दमक में कई गुणा बढ़ोत्तरी हो ही जाती है! यही कारण है कि गाजीपुर के भूमिहार युवाओं पर उपेंद्र का बहुत प्रभाव था, खासकर उन पर जिनको या जिनके परिवार में से किसी को उसने कहीं न कहीं नौकरी पर लगवाया था।
नोटिस की खबर प्रकाशित होते ही मुझ पर हमला और तेज कर दिया गया। यह मुझे डराने का तरीका था, ताकि मैं भविष्य में उपेंद्र राय के खिलाफ कुछ भी लिखने से डरूं। उसी शाम सरकार में बेहद नजदीक मेरे एक बड़े हितचिंतक का फोन आया। उन्होंने कहा, ‘मैं जानता हूं तुम पर हमले शुरू हो गये हैं। घबराओ मत। अभी उपेंद्र राय को सीबीआई ने उठा लिया है।’ मैंने भी 3 मई की रात तत्काल फेसबुक लाइव में 10.30 बजे इसकी सूचना सार्वजनिक कर दी।
उपेंद्र राय के चेले मेरी गतिविधि पर नजर बनाए हुए ही थे। तत्काल टीवी चैनल, गूगल आदि पर इसे सर्च करने लगे। लेकिन जब सूचना ही किसी को नहीं थी तो कहां से मिलती? उस रात से लेकर अगले दिन सुबह तक मुझे झूठा, फर्जी पत्रकार, दोगला भूमिहार कहने वालों की बाढ़ आ गयी। लेकिन उसी दिन सीबीआई ने उपेंद्र को अदालत में पेश किया, फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। भूमिहार समाज से ही मेरे एक मित्र हैं चंद्रशेखर राय। उन्हें भी लोगों ने मुझे समझाने के लिए फोन किया। वह खुलकर मेरे समर्थन में आ गये। धमकाने वालों से धमकाने के अंदाज में ही उन्होंने बात किया। उन्होंने भूमिहार के नाम पर उपेंद्र राय के पक्ष में भड़ैती करने वाले को ठीक से समझा दिया कि उन्हें मुझसे पंगा लेना कितना भारी पड़ सकता है!
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि इन पर वार कैसे करूं? सरकार या प्रशासन की की मदद लूं या फिर खुद से ही अपने तरीके से इस सारे मामले को हैंडल करने का प्रयास करूं? उसी वक्त हमेशा की तरह मेरे लिए उम्मीद की किरण बनकर वरिष्ठ पत्रकार और यथावत के संपादक श्री रामबहादुर रायजी सामने आए। उन्हें जब पता चला कि मुझे 100 करोड़ का नोटिस भेजा गया है और मुझ पर हमले हो रहे हैं तो उन्होंने कहा कि ‘आज रात मैं आपके कार्यालय आता हूं।’ वह आए और काफी देर तक मेरे कार्यालय में रहे। उनके आने का एक ही इरादा था कि पत्रकारिता में भ्रष्टाचार के खिलाफ मैं जो अभियान चला रहा हूं, उसमें मेरा हौसला कहीं से भी न टूटे। वह बिना बोले यह विश्वास दिलाने आए थे कि उनका आशीर्वाद मेरे साथ है। उन्होंने कहा कि ‘यह सब केवल इसलिए किया जाता है कि ताकि आगे से ऐसे लोगों के खिलाफ खबर न छपे। लेकिन आप खूब लिखिए।’ उन्होंने कहा, ‘उपेंद्र राय को तो वरिष्ठ पत्रकार लिखना भी उचित नहीं है।’
आदरणीय रामबहादुर रायजी की हौसलाअफजाई से मुझे बल मिला। मैं पूरे देश से यह पूछना चाहता हूं कि आप तय कीजिए, आपको रामबहादुर रायजी जैसा पत्रकार चाहिए, या फिर उपेंद्र राय जैसा दलाल? रामबहादुर राय जी पत्रकारिता की गरिमा हैं, वहीं उपेंद्र राय जैसे लोगों ने पत्रकारिता की पूरी गरिमा को गिराने का काम किया है। कैसे कुछ लोग किसी समाज के ठेकेदार बन जाते हैं और किसी की ओर से किसी को धमकाने चले आते हैं? शर्म आती है ऐसे भेड़-बुद्धि भड़ैती करने वाले लोगों पर!
मैंने कभी नहीं सोचा कि पत्रकारिता में भूमिहार होने का मुझे परिचय देना होगा। मेरा उपनाम भी देव है, जिससे किसी को मेरी जाति का बोध नहीं होता। लेकिन आज कहना पड़ रहा है, क्योंकि इस समाज की टोकरी में कुछ सड़े हुए आलू बदबू पैदा करने लगे हैं और इन बदबूदार आलुओं को टोकरी से हटाने का काम भी इस समाज के लोगों को ही करना है। मैं नहीं टूटा, क्योंकि मेरे साथ सच्चाई थी। साथ थे आदरणीय रामबहादुर रायजी और उनका आशीर्वाद, चंद्रशेखर राय और सोशल मीडिया के आप जैसे काफी सारे साथी, जिस कारण मेरा हौसला बना रहा।
आज यह सब इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में तिहाड़ जेल में बंद उपेंद्र राय को सुप्रीम कोर्ट से जबरदस्त झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी अधिकारी राजेश्वर सिंह को उनकी जांच से हटाने तथा जांच के लिए अलग टीम गठित करने की याचिका खारिज कर दी है। सीबीआई से जमानत मिलने के बाद ही 8 जून को प्रवर्तन निदेशाल ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में उसे गिरफ्तार कर लिया था। इससे पहले सीबीआई ने उपेंद्र राय के ठिकानों पर 2 मई की रात छापेमारी कर 3 मई को गिरफ्तार किया था। उपेंद्र राय तभी से तिहाड़ जेल में बंद है।
अब आप सब तय कीजिए कि मैं कहां गलत था कि मुझे गाली दिया गया, मुझे धमकाया गया, मुझे डराया गया, मुझे अदालत में घसीटने का प्रयास किया गया? मैं खासकर भूमिहार ब्राह्मण समाज से पूछना चाहता हूं कि जिस समाज के आदि पुरुष भगवान परशुराम ने सच्चाई के लिए न जाने कितने युद्ध लड़े, आखिर क्यों उस समाज के कुछ स्व-घोषित ठेकेदार उपेंद्र राय और कन्हैया कुमार जैसों के पक्ष में खड़े होकर पूरे समाज को लज्जित करने आगे आ जाते हैं? ऐसे लफंगों को इस समाज के प्रबुद्ध वर्ग द्वारा खुलकर जवाब देने की जरूरत है। ऐसे पिछलग्गुओं को कहना चाहता हूं कि याद रखिए आपकी पहचान कोई जाति नहीं, आपका कर्म है। यदि आपके कर्म ही कुकर्म हो जाएंगे तो जाति तो छोडि़ए, मानवता के लिए आप अभिशाप बन जाएंगे!
URL: Sandeep Deo Blog: fight against corrupt media and journalists-1
Keywords: Sandeep Deo Blog: fight against corrupt media and journalists, Sandeep Deo Blog, Sandeep Deo upendra rai, Ram Bahadur Rai, Fight Against Corruption