थियेटर खुलने की मंज़ूरी के बावजूद हिन्दी बेल्ट का दर्शक फिल्म देखने नहीं जा रहा है। कोरोना इसका कारण होता तो दक्षिण भारत में फ़िल्में कमाई के रिकार्ड नहीं तोड़ रही होती। सिनेमाघर संचालक और मीडिया ये मानने को तैयार नहीं दिखते कि दर्शकों का गुस्सा अब तक शांत नहीं हुआ है। आने वाले दिनों में बड़ी फ़िल्में थियेटर्स में रिलीज होने जा रही हैं। इनमें से एक संजय लीला भंसाली की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ भी है। ओटीटी को ख़ास पसंद नहीं करने वाले बॉलीवुड का भरोसा थियेटर्स के दर्शकों पर अब भी बना हुआ है।
इस सप्ताह तेलगु बॉक्स ऑफिस पर ‘ उपेन्ना’ फिल्म ने सुंदर प्रदर्शन करते हुए सौ करोड़ का कलेक्शन किया। कोविड-19 के बड़े उपद्रव के बाद तेलगु सिनेमा में उपेन्ना की सफलता दिखा रही है कि तेलगु फिल्म उद्योग ने पुनः गति पकड़ ली है। उधर तमिल सिनेमा ‘मास्टर’ की महा सफलता का उत्सव मना रहा है।
विजय जोसेफ की इस फिल्म का बजट 135 करोड़ था और इसने अब तक 250 करोड़ का शानदार कलेक्शन किया है। मास्टर का विजय मार्च अब तक जारी है। हिन्दी सिनेमा के ट्रेड पंडित और बॉलीवुड पोषित मीडिया तमिल और तेलगु सिनेमा की हालिया तस्वीर देखकर कैसे कह सकते हैं कि कोरोना के कारण दर्शकों का अकाल है।
दर्शकों का अकाल तो दक्षिण भारतीय बेल्ट में भी होना चाहिए था लेकिन वहां तो पिछले सप्ताह ही ‘उपेन्ना’ के टिकट सौ प्रतिशत बिक गए। जब कोरोना का प्रभाव कम होने के बाद थियेटर खुले तो कुछ फ़िल्में हिन्दी बेल्ट में भी प्रदर्शित हुई। ‘सूरज पर मंगल भारी’, ‘इंदू की जवानी’ और ‘लक्ष्मी बम’ बुरी तरह फ्लॉप हुई।
अक्षय कुमार की फिल्म ओटीटी के साथ थियेटर्स में भी रिलीज की गई थी। इन फिल्मों का बुरा हश्र क्यों हुआ? अक्षय कुमार की फिल्म देखने दर्शक क्यों नहीं पहुंचे? इन प्रश्नों का जवाब बॉलीवुड ने खोजने का प्रयास नहीं किया। मार्च में बॉलीवुड की बहुत सी फ़िल्में प्रदर्शित होने जा रही हैं। इनका क्या होगा, भगवान ही जानता है।
इस माह विद्युत जमवाल की कमांडो-2, गोविंदा की आ गया हीरो, राजकुमार राव की रुही, जॉन अब्राहम की मुंबई सागा, यशराज फिल्म्स की संदीप, पिंकी और फरार आदि प्रदर्शित हो रही है। इनमे केवल विद्युत जमवाल दर्शकों को थियेटर तक लाने की क्षमता रखते हैं। इस माह कोई बड़ी फिल्म प्रदर्शित नहीं हो रही है, सिवाय कमांडो- 2 के। क्या बड़े निर्माता इसलिए झिझक रहे हैं कि दर्शकों का गुस्सा अब तक शांत नहीं हुआ है।
संजय लीला भंसाली अपनी फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ जुलाई में प्रदर्शित करेंगे। क्या तब तक नेपोटिज्म इन बॉलीवुड का मुद्दा ठंडा हो जाएगा? जब बॉलीवुड में ड्रग्स का प्रकरण सामने आया और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मामले की तह तक नहीं पहुँच सका तब इसी मंच पर लिखा गया था कि ड्रग्स प्रकरण को बिना हल किये आगे बढ़ जाने का दुष्परिणाम दर्शक की नफ़रत के रुप में सामने आएगा।
आज ऐसा ही हो रहा है। ड्रग्स प्रकरण और उस पर फ़िल्मी सितारों और निर्माताओं के अशोभनीय व्यवहार ने मामला ही बिगाड़ दिया। पचास हज़ार करोड़ का फिल्म उद्योग खाई के मुहाने पर खड़ा है। दक्षिण भारत का फिल्म उद्योग सफलता के रथ पर सवार हो चला है लेकिन बॉलीवुड अब तक भयभीत है।
उसका भय कोरोना नहीं, हिन्दी बेल्ट के क्रोधित दर्शक हैं। अब भी ये क्रोध शांत किया जा सकता है। यदि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो दोषी लोगों को उनकी मंजिल यानी जेल तक पहुंचाए। सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हत्या और ड्रग्स के तालमेल से बना प्रेत बॉलीवुड को डरा रहा है। इस कलंक को बॉलीवुड के माथे से कौन मिटाएगा। कुछ लोगों के कारण हज़ारों लोगों का रोज़गार संकट में है।