अब जब कर्नाटक चुनाव का परिणाम करीब-करीब स्पष्ट हो गया है, कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है और भाजपा सत्ता के दरवाजे पर लगभग दस्तक दे चुकी है। ऐसे में इसका विश्लेषण भी अनिवार्य हो गया है। आज-कल सुविधानुसार विश्वेषण का समय चल रह है, हारने वाली पार्टी चुनाव जीतने का दावा करती है।
क्यों कांग्रेस कर्नाटक में सरकार नहीं बना पाएगी देखिये विडियो:
सत्ता आए या छिन जाए लेकिन पार्टी नेताओं और विश्लेषकों की थेथरई नहीं जाती। उदाहरण हमारे पास कई हैं। गुजरात चुनाव परिणाम के बाद राहुल गांधी की दैहिक भाषा के साथ उनका भाषण सुन लीजिए। हाल ही में भाजपा के ‘शुभंकर’ मणिशंकर का पाकिस्तान के लाहौर में दिया भाषण सुन लीजिए। ये लोग यही कहते आए हैं कि देश में तो भारतीय जनता पार्टी बस ‘यूहीं’ है। सिक्का तो हमेशा कांग्रेस का ही चला है। गुजरात में कांग्रेस सत्ता से कोसों दूर रही लेकिन पहले के मुकाबले एक-आध सीट ज्यादा क्या हो गई बयान ऐसे देने लगे कि गुजरात में चुनाव जीतकर आए हैं। अय्यर भी अभी तक यही कहते हैं आ रहे हैं मोदी देश का सर्वमान्य नेता थोड़े हैं उन्हें तो महज 34 प्रतिशत जनता ही अपना नेता मानती है क्योंकि 70 प्रतिशत तो उनके खिलाफ ही हैं। अब जब कर्नाटक का परिणाम आ चुका है तो इसी प्रकार के विश्लेषण किए जाएंगे। लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि चुनाव जीतने के लिए मत प्रतिशत जरूर अहम होते हैं लेकिन सरकार तो सीटों से ही बनती है। कांग्रेस जैसी आलसी पार्टी तो कई बार ज्यादा सीट जीतने के बाद भी सरकार बनाने से फिसल जाती है और बाद में नैतिकता की छाती कूटती रहती है।
मुख्य बिंदु
* कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को पहले से और भाजपा से भी अथिक मिला मत प्रतिशत
* लेकिन सीट जीतने में फिसड्डी साबित हुई कांग्रेस, 2013 की तुलना में आधे पर सिमटी
* कांग्रेस को जहां 37.9 प्रतिशत मिले वहीं भाजपा को 37 प्रतिशत और जेडीएस को 17.7 प्रतिशत
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के मुताबिक जहां भाजपा प्रदेश का सबसे बड़ी पार्टी के साथ बहुमत के करीब पहुंचने वाली है वहीं कांग्रेस को इस बार पिछले यानि 2013 में हुए चुनाव की तुलना में आधी सीटें ही मिलती दिख रही हैं। लेकिन जब वोट प्रतिशत की बात हो तो कांग्रेस को पिछले चुनाव से भी ज्यादा मिला है लेकिन सीट आधी से भी कम रहने की उम्मीद है। इस बार कांग्रेस को कर्नाटक में जहां पिछले चुनाव से भी 1.3 प्रतिशत अधिक यानि 37.9 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस से 0.9 प्रतिशत कम यानि 37 प्रतिशत वोट मिले हैं। कर्नाटक में तीसरी बड़ी पार्टी जेडीएस को भी पिछले चुनाव की तुलना में 2.5 प्रतिशत कम यानि 17.7 प्रतिशत वोट मिले हैं। लेकिन इसके क्या मायने? इसके मायने अगले चुनाव में पार्टियों के लिए तो हो सकते हैं ताकि वे इसे ध्यान में रखकर चुनाव की तैयारी करेंगे। लेकिन सरकार गठन में इसका क्या योगदान रहेगा? आखिर सरकार तो सीटों से ही बनेगी जिसमें भाजपा ने बाजी मार ली है।
यहां यह बताना जरूरी है कि कांग्रेस हमेशा हवा के विपरीत चलने का प्रयास करती है और हवा के झोंके खाकर उलट जाती है। गुजरात चुनाव में भी यही हुआ था। उस चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत अधिक था लेकिन सीटें थोड़ी कम हो गई थी, लेकिन इतना भी नहीं कि सरकार न बन सके, सरकार भी भाजपा की ही बनी। लेकिन कांग्रेस थोड़ी सीटें ज्यादा क्या जीत लीं उसने तो गुजरात जीतने के साथ ही 2019 में होने वाला लोकसभा चुनाव जीतने सरीखा व्यवहार करने लगी। कांग्रेस को पहले तय कर लेना चाहिए कि वह मत प्रतिशत ज्यादा चाहती है या सीट? उसने चुनाव मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए लड़ा था या फिर सीट ज्यादा जीतने के लिए? ताकि लोगों को विश्लेषण करने में सुविधा हो। कर्नाटक में क्षेत्रवार चुनाव परिणाम भी भाजपा के पक्ष में गया है। मुंबई कर्नाटक क्षेत्र में कमल खिल है। यहां बीजेपी 31 और कांग्रेस 15 सीटों पर आगे बताई गई है।
हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में बीजेपी 12 और कांग्रेस 15 और जेडीएस 4 सीटों पर आगे है। इससे लगता है कि यहां टक्कर कांटे का रहा है। तटीय कर्नाटक में तो भाजपा एक प्रकार से स्वीप कर गई है। यहां 21 सीटों में से 18 पर बीजेपी आगे रही है। मध्य कर्नाटक भी भाजपा ने दो तिहाई सीट पर आगे हैं। 35 सीटों में बीजेपी 24 सीटों पर आगे है। लेकिन दक्षिण कर्नाटक में जेडीएस की पकड़ मजबूत है यहां कुल 51 में से जेडीएस 25 सीटों पर आगे हैं। यहां भाजपा की हालत थोड़ी पतली है। यहां दूसरे नंबर पर कांग्रेस है वहीं भाजपा तीसरे नंबर पर है। बेंगलुरु क्षेत्र की 36 सीटों पर तीनों प्रमुख पार्टियों भाजपा, कांग्रेस औह जेडीएस में टक्कर दिखाई है। चुनाव आयोग से मिले आंकड़े के मुताबिक कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को जहां 37.9% फीसदी वोट मिले है, भाजपा को 37.1 प्रतिशत वोट मिले हैं। जबकि जेडीएस को 17.4% वोट मिले हैं।
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