वरं प्राणपरित्याग: शिरसो वाथ कर्तनम्।
न तु धर्मपरित्यागो लोके वेदे च गर्हित:।।
अर्थात्:- भले ही शीश कट जाए अथवा प्राण चले जाएं, यह सौ गुना अच्छी स्थिति है, तथापि लोक तथा वेद में वर्णित धर्म का त्याग करना अत्यंत गर्हित कार्य है। (#कालिकापुराण, अध्याय- 28/10)
भगवान विष्णु ने इसी धर्म की रक्षा के लिए अपने वराह अवतार का वध महादेव ( शरभ अवतार से) से करवा दिया, क्योंकि वराह पृथ्वी को उबारने के उपरांत अपनी शक्ति के मद में चूर पृथ्वी पर अराजकता उत्पन्न करने लगे थे! पहले भगवान विष्णु ने अपनी प्राण ऊर्जा उनके अंदर से खींची और महादेव से वराह का वध करने को कहा।
दूसरी तरफ कलयुगी हिंदू हैं, जिन्होंने अपना मतलब साधने के लिए अपना धर्म ही छोड़ दिया, जिसका परिणाम है कि भारतवर्ष की भूमि सिकुड़ती चली गयी, हम आक्रांताओं के गुलाम होते चले गये, और रही-सही कसर हमने नेताओं और बाबाओं की गुलामी करके पूरी कर दी!
दूसरी तरफ म्लेच्छ और यवनों ने नेताओं, संस्थाओं और पार्टियों की जगह अपने पंथ के विचार को ही प्रमुख माना और आज वो दर्जनों देश में विस्तारित हैं। आज भी उनके विचार ही दुनिया पर थोपे जा रहे हैं! धर्म को छोड़ने से न केवल व्यक्ति, उसका परिवार, उसका समाज, बल्कि राष्ट्र की भी हानि होती है!
अतः सनातनियों भगवान विष्णु जो स्वयं धर्म हैं, उनके अवतारों से आचरण ग्रहण करो, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने अवतार के वध से लेकर महाभारत तक रच दिया था!
जय मां काली! 🙏 #SandeepDeo