इस्लाम के बड़े जानकारों में शुमार लेखक तारिक फतह ने किताब में लिखा है कि इस्लाम के बारे में कहा जाए कि उसका इतिहास और साहित्य हत्या और रक्तपात से भरा है तो कोई अतिशयक्ति नहीं। मुस्लिम समुदाय स्वयं भी इस्लाम को शांति का धर्म मानने को तैयार नहीं है। इस्लाम के इतिहास को लेकर इस्लामिक स्कॉलर तारिक फतेह का अंग्रेजी में लिखा एक लेख इंडिया स्पीक्स के पाठकों के लिए हम हिंदी में लेकर आए हैं। पढि़ए आंखें खुल जाएंगी…
तारिक फतह| जब साल 2011 में कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने इस्लाम से कनाडा को सबसे बड़ा खतरा बताया था, तब उनकी आलोचना करने वालों की एक प्रकार से बाढ़ आ गई थी। एनडीपी के बेहतर रणनीतिकार गेरी कैप्लान ने तो उन्हें धर्मांध तक कह दिया था। ग्लोब और मेल में लिखते हुए कैप्लान ने कहा था ‘आखिर क्यों हमारे नेता उन धर्मांधों को पालते हैं जो हर मुसलमान पर आतंकवादी होने का कलंक लगाने के लिए आमादा हैं?’ हार्पर ने दोबारा इस बारे में फिर कुछ नहीं कहा था फिर भी उनकी निंदा करना या गाली देना बंद नहीं हुआ।
इस मामले में अधिकांश मुसलिम वर्गों ने तो हार्पर से माफीनामा जारी करने की मांग की थी। कनाडा के इस्लामिक सुप्रीम काउंसिल ने तो पूरे कनाडा के मस्जिदों के इमामों से आह्वान किया कि वे सामूहिक रूप से नमाज अदा करने के वक्त हार्पर के बयान की निंदा करें। इस मामले में काउंसिल ने अपना एक बयान जारी कर कहा कि कैसे प्रधानमंत्री हार्पर इस्लाम को कट्टरवादिता और रूढ़िवादिता से जोड़ सकते हैं।
उस साल का वही समय एक बार फिर आ गया है। अब जब 9/11 का बोझ हम पर है तब साल 2011 में की गई हार्पर की भविष्यवाणी सच साबित हो गई है। आज से पहले तक कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि इस्लामिक समूह इतना ताकतवर हो जाएगा कि वह खुद एक इस्लामिक स्टेट बन जाएगा। वह इतना खूंखार हो जाएगा कि हजारों अपनों की ही हत्या कर देगा और उसका व्यवहार शेष विश्व के लिए खतरा बन जाएगा। इतना बड़ा खतरा कि नाटो (NATO) जैसे वैश्विक संगठन को पूरी सभ्यता के लिए खतरा बने आईएस जैसे संगठन को खत्म करने के समाधान के लिए बैठक करनी पड़ जाए।
साल 2001 में 9/11 जैसी घटना के बाद बीते सालों में लाखों लोग मारे गए हैं, अरबों डॉलर नाले में बहा दिए गए, फिर भी हम उस समय से खराब हालत में ही रहने को मजबूर हैं। कहने का मतलब है कि 2001 में न्यूयॉर्क के ट्विन टॉवर ढहने के बाद से हालात सुधरने की बजाए और भी खराब हुए हैं। अब समय आ गया है कि अमेरिका समेत अन्य देशों को हार्पर की उस भविष्यवाणी पर ध्यान देना चाहिए तथा तुर्की और नाटो के सदस्यों की आपत्ति के बावजूद इस्लाम की विचारधारा को चुनौती देने का साहस जुटाना चाहिए।
दूसरे देशों के साथ ही हम मुसलमानों को भी थोड़े ज्ञान की जरूरत है। हमें भी सोचना चाहिए कि ISIS द्वारा जो निर्दोषों के सिर काटे जाते हैं क्या यही इस्लामिक परंपरा है? क्या यही हमारा इतिहास है? क्या यह हमारे मजहब के प्रति कट्टरवादियों की व्याख्या नहीं है? हमें याद रखना चाहिए कि किसी दूसरे का नहीं बल्कि पैगंबर मोहम्मद के नाती का सिर काट दिया गया था और दमिश्क की गलियों में उसे डंडे में लटकाकर जुलूस निकाला गया था। आज एसआई के जिहादी भी वही कर रहे हैं जो हम मुस्लिमों को पढ़ाया गया कि युद्ध के दौरान हमारे प्रोफेट भी यही किया करते थे।
इब्न इशाक द्वारा लिखा ‘सिरा’ के नाम से लोकप्रिय इस्लाम के पैगंबर की विशालकाय जीवनी सिरत रसुल अल्लाह से लिया गया यह उद्धरण-
“जब यहूदियों ने आत्मसमर्पण कर दिया और प्रोफेट मोहम्मद ने उन्हें मदीना में रखा था, बाद में प्रोफेट बाजार चले गए और वहां खाईयां खुदवाए। और फिर उन खाईयों में उन्होंने उन सभी यहूदियों के सिर को गड़वा दिया था, उनकी सख्या 600 या 700 रही होगी”
मैंने अपनी किताब “The Jew is Not My Enemy” में इस सामूहिक नरसंहार पर सवाल उठाया था? लेकिन पूरा सच जानने की बजाय मुसलमानों को चुनौती देने के नाम पर हमला होना शुरू हो गया। इस आधार पर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस्लाम शांति का धर्म है ही नहीं। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि यह योद्धा का धर्म है। लेकिन इसे अस्वीकार करना एक प्रकार का झूठ होगा कि इस्लाम का इतिहास और साहित्य सशस्त्र जिहाद, हत्या और रक्तपात से भरा पड़ा नहीं है जिसे हम आसानी से पर्दे के पीछे छिपा नहीं सकते है।
इसके साथ एक सच और भी है कि सिर्फ हम मुसलिम ही अपने भविष्य की पीढ़ी के लिए इस्लाम में सुधार ला सकते हैं। लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें अल्लाह के नाम पर झूठ बोलना बंद करना होगा। जिहाद की आलोचना से इनकार कर सिर्फ ISI को कोसने से कोई लाभ नहीं होने वाला। इसके लिए हमें हार्पर और नाटो के साथ मिलकर इस्लामवाद के खिलाफ लड़ने के लिए सबसे आगे आना होगा।
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। IndiaSpeaksDaily इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
URL: Former Canadian Prime Minister Harper correctly said ‘Islam is a threat’
Keywords: Stephen Harper, canada prime minister, Islamism is threat, islam, isisi, islamic terorism, tareekh fateh, इस्लाम,