लंदन की सैर करने गए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री तथा नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार को ज्ञान देना शुरू किया है। फारुख अब्दुल्ला ने कश्मीर समस्या का समाधान आयरलैंड की तरह खुली सीमा के आधार पर करने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा है कि जिस प्रकार यूके शासित आयरलैंड तथा आयरिश रिपब्लिक के बीच में सीमाएं खुली है उसी तरह कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर के बीच होना चाहिए। कम लोगों को पता है कि आज कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के पास है उसके लिए फारूख अब्दुला के पिता शेख अब्दुल्ला ही जिम्मेदार है। उन्होंने ही उस समय में पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर के बारे में पटेल और नेहरू को गलत जानकारी दी थी। शेख ने ही उस हिस्से को बेकार बताकर पाकिस्तान के कब्जे में रहने दिया था। इसलिए फारुख अब्दुला समस्या के समाधान का प्रस्ताव नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर और भारत के खिलाफ कोई षड्यंत्र कर रहे हैं।
मुख्य बिंदु
* जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि खुली सीम से होगा कश्मीर समस्या का समाधान
* उनके पिता शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान हमले के समय में पटेल और नेहरू को दी थी गुमराह करने वाली जानकारी
साउथ एसिया इंस्टीट्यूट के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज लंदन में आयोजित परिचर्चा के दौरान फारूख ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान को अब यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि सैन्य कार्रवाई से कश्मीर समस्या का समाधान कतई नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि आयरलैंड-आयरिश के रास्ते पर चलकर कश्मीर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। फारुख ने कहा कि दोनों कश्मीर के बीच सीमा सरल हों तथा दोनों को ज्यादा स्वायत्ता मिले ।
फारुख ने कहा कि परमाणु अस्त्र से लैस भारत और पाकिस्तान को यह समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर के लिए जो भी समाधान निकलेंगे उसे शत प्रतिशत लोग स्वीकार नहीं कर सकते हैं। लेकिन भारत, पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के 70-80 प्रतिशत लोगों को स्वीकार होना चाहिए। वैसे भी फारूख अब्दुल्ला का कोई भी प्रस्ताव भारत के हित में तो हो ही नहीं सकता है। इसका कारण भी ऐतिहासिक रहा है। असल में फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला कभी नहीं चाहते थे कि कश्मीर भारत का हिस्सा बने। वह शुरू से ही कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनते देखना चाहते थे। लेकिन पटेल ने उनकी महत्वाकांक्षा पर पानी फेर दिया। तभी से उनका खानदान अंदर ही अंदर भारत से बैर-भाव रखता आया है।
जब तक ये लोग सत्ता में रहते हैं भारतीय संविधान का आधे-अधूरे मन से पालन करते हैं। सत्ता से बाहर होते ही भारत के प्रति इनका बयान विघटनकारी हो जाता है। लेकिन यह प्रस्ताव पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर के हित में नही हैं। वैसे इनकी मंशा सीमा खोलकर जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी नागरिकों को भरकर संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थिति कमजोर करने की है। फारूख अब्दुल्ला हमेशा से डेमोग्राफी शिफ्ट करने का पक्षधर रहा है। नहीं तो क्या कारण है कि कश्मीर से भगा दिए गए पंडितों को दोबारा बसाने पर चुप्पी साध लेते है?
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