आदित्य जैन। पहला फटा हुआ पन्ना : विश्व के सभी देशों में इस वायरस ने अपनी स्याही से वहां के राष्ट्रीय, सामाजिक, राजनीतिक, व्यक्तिगत आदि पन्नों पर अपनी कहानी लिख छोड़ी है । कहीं लाशों का ढेर, कहीं दवाइयों और उपकरणों के मुनाफों का ढेर, कहीं वैक्सीन डिप्लोमेसी तो कहीं वैक्सीन के रॉ मटेरियल को रोक लेने की साज़िश, हमें देखने को मिल रही है। यह वायरस ना तो प्राकृतिक है और ना ही कृत्रिम ।
ये भूकंप, सुनामी, भारी वर्षा की तरह प्राकृतिक भी नहीं है और ना ही इस रूप में कृत्रिम है कि ग़लती से चीन की किसी प्रयोगशाला से यह विश्व में फ़ैल गया है । तो फिर यह वायरस है क्या? तो सुनिए कि यह क्या है । बीसवीं शताब्दी के कुछ विचारकों ने कहा था कि चौथा विश्व युद्ध पानी अर्थात जल के लिए होगा । लेकिन वर्तमान के अनुमानों के अनुसार युद्ध प्रारम्भ हो चुका है । यह चार स्तरों पर लड़ा जा रहा है ।
पहला, बिग डाटा के स्तर पर – साइबर वॉरफेयर, जिसमे आपकी वित्तीय सूचना, व्यक्तिगत चयन रुझान आदि की मैपिंग की जा रही है। जिसका उपयोग व्यापक स्तर पर कॉरपोरेट घराने करते हैं।
द्वितीय, स्पेस वॉरफेयर , जिसके अंतर्गत किसी भी देश की संचार , तकनीकी , विद्युत ऊर्जा , विमान आदि की व्यवस्थाएं आती हैं , जिनका संचालन पृथ्वी के चारों ओर गति कर रहे सैटेलाइट के आधार पर होता है । आपके मोबाइल के संचालन से लेकर देश के फाइटर जेट का संचालन इन्हीं सैटेलाइट के आधार पर होता है ।
तृतीय, सांस्कृतिक युद्ध , एक पहनावा , एक तरह का खाना, एक तरह का गाना, एक तरह का नृत्य आदि को थोपकर आर्थिक रूप से और मानसिक रूप से गुलाम बनाने के उपक्रम में लाखों करोड़ों डॉलर का निवेश किया जा चुका है और पंच मक्कार इसी काम में लगे हुए हैं।
चतुर्थ, जैव – रासायनिक अदृश्य सूक्ष्म हथियारों के द्वारा युद्ध , जिसके अंतर्गत लैब में बना कोरोना वायरस आता है । यह वायरस तो बस शरुआत है । अभी इस तरह की अंतरराष्ट्रीय कोशिशें और अधिक की जाएंगी। इसे राजनीतिक व स्त्रातेजिक विचारक ” नव उपनिवेशवाद ” कहते हैं। आपको भनक ही नहीं है कि अब युद्ध बंदूक की गोलियों के साथ इन चार स्तरों पर भी लड़ा जा रहा है । इस प्रकार यह वायरस जैविक युद्ध का एक हिस्सा है ।
दूसरा फटा हुआ पन्ना : दूसरा फटा पन्ना फार्मा इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ है। कोरोना को समझना इतना आसान नहीं है । यह निरंतर अपने रूप बदल रहा है । कभी इसके लक्षण दिखेंगे तो कभी नहीं दिखेंगे । इसकी कोई दवाई नहीं है। पूरे विश्व में केवल स्वामी रामदेव ने ही इसके इलाज के लिए कोरोनिल किट बनाई है । बाकी वैक्सीन बनाने की होड़ और कोशिश जारी है। कई सारी वैक्सीन आ भी गई है, लेकिन अभी भी पूरे विश्व में इस बात की लॉबिंग चल रही है कि किस देश की वैक्सीन सबसे अधिक प्रभावी है।
अस्पतालों में दी जाने वाली दवाईयां भी नुकसान कर रहीं हैं । कोरोना का इलाज करो तो डायबिटीज़ हो जाएगी ।डायबिटीज़ का इलाज करो तो बीपी की समस्या बीपी का उपचार कराओ तो नर्वस सिस्टम में दिक्कत आ सकती है । ये एलोपैथी की दवाएं रोग को दूर नहीं करती , बल्कि कुछ देर के लिए रोककर दूसरी बीमारियां उत्पन्न कर देती हैं ।
इसी प्रक्रिया के आधार पर फार्मा इंडस्टरी की मार्केट साइज सन् 2020 में 405 बिलियन डॉलर है। एक बिलियन = 100 करोड़ तथा एक डॉलर = 72 रुपए । आप समझ सकते हैं कि जब तक विश्व के लोग निरंतर बीमार नहीं रहेंगे तब तक इनकी दुकान नहीं चलेगी ! कोई भी बीमारी या वायरस जितना अधिक फैलेगी और जितने देर तक रहेगी, फार्मा इंडस्ट्री उतना ही मुनाफे में रहेगी। क्या आपने कृष 3 फिल्म देखी है ? एक बार फिर से देख लीजिए ।
तीसरा फटा हुआ पन्ना : तीसरा पन्ना पश्चिमी जीवन शैली और जीवन व्यवहार से संबंधित है। यह सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में यूरोपीय मॉडल से संबंधित है। क्या भविष्य में कोरोना वायरस जैसे और वायरस नहीं आएंगे ? खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग , मिट्टी प्रदूषित । हवा में धुंआ , वायु प्रदूषित । नदियों में सीवर लाइन का खुलना, जल प्रदूषित। इथर स्पेस में मोबाइल की तरंगे, आकाश प्रदूषित।
अग्नि तत्त्व को छोड़कर पंच तत्वों को भरपूर प्रदूषित किया गया है । जिससे हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो चुकी है। यह प्रदूषण करने वाला मॉडल यूरोप से आया है । जिसने हमें कमजोर बना दिया है। भविष्य में ऐसे वायरस के संक्रमण का खतरा अब तो और भी ही गया है। इसका इलाज एलोपैथी पद्धति से किया जा रहा है । जिसका नुकसान भी हमें हो रहा है।
स्टीरॉयड की अधिकता से कई मरीजों की जान जा रही है । औद्योगिक क्रान्ति, संसाधनों को हड़पने की होड़ और फिर दो विश्व युद्ध ; जिसकी संस्कृति ही हड़पने और उपभोग की रही हो, उस क्षेत्र से आई एलोपैथी की चिकित्सा पद्धति का स्वरूप ऐसा होना ही था। एलोपैथी की दवाएं जान बचाने के लिए अपवाद स्वरूप ली जानी चाहिए।
लेकिन आज एलोपैथी ने मुनाफा कमाने के लिए कई दवाइयों को आजीवन लेते रहने का प्रेस्क्रिप्शन डॉक्टर्स से लिखवाया है। डायबिटीज़ , ब्लड प्रेशर , माइग्रेन , किडनी की समस्या आदि बीमारियों में आपको जीवन भर दवाई लेने की सलाह दी जाती है। आजकल डिसीज मैनेजमेंट शब्द प्रचलन में है । रोग को जड़ से ख़तम करने के बजाय रोग को प्रबंधित करने की मूर्खतापूर्ण बात कही जाती है।
इस महामारी के काल में अधिकांश लोगों को तो उनके परिवार वालों ने ही बचाया है। भारतीय समाज आज तक कई सारी बीमारियों और समस्याओं को इस लिए झेल पाया क्योंकि यहां पारिवारिक एकता और व्यवस्था है। लेकिन कोरोना डायरी का तीसरा फटा पन्ना इस सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्था की टूटन के परिणाम को भी दिखा रहा है। यदि आप समझना चाहे तो बहुत कुछ समझ सकते हैं।
चौथा फटा हुआ पन्ना : यह पन्ना दीर्घकाल में हुए लोगों के मनोवैज्ञानिक बदलाव को इंगित करता है । जहां व्यक्ति की जान की कीमत कागज की नोटों से और मानवता से बहुत कम है । हमने कई पत्रकारों की लाश भक्षी पत्रकारिता तो देखी ही है । इसके अलावा भी कई सारे पक्षों को देख सकते हैं। यह पन्ना आज भारत भर में देखा जा सकता है ।
आज महामारी के इस युग में कई लोग आपकी मदद करेंगे । जिनका भाव नि:स्वार्थ होगा । कुछ स्वार्थवश मदद करेंगे । स्वार्थवश मदद करना भी ठीक ही है । लेकिन कई सारे लोग आपकी मजबूरी का फायदा उठाकर आपको आर्थिक रूप से लूटने का प्रयास करेंगे । एक तरफ आपका कोई संबंधी जीने के लिए संघर्ष कर रहा है तो दूसरी ओर कुछ लोग आपको ठगने का प्रयास करेंगे ।
इन कुछ लोगों में आपके तथाकथित आभासी मित्र, हॉस्पिटल, दवाई बेचने वाले, सिलेंडर एजेंसी वाले आदि लोग शामिल रहेंगे। हो सकता है कि जाने – अनजाने आपका कोई मित्र भी परिस्थिति के वशीभूत होकर मानवता को भूलकर आपकी मजबूरी का फायदा उठाना चाहे । उनके अंदर की दुर्योधन, शकुनि, मंथरा प्रवृत्ति जाग जाए। या फिर आपका पड़ोसी आपसे मुंह फेर ले। आज इस महामारी के डर ने अच्छे लोगों को उदासीन बना दिया है और बुरे लोगों को मुनाफाखोर । यह बदलाव भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं देता है ।
पांचवां फटा हुआ पन्ना : पांचवा पन्ना सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें बहुत कुछ सीखा रहा है । इस महामारी काल में खुद को इन षडयंत्रों से कैसे बचाया जाए ? यदि आपके पास कृष्ण हैं तभी आप बच सकते हैं । नहीं तो आप धोखेबाजी के खांडवप्रस्थ में आभासी मित्रता और आभासी सामाजिक ताने – बाने के लाक्षागृह में धधक – धधक कर जल जाएंगे ।
पांडव भी जल ही जाते, अगर उनके पास कृष्ण न होते। अब कृष्ण कौन हैं ? कहां हैं ? यह आपको स्वयं ही समझना पड़ेगा और स्वयं ही खोजना पड़ेगा । कृष्ण के साथ विदुर की नीति भी हो तो अच्छा है। कृष्ण विवेक हैं, जो देश – काल – परिस्थितियों की विवेचना करके दीर्घकालिक हित को दृष्टि में रखते हुए निर्णय लेते हैं। विदुर इस निर्णय में कर्तव्य, मर्यादा तथा समाज कल्याण की भावना को जोड़ते हैं। यह महामारी का काल हम सबको बहुत कुछ सीखा कर ही जाएगा। व्यक्तिगत संबंधों से लेकर पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक संबंधों के प्रतिमानों को बदल कर रख देगा यह कोरोना काल !
कभी दुख, कभी राहत, कभी चिंता, कभी धोखा, कभी परेशानी, कभी समाधान, कभी उत्साह, कभी निराशा से भरे हुए इस काल में वही स्वस्थ रह पाएगा, जो योग, प्राणायाम और प्राकृतिक जीवन शैली को अपनाकर अपनी इम्युनिटी अर्थात प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करेगा ।
छठवां फटा हुआ पन्ना : छठवां फटा पन्ना अध्यात्म से संबंधित है। हमें अध्यात्म की ओर लौटना होगा। अध्यात्म ही सच्ची सेवा का आधार है। ईसाई मिशनरियों की तरह धर्मांतरण के लिए सेवा करना यह भारतीय संस्कृति नहीं है।भले ही आज डर का मौहाल है। फिर भी कुछ लोग महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा में लगे हुए हैं। हम युवाओं को आगे बढ़कर स्वयं से आध्यात्मिक प्रश्न पूछना चाहिए।
ये प्रश्न हमें निर्भय बनाते हैं। रमन महर्षि का एक सवाल -” मैं क्या हूं? मैं कौन हूं? “का उत्तर बड़े – बड़े दार्शनिकों ने, संतों, महापुरुषों और प्रोफेसर आदि ने खोजा। यह प्रश्न दर्शन जगत का बहुत बड़ा, बहुत प्रसिद्ध प्रश्न है। तुम दिनभर जो कुछ करते हो, वो तुम हो। अगर तुम डर डर कर जी रहे हो तो तुम डरपोक हो। दिनभर बस पड़े रहते हो तो आलसी हो।
अपनी दिनचर्या देखिए और आप जान जाएंगे कि आप क्या हैं और कौन हैं ! मेरे एक मित्र ने एक सरकारी अस्पताल में लगभग 15 दिन कोविड वारियर के रूप में सेवा की। एक सीनियर ने पिछले वर्ष 30 दिन नि:शुल्क कोविड वार्ड में सेवा की। एक मित्र ने पांच लोगों की टीम बनाकर प्लासमा, हॉस्पिटल बेड्स, ऑक्सीजन सिलिंडर, रिफिल, होम आरटी पीसीआर टेस्ट आदि की जानकारी हेल्पलाइन नम्बर के माध्यम से उपलब्ध कराई ।
ऐसे युवा निर्भय हैं, साहसी हैं तथा युवा कहलाने लायक हैं, देश के उज्ज्वल प्रतापी भविष्य हैं। लेकिन फिर भी युवाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग आज डरा हुआ है , इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कोरोना वायरस का छठा पन्ना यही दिखाता है कि जिसका आध्यात्मिक आधार मजबूत है, वही मानवता की सच्ची सेवा करता है ।
सातवां फटा हुआ पन्ना : सातवां पन्ना कहता है कि आज आत्म बल बढ़ाने का सर्वोत्तम अवसर है ।आज एक दूसरे की सहायता करने का सर्वोत्तम अवसर है । आप जैसे भी मदद कर सकते हैं, आपको करना चाहिए। गुरु, मित्र, पड़ोसी या कोई भी अनजाना व्यक्ति, यदि कोरोना काल में परेशान है और आप सक्षम है तो आप अपना सर्वस्व झोंक कर उसकी मदद कीजिए। ऐसा करने के बाद आप बदल जाएंगे।
व्यक्तित्व कुछ और हो जाएगा। लेकिन अर्जुन की युद्ध भूमि वाली नपुंसकता हमारे पूरे जीवन चलती है। डरना छोड़िए और जीना प्रारम्भ कीजिए। आपने सुना होगा कि प्लेग आदि महामारी फैलने पर कई संत बस्तियों में जाकर खुद रोगियों की सेवा करते थे। और उन्हें कुछ नहीं होता था। वस्तुत: भारत की पुण्यभूमि की प्रकृति ही ऐसी रही है कि जो व्यक्ति साधना करते हैं, सामाजिक तप करते हैं, जब वह किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकलते हैं तो उनका नुकसान नहीं होता है , बल्कि आत्म बल ही बढ़ता है ।
आप सभी अपने वैचारिक खोल से बाहर निकलकर मदद कीजिए। रात्रि हो, दिन हो, शाम हो, अगर इमरजेंसी है तो जाइऐ। हिम्मत बंधाइये, अपनी शक्ति जागृत कीजिए , और दूसरे में भी शक्ति का संचार कीजिए। योग तंत्र में इसे शक्ति पात की क्रिया कहा जाता है। आगामी 10 वर्षों में बहुत कुछ बदलने वाला है। शिक्षा पद्धति से लेकर प्रशासन, राजनीति, समाज, राष्ट्र में बड़े परिवर्तन होने वाले हैं। स्वयं को अभी से तैयार कीजिए, वरना आप अप्रासंगिक हो जाएंगे।
ये सात पन्ने राष्ट्रीय, सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, इंडस्ट्री आदि से संबंधित है, जिन्होंने बहुत बड़े परिवर्तनों की नींव डाल दी है, बीज रोपित कर दिया है। अब कैसी इमारत बनेगी, कौन – सा वृक्ष निकलेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा। आप सब भी अपनी डायरी में कोरोना वायरस के अपने पन्ने भी लिख सकते हैं। यह लिखना ही हमारे शास्त्रों का आधार है। कल श्रुत पंचमी थी। भारतीयों का बहुत बड़ा त्यौहार, जिसमें प्रत्येक भारतीय को इस वर्ष एक शास्त्र के अध्ययन का संकल्प लेना होता है। लेकिन हम यह सब भूल चुके हैं। तो आइए अपनी डायरी भी लिखे और राष्ट्र जीवन की डायरी में भी बदलाव करें। जो बदलाव सावरकर , लोकमान्य , महाराणा, ओशो आदि महापुरुषों ने किया था। जय हिन्द । जय भारत । जय सनातन ।।
तप्त भगवे में निखरता , तू शिव का काल है ।
दीप्ति महकती मस्तक से , जो बहुत विशाल है ।
नयन श्रद्धा से पूरित , मानवता की मदद का तुझे ख्याल है ,
तू बना है सनातन से , ऐ ! युवा ; शक्ति की तुझमें भरमार है ।
तो उठ खड़ा हो , और मदद कर ! मदद कर! मदद कर !
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र हैं। कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में अपने शोध पत्रों का वाचन भी कर चुके हैं। विश्व विख्यात संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के युवा आचार्य हैं। भारत सरकार द्वारा इन्हे योग शिक्षक के रूप में भी मान्यता मिली है। भारतीय दर्शन, इतिहास, संस्कृति, साहित्य, कविता, कहानियों तथा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने में इनकी विशेष रुचि है और यूट्यूब में पुस्तकों की समीक्षा भी करते हैं ।)
लेखक आदित्य जैन
सीनियर रिसर्च फेलो
यूजीसी प्रयागराज
adianu1627@gmail.com