रॉलट कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि 1901 के आरंभ में भारत की स्वतंत्रता के लिए जो हिंसात्मक आंदोलन चल रहे थे, अंग्रेज उससे भयंकर रूप से डर गये थे। वह अपनी सत्ता बचाने के लिए हिंदुस्तानियों को अधिक से अधिक सुविधाएं देने लगे थे। यह हिंसात्मक दबाव काम कर रहा था और अंग्रेजों को डर था कि दबाव इसी तरह बना रहा तो 1935-36 तक भारत को स्वराज देना पड़ सकता है।
यह स्वराज फिर बिना किसी भारत विभाजन के, बिना किसी नफरत के मिलता, लेकिन तभी आंदोलन में गांधी का पदार्पण हुआ।
हिंदू संत का वेश धारण कर उन्होंने त्याग का ऐसा आडंबर रचा कि जनता उनके वशीभूत होती चली गई। खिलाफत जैसे बदनाम संस्था के साथ खड़े होकर गांधी ने विभाजनकारी संप्रदायिकता का बीज बो दिया, जिससे स्वराज के अतिरिक्त हिंदू-मुस्लिम रूपी विभाजनकारी समस्या ने आंदोलन में स्थान पा लिया।
उधर स्वतंत्रता और हिंदू जागृति के लिए काम कर रहे गांधी से भी बड़े कद के नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का देहावसान हो गया। अब गांधी के समक्ष कोई चुनौती नहीं थी।
गांधी ने एक वर्ष में अहिंसा के द्वारा स्वतंत्रता का जुमला उछाल कर पूरे देश, जनता और क्रांतिकारियों को भ्रमित कर दिया! मूढ़ हिंदू जनता से ही क्रांतिकारियों को आतंकवादी साबित करवा दिया और खिलाफत का सपोर्ट कर बड़ी संख्या में हिंदुओं का ही संहार करवा दिया। सुभाषचंद्र बोस जैसे प्रतिद्वंद्वी को देश छोड़ने के लिए उन्होंने बुरी तरह से बाध्य कर दिया।
परिणाम, स्वराज तो दूर हुआ ही, भारत के सैनिक भी द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिए गये, भारत का विभाजन भी हुआ, 10 लाख से ऊपर लोगों की लाशें गिरी और जो स्वतंत्रता मिली वह भी अंग्रेजी कानून, संविधान और नेतृत्व वाली मिली। हिंदू संत के वेश में हिंदुओं और भारत के साथ गांधी रूपी जो छल हुआ, उसका परिणाम आज भी देश भुगत रहा है।
अतः वाल्मीकि रामायण को याद रखिए कि रावण माता सीता को हरने हिंदू वेश में ही आया था और रामचरित मानस में कालनेमी हनुमान जी को भटकाने राम भक्त बनकर ही आया था। ठीक यही गांधी और गांधीवाद ने किया!
यदि सनातन धर्मग्रंथों का अध्ययन हिंदू करेंगे तो कभी किसी ‘गांधी’ के जाल में नहीं फसेंगे, अन्यथा बार-बार विभाजन और अपने विनाश को न्यौता देते रहेंगे। बचना है तो अपने शास्त्रों को पढ़िए, गुनिए और बांचिए।
गांधी का खिलाफत और हिंदुओं के विनाश का