विपुल रेगे। दीपिका पादुकोण की नई फिल्म ‘गहराइयाँ’ का हासिल क्या है, ये दर्शक फिल्म देखकर स्वयं से पूछते रहे लेकिन उन्हें कोई जवाब न मिला। ये एक ऐसी फिल्म है, जिसे न पूर्ण प्रेम कथा कहा जा सकता है और न ही पूर्ण थ्रिलर। ये एक पेंडुलम बनकर रह जाती है, जो प्रेम और सस्पेंस के बीच झूलती रहती है। जाने-अनजाने दीपिका पादुकोण ने अपनी चौंतीसवीं फिल्म से विदाई का घोषणा पत्र लिख दिया है।
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हिन्दी फिल्म उद्योग में ऐसे भी नायिकाओं की सिल्वर स्क्रीन उम्र कम ही होती है। दीपिका पादुकोण को फिल्म उद्योग में आए पंद्रह वर्ष हो चुके हैं। सन 2018 में ‘पद्मावत’ के पश्चात दीपिका की कोई फिल्म सफल नहीं हुई। मानो जैसे उस महान पद्मावती का कोई श्राप दीपिका के कॅरियर पर ग्रहण बनकर छा गया हो। इस वर्ष के बाद फिल्मों को लेकर उनका चयन भी बद से बदतर होता चला गया।
‘गहराइयाँ’ ऐसी फिल्म है, जिसे दीपिका भविष्य में कभी याद नहीं करना चाहेगी। इस बुरी फिल्म को समीक्षकों ने एक मत से भंगार फिल्म के समकक्ष बताया है। फिल्म की कथा उस समाज का तानाबाना बताती है, जो सम्भवतः कथित संभ्रांत आधुनिक विचारधारा में जीवन जीता है। इस वर्ग के लिए विवाह महत्वपूर्ण नहीं होता, अपितु लिव इन में साथ रहना महत्वपूर्ण होता है।
इस नई रीति-नीति से वे एक दूसरे की गहन पहचान कर लेते हैं। आलिशा और टिया चचेरी बहने हैं। दोनों के ही अपने-अपने प्रेमी हैं। एक दिन अलीशा टिया के प्रेमी सिद्धांत से मिलती है। इस मुलाकात के बाद दोनों में आकर्षण बढ़ने लगता है। इस बात से अलीशा के प्रेमी करण और टिया अनभिज्ञ हैं। ये रिश्ता शारीरिक सीमाओं को भी पार कर जाता है।
इससे पहले कि ये प्रेम कथा किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, कथा के एक किरदार की हत्या हो जाती है। अब ये कथा प्रेम पर न रहकर सस्पेंस पर आ जाती है। इसके बाद फिल्म का पूर्णतः दम ही निकल जाता है। चार फ्लॉप फ़िल्में बना चुके शकुन बत्रा ने एक और फ्लॉप फिल्म बड़ी फुर्सत और दिल से बना दी है। जब आप मूल विषय से हटकर एक और नए विषय की ओर निकल जाते हैं तो दर्शक अपना सिर नोंच लेता है।
इस फिल्म की यही एक सबसे बड़ी कमी नहीं है। फिल्म में आकर्षण और प्रेम को सीधा-सीधा कामवासना से जोड़ दिया गया है। पहले से लिव इन में रह रही अलीशा को उस समय सेक्स की नहीं अपितु एक समझदार प्रेमी और साथी की आवश्यकता थी। उस ‘आवश्यकता’ को लेकर फिल्म को विस्तार और सुंदर अंत दिया जा सकता था किन्तु निर्देशक फिर दीपिका के चुंबन दृश्य कैसे दिखाता?
एक फिल्म समीक्षक ने ‘गहराइयाँ’ को सॉफ्ट पोर्न बताया है। मेरे विचार में वे एक सीमा तक ठीक ही कह रहे हैं। फिल्म के उन दृश्यों को देखते हुए ऐसा ही अनुभव होता है। भाषा को लेकर भी निर्देशक ने सुंदर प्रयोग किया है। ये विश्व की एकमात्र ऐसी फिल्म है, जिसमे हर चौथे संवाद में ‘फकिंग’ शब्द आता है। ये अंग्रेज़ी का शब्द धाराप्रवाह शुरु से लेकर अंतिम दृश्य तक प्रयोग किया गया है।
फकिंग शब्द एक चेरी है, जो शकुन बत्रा ने इस सजीले केक पर सजाई है। दीपिका की आयु अब झलकने लगी है। उन्होंने अभिनय अच्छा किया है किन्तु वह किसी काम का नहीं है क्योंकि पहले दृश्य से ही आम दर्शक ये तय कर चुका था कि ‘गहराइयाँ’ तो दरिया के पानी जैसी उथली है। इसमें उथलापन है, इसमें सतहीपन है।