तीन सौ सत्तर की नौटंकी
कश्मीर में जब तक तीन सौ सत्तर,गौ-हत्या पूर्ण असंभव थी ;
“रणवीर-संहिता” वहॉं थी लागू , सख्त कैद दस-बरस की थी ।
म्लेच्छ बहुत ही परेशान थे , गाय काटकर खा न पाते ;
अब्बासी-हिंदू भारत का नेता , उसको जाकर बतलाते ।
गाय – मांस का सौदागर है , नेता जो अब्बासी-हिंदू ;
गाय-मांस म्लेच्छों को खिलाता , केवल है ये नाम का हिंदू ।
“रणवीर-संहिता” हट न पाती, जब तक रहती तीन सौ सत्तर ;
इसीलिये हटवायी गयी थी , कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर ।
महामूर्ख – अज्ञानी हिंदू ! उसने कितनी ताली बजायी ?
जबकि केवल घाटा खाया, कश्मीर में कितनी गौ कटवायी ?
आसपास के सारे – सूबों से , ट्रक में गायें भर-भर जातीं ;
खुले आम कश्मीर में कटतीं , गौ-माता रो-रो कट जातीं ।
अब्बासी-हिंदू कितना पापी है , हिंदू अब तक समझ न पाया ;
अंधा – बाबा दाढ़ी – बाबा , खुलकर उसके साथ में आया ।
जितने भी डॉलर – दीनारी व सरकारी – बाबा हैं ;
सब के सब अब्बासी-हिंदू हैं , भारत कर देंगे काबा हैं ।
एक – नम्बर के लम्पट हैं सब , चरित्रहीन – मक्कार हैं ;
महाधूर्त – अय्याश हैं सारे , सब म्लेच्छों के यार हैं ।
गौ-माता को कटवा-कटवा कर , उसका मांस करे निर्यात ;
इस अब्बासी – हिंदू नेता को , क्यों नहीं मारता हिंदू लात ?
क्या दिमाग को हुआ है लकवा ? क्यों बुद्धि भ्रष्ट है पूरी पूरी ?
पूरा-अज्ञान भरा है मन में , लोभ-लालच-डर की मजबूरी ।
हिंदू ! अज्ञान हटाओ मन से , धर्म – सनातन में आओ ;
वरना वो दिन दूर नहीं है, जब तुम-सब दुनिया से जाओ ।
जीते – जी भी नर्क भोगते , क्या कहीं तेरा सम्मान है ?
म्लेच्छों तक से लातें खाते , नहीं बचा कोई मान है ।
खुले आम तेरे मंदिर टूटे , जिनको म्लेच्छों से तुड़वाया ;
राम-मंदिर तक भ्रष्ट कर दिया,शास्त्र-विरुद्ध हर कार्य कराया ।
जागो हिंदू ! अब तो जागो , शंकराचार्य जगाते हैं ;
हिंदू-धर्म बहुत संकट में , हिंदू ! क्यो नहीं बचाते हैं ?
अंधा-बाबा व दाढ़ी-बाबा , शंकराचार्य को गाली देता है ;
हिंदू ! समझो खेल ये सारा , खेल रहा पापी – नेता है ।
तीन सौ सत्तर की नौटंकी , हिंदू को कोई नहीं फायदा ;
डोमीसाइल एक्ट लगाया , प्रतिबंध बढ़ाया और भी ज्यादा ।
हिंदू ! अब तो आंखें खोलो, अज्ञान के पर्दे तुरंत हटाओ ;
शंकराचार्यों काकरो अनुसरण,तबही संभवहै तुम बच जाओ ।
“जय सनातन-भारत”, रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”