सारा कुमारी। अभी पिछले कुछ वर्षों में आस- पास एक विषय बहुत जोर शोर से उठाया जा रहा है, चाहे बुद्धि जीवी वर्ग हो या कई देशों का शिर्ष नेतृत्व, सभी का बहुत ही प्रिय विषय है, “ग्लोबल वार्मिंग” जिसका मोटा मोटा अर्थ होता है, प्रकृति में होने वाला नुकसान या सरल शब्दों में युं कहे, प्रकृति का अत्यधिक दोहन, जिससे उसका वास्तविक स्वरूप ही बदल जाए, इसी को ग्लोबल वार्मिंग नाम से पुकारा जाता है।
परन्तु क्या वास्तव में ये इतनी बड़ी समस्या है, या मात्र एक छलावा है, जैसे Arab spring, Russia – Ukraine war, feminism, BLM, आदि आदि छलावे, या फिर ये एक पर्दा है, एक परत है, जिसको हटाएंगे, तब असली समस्या नज़र आएंगी। मुझे तो लगता है, ये मात्र एक स्लोगन बना कर विश्व में प्रचारित कर दिया गया है, और सही शब्दों में इसकी पुनः व्याख्या की जाएं तो प्रकृति का दोहन तो बड़े स्तर पर हो ही रहा है, परन्तु उससे भी वृहद स्तर पर human mind को pollute किया जा रहा है, और यदि इस पर रोक थाम लगाई जाएं, तो विश्व की बहुत बड़ी बड़ी समस्याओं का स्वतः ही निराकरण होना प्रारंभ हो जाएगा।
यहीं सनातन संस्कृति का मूल आधार है, सनातन को जीवन जीने की एक उत्तम पद्धति भी इसलिए कहा जाता है। इसमें बहुत ही सुन्दर तरीके से हमें प्रत्येक जीव जंतु, पेड़- पौधे, नदी, तालाब, पर्वत सभी का आदर करते हुए, उनसे सामंजस्य स्थापित कर के जीवन व्यतीत करने की शिक्षा दी जाती है। यदि हमारे प्राचीन मंदिरों को देखा जाए, तो ऐसे बहुत से उत्कृष्ट उदाहरण मिल जाएंगे, ऐसा कौन सा आविष्कार हमारे पुर्वज नहीं कर पाएं थे, कभी जंग ना लगने वाला लोहा ( अशोक स्तंभ) ग्रहों का अध्ययन करने वाला ( विष्णु स्तंभ) या फिर एक ही विशालकाय पर्वत को काट कर बनाया गया मंदिर (महाराष्ट्र में) ऐसे अनेकानेक उदाहरण मिल जाएंगे।
जिन आविष्कारों पर आज पश्चिम जगत बहुत गर्व महसूस करता है, वो सभी ख़ोज भारत में पहले ही हो चुकी थी, परन्तु फर्क कहां है ??? हमारे पुर्वजों ने कभी अपने ज्ञान या कला का उपयोग प्रकृति या जीवों का नुक़सान पहुंचाने के लिए नहीं किया। हमारे संस्कारों को मनुष्य को ऐसा जीवन जीने की कला सिखाई गई, जो विश्व कल्याण पर आधारित है।
वहीं पश्चिम देशों में nuclear power बनाई तो हिरोशिमा- नागासाकी को तबाह कर दिया, एलौपैथी की दवाएं बनी तो हजारों नए प्रकार की बिमारियां उत्पन्न कर दी, बंदुकें बनाई तो आतंकवाद गढ़ दिया। और ये सभी विनाशकारी कार्यों को करने के लिए, मनुष्य के brain को pollute किया जाता है, क्योंकि 100 में से 99 शिशु जब पैदा होता हैं, तो वो स्वभाव से शांत चित्त और संवेदनशील होता है। परन्तु ये Abhrahimic thought process में इस तरह से उनका पालन पोषण किया जाता है ताकि उसका मूल स्वभाव परिवर्तित हो जाएं, इसके लिए ये लोग सभी प्रकार से साम, दाम, दण्ड, भेद का इस्तेमाल किया जाता है, और अंततः प्रौढ़ होने तक उसका दिमाग pollute हो जाता है।
इस तरह की कुत्सित विचार धारा से ग्रसित हो जाता है, कि उसको वषों साथ रहने और मदद करने वाला पड़ोसी भी दुश्मन प्रतीत होता है। इतनी सुन्दर प्रकृति, निरीह जानवर सभी के लिए मन में एक दुर्वाग्रह को पाल कर जीने लगता है।और मौका मिलने पर इनका नुकसान भी करता है। इसलिए global warming of Mind is more dangerous then global warming of nature. और यदि पहले को कंट्रोल कर लिया तो दूसरा तो स्वतः ही कंट्रोल में आ जाएगा। क्योंकि यदि दिमाग में कुत्सित विचार नहीं होंगे तो व्यक्ति आस पास की प्रकृति, जीव जंतु, पेड़ पौधे, मनुष्य सभी को आदर की दृष्टि से, प्रेम की दृष्टि से देखेगा, और इन सभी को संरक्षित करने का भरपूर प्रयास करेगा।
तो जब आपके नेता , मिडिया ( क्योंकि ग़लत ज्ञान देने में इनका भी महत्वपूर्ण योगदान है) या शिक्षक, परन्तु इन सबमें मुखयतः नेता ही, यदि आपसे ये प्रश्न करें ग्लोबल वार्मिंग पर क्या कर रहे हो, तो तुरंत उल्टा प्रश्न पुछे Global warming of Mind पर आप क्या कर रहे हो ? क्योंकि एक स्वस्थ दिमाग ही एक उन्नत देश का परिचायक होता है, और इसके बगैर यदि प्रगति की जाएं तो वास्तविकता में यह प्रगति उल्टी दिशा की ओर जा रही है, और देश को और उसके नागरिकों को गर्त में ढकेल रही है।