सोनाली मिश्रा। कहते हैं बच्चों के लिए अवधारणा निर्माण में पाठ्यपुस्तकों का बहुत बड़ा हाथ होता है, और यह पाठ्यपुस्तकें ही होती हैं, जिनके आधार पर बच्चे यह निर्धारित करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत! परन्तु क्या हो जब पाठ्यपुस्तकों में ही उन घटनाओं के विषय में गलत जानकारी हो, जिनका सम्बन्ध हाल ही की घटनाओं से हो, क्या हो यदि पाठ्यपुस्तकों में ही न्यायपालिका द्वारा प्रदत्त उन निर्णयों का उल्लेख न हो, जो मामले का पटाक्षेप कर चुके हैं, अपराधियों को न्याय दे चुके हैं।
एक ऐसा ही निर्णय है गोधरा काण्ड का, जो फरवरी 2011 में आया था, जिसमें 31 लोगों को दोषी पाया गया था और 63 को बरी कर दिया गया था। 1 मार्च 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा काण्ड में 11 को फांसी और 20 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। यह एक ऐसा मामला था, जिसने विमर्श की दिशा बदली थी। इस अग्निकांड में 59 निर्दोष हिन्दू मात्र इसलिए जला दिए गए थे क्योंकि वह प्रभु श्री राम के दर्शन करके, कार सेवा के बाद वापस आ रहे थे और एक मजहब विशेष के लोगों को प्रभु श्री राम से चिढ़ है, इतनी कि वह सब कुछ जलाकर राख कर देना चाहते हैं। इसे नफरत की आग में जला दिया गया था, उन सभी 59 हिन्दुओं को, जिनमें 25 महिलाएं थीं, 19 पुरुष थे और 15 बच्चे थे। इन्हें बाहर निकलने का अवसर नहीं मिला! इससे पहले कि हम इस काण्ड के विषय में और अधिक बातें करें, या स्पष्ट करें, इससे पहले पढ़ते हैं कि हमारे बच्चों की स्मृति में इस जघन्य घटना के विषय में क्या भरा जा रहा है? यह एनसीईआरटी में पढाए जा रहे झूठ और संदीप देव द्वारा तथ्यों के आधार पर लिखी गयी पुस्तक तथा न्यायपालिका द्वारा प्रदत्त निर्णय के सत्य के मध्य तुलनात्मक विश्लेषण है!

क्या है एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पुस्तक में?
कक्षा बारह में बच्चों को राजनीति विज्ञान में तमाम विषयों और मामलों के साथ साथ आधुनिक भारत में राजनीति का अध्य्यन भी कराया जाता है। इन पाठ्यपुस्तकों को सोनिया गांधी की सरकार द्वारा पाठ्यक्रम में लागू करवाया गया था। हालांकि यह इस सरकार के आने के बाद भी अनवरत चल रहा है और इसमें यह भी जानकारी बच्चों को दी गयी है कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं। अर्थात यह अपडेट होती रही है।

परन्तु एक मामले में यह पुस्तक अपडेट नहीं हुई, और वह है गोधरा के विषय में। इसमें चूंकि आधुनिक भारत में राजनीति के विषय में बातें बताई गयी हैं कि राजनीति किस मोड़ से बदली, कैसे बदली, तो स्पष्ट है कि अयोध्या का उल्लेख है, ढाँचे को तोड़ने का उल्लेख है, उसके बाद उपजे हुए दलों का उल्लेख है। परन्तु उसमें तथ्यों को इस प्रकार से परोसा गया है, कि जिसमें हिन्दू ही दोषी लगें।
फिर आता है वर्ष 2002 और उसमें हुए गुजरात के दंगे। इसके सम्बन्ध में एनसीईआरटी की वर्ष 2021-22 की भी पुस्तक क्या पढ़ाती है वह देखिये। लिखा गया है कि
“2002 के फरवरी मार्च में गुजरात में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। गोधरा स्टेशन पर घटी एक घटना इस हिंसा का तात्कालिक उकसावा साबित हुई। अयोध्या से आ रही एक ट्रेन की बोगी कारसेवकों से भरी हुई थी और इसमें आग लग गयी। सत्तावन व्यक्ति इस आग में मर गए। यह संदेह करके कि बोगी में आग मुसलमानों ने लगाई होगी, अगले दिन गुजरात के कई भागों में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक जारी रहा।”


अर्थात हमारे बच्चों को अभी तक यह पढाया जाता है कि गोधरा में जो आग लगी थी, दरअसल वह किसी ने लगाई नहीं थी, बल्कि अपने आप लग गयी थी। जबकि इस मामले में विशेष अदालत ने वर्ष 2011 में ही निर्णय दे दिया था। यह बात प्रमाणित हो चुकी थी कि इस घटना को जानबूझकर पूरे होशोहवास में किया गया था। अदालत ने 25 फरवरी 2011 को गोधरा काण्ड पर एतिहासिक निर्णय सुनाया था। संदीप देव की पुस्तक साज़िश की कहानी, तथ्यों की जुबानी, इस पूरे षड्यंत्र को और उसके बाद हुए दंगों के षड्यंत्र को परत दर परत उधेड़ते हुए सत्य बताती है। वर्ष 2011 में जो निर्णय आया उसके अनुसार अदालत ने 94 आरोपियों में से 31 लोगों को दोषी पाया था, जबकि 63 को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। जो दोषी पाए गए थे, वह सभी के सभी मुसलमान हैं। इनमें से 11 को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी थी एवं शेष 20 को आजीवन कारावास!
अब प्रश्न यह उठता है कि जब वर्ष 2011 में ही विशेष आदालत का निर्णय आ गया था तो बच्चों की पुस्तकों में इसे अपडेट क्यों नहीं किया गया? यूपीए की सरकार में तो यह बदला नहीं गया, समझा जा सकता है, परन्तु वर्ष 2014 में वह सरकार केंद्र में आई, जिसके मुखिया पर उस हिंसा को भड़काने का आरोप था, जो इस काण्ड के बाद फ़ैली थी। इस में श्री नरेंद्र मोदी की सरकार के विषय में भी झूठ लिखा है कि मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पूरे एक महीने चली! क्या यह सत्य है?
सबसे पहले जानते हैं कि आग कैसे लगी थी, और हमारे बच्चों को क्या पढाया जा रहा है?
ऐसा नहीं था कि अदालत ने एक दो गवाहों के आधार पर अपना निर्णय दिया था। अदालत ने निर्णय दिया था पूरे 253 गवाहों और 1500 दस्तावेजों के आधार पर! संदीप देव जी की पुस्तक में एक पीड़िता की जुबानी इस हादसे को बताया गया है। उन्होंने लिखा है कि 16 साल की एक किशोरी गायत्री पंचाल उस समय कक्षा 11 में पढ़ती थी। वह अपने परिवार के साथ अयोध्या से घर अहमदाबाद लौट रही थी। एस 6 बोगी में उसकी माँ नीताबेन, उसके पिता हर्षद, भाई पंचाल, दोनों बहनें प्रतीक्षा और छाया सहित परिवार के दस लोग उसकी आँखों के सामने जल कर मर गए। वह अपने परिवार में अकेली ही बची थी।
गायत्री के अनुसार 27 फरवरी की सुबह लगभग 8 बजे गाड़ी गोदरा स्टेशन से आगे बढ़ी। गाड़ी में सवार सभी कारसेवक रामधुन गा रहे थे। गाड़ी मुश्किल से 500 मीटर आगे गयी होगी कि अचानक रुक गयी। इससे पहले कि कुछ समझ पाता, पत्री के दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग हाथ में तलवार, गुफ्ती आदि लेकर गाड़ी की ओर भागे आ रहे थे। वे लोग गाड़ी पर पत्थर बरसा रहे थे। गाड़ी के अन्दर मौजूद लोग डर गए और उन्होंने खिड़की दरवाजे बंद कर लिए।
बाहर के लोगों की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। वे लोग कह रहे थे “मारो-मारो” लादेन ना दुश्मनों ने मारो! और फिर भीड़ ने ट्रेन पर हमला कर दिया। हमलावरों ने खिड़की को तोड़ दिया। और बाहर से गाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया, ताकि कोई भी बाहर न आ सके। उसके बाद उन्होंने गाड़ी के भीतर पेट्रोल उड़ेल कर आग लगा दी!”
यह गायत्री का वक्तव्य है, और हमारे बच्चों को क्या पढाया जा रहा है कि “ट्रेन में आग लग गयी थी!”
गायत्री आगे कहती हैं कि वह लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे, पर आता कौन? फिर वह कहती हैं कि उन्होंने देखा कि कुछ पुलिस वाले गाड़ी में फंसे लोगों की मदद के लिए आना चाहते हैं, परन्तु उन्हें भीड़ ने पकड़ लिया था। उनकी बोगी में आग फैलती जा रही थी। दम घुटता जा रहा था, फिर वह किसी प्रकार खिड़की तोड़कर भागने में सफल हुईं, परन्तु जब वह भागीं तो भीड़ उनकी ओर भागी तो वह फिर से ट्रेन के केबिन में आ गईं। और कहती हैं कि
“अन्दर मैंने अपनी माँ, पिता, भाई और बहनों को जलते हुए देखा!”
फिर वह कहती हैं कि किसी तरह से वह स्टेशन पर पहुँचने में सफल हुईं और अपनी मौसी से मिलीं। गाड़ी की वह बोगी पूरी तरह जल रही थी, लोग चीख रहे थे, पर मदद कौन करता!
यह गायत्री का बयान है, जो उसने अपनी आँखों से देखा और झेला वह बताया। परन्तु हमारे बच्चों के लिए गायत्री की पीड़ा कोई पीड़ा है ही नहीं, क्योंकि उन्हें सरकार की ओर से यह पढ़ाया जा रहा है कि अयोध्या से आ रही एक ट्रेन की बोगी कारसेवकों से भरी हुई थी और इसमें आग लग गयी।”
आप बच्चों के साथ और तथ्यों के साथ हुए अन्याय का अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं। और जो हमारे बच्चों के दिमाग में डाला जा रहा है कि हिंसा एक महीने चली, तो वह तो हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की क्षमता को ही झूठा ठहरा रहे हैं और वह भी बच्चों की दृष्टि में, जो आगे जाकर सरकार तय करते हैं।
यूपीए ने बनर्जी आयोग बनाकर इसे अपने आप लगी आग साबित करने का प्रयास किया, परन्तु न्यायालय ने उसे अवैध ठहरा दिया था
तत्कालीन यूपीए सरकार ने सितम्बर 2004 में इसे एक दुर्घटना साबित करने का प्रयास किया था। तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम वोटबैंक के लालच में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यूसी बनर्जी के एक सदस्य वाले आयोग का गठन किया, जिसका एक मात्र उद्देश्य यह सिद्ध करना था कि आग अपने आप लगी थी। हालांकि उच्च न्यायालय ने उस आयोग की रिपोर्ट को अवैध ठहरा दिया था क्योंकि जब राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग द्वारा जांच पहले ही चल रही थी, और इस रिपोर्ट का उद्देश्य बिहार के चुनावों में फायदा लेना था। इस रिपोर्ट को गुजरात उच्च न्यायालय ने पूरी तरह से अवैध घोषित कर दिया था।
क्या वास्तव में हिंसा पूरे एक महीने चली थी, जैसा हमारे बच्चों को पढ़ाया जाता है?
इसी पुस्तक में संदीप देव आगे जाकर पृष्ठ 169 पर लिखते हैं कि इतिहास गवाह है कि इतनी जल्दी किसी भी दंगों पर नियंत्रण नहीं किया गया था।
संदीप देव लिखते हैं कि “20 घंटे में सेना पहुँची, 72 घंटों में दंगे पर नियंत्रण किया गया।”
और जो किताब बच्चों के दिमाग में यह बात भरती है कि हिन्दुओं ने मुस्लिमों को गुजरात दंगों में मारा वह यह नहीं बताती कि गुजरात पुलिस ने दंगों में फंसे हुए 24 हजार मुसलमानों को बचाया था।
वह यह नहीं बताती कि इन दंगों में 790 मुस्लिम और 254 हिन्दुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
फिर से प्रश्न यही है कि “बच्चों के दिमाग में झूठ क्यों भरा गया और अभी तक भरा जा रहा है!”
यूपीए की राजनीतिक विवशता हो सकती है, परन्तु भारतीय जनता पार्टी की सरकार की ऐसी क्या विवशता है कि उस झूठ को आधिकारिक रूप से सत्य मानकर बच्चों के दिमाग में भरा जा रहा है, जो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विषय में है?
हमने बहुत से बच्चों को देखा है कि वह नरेंद्र मोदी को गाली देते हैं, वह उन्हें मुस्लिम विरोधी बताते हैं। यदि बाहर का एजेंडा हो, तो उस एजेंडे का विरोध कहीं और से किया जा सकता है, परन्तु यदि पाठ्यपुस्तकों में ही बच्चों के दिमाग में झूठा जहर भरा जाएगा, तो क्या बच्चों के स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण हो पाएगा?
फक हिन्दुइज्म का नारा लगाते बच्चों के पीछे यही पाठ्यपुस्तकें तो नहीं?
हमने हाल ही के कुछ आन्दोलनों में देखा है कि मात्र 18-19 वर्ष के कई बच्चे हिन्दुओं के विरुद्ध नारा लगाते हैं, फक हिन्दुइज्म, या फिर हिंदुत्व मुर्दाबाद का नारा लगाते हैं या फिर सबसे नया मुनव्वर फारुकी के गोधरा काण्ड पर बनाए हुए असंवेदनशील चुटकुले पर हँसते हैं, तो हमें वह दोषी लगते हैं! परन्तु यदि आप उनके स्थान पर होंगे तो आप भी यही करेंगे क्योंकि आपको अधिकारिक रूप से असत्य पढ़ाया जा रहा है। बच्चों के मस्तिष्क में आधिकारिक सरकारी रूप से यह भरा जा रहा है कि गोधरा काण्ड एक दुर्घटना मात्र थी, और उसके परिणामस्वरूप हिन्दुओं ने मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा की, जो एक महीने तक चली!
अर्थात हिन्दुओं ने एक महीने तक मुसलमानों का कत्लेआम किया, तो बच्चा वही बात तो मानेगा जो उसे उसकी पाठ्यपुस्तक में पढ़ाई जा रही है! उसके लिए जानकारी और ज्ञान का स्रोत तो स्कूल है और स्कूल में जो वह पढ़ रहा है, वह हिन्दुओं के खिलाफ पढ़ रहा है। वह यह पढ़ रहा है कि हिन्दू इतने असहिष्णु होते हैं कि मात्र संदेह के आधार पर ही एक महीना तक मुसलमानों को काट सकते हैं, जबकि सत्य यह है कि गोधरा में रेल में आग लगवाई थी कांग्रेस के नेता ने!
यह आतंकवाद नहीं बल्कि जिहाद था!
यह आतंकवाद नहीं था, बल्कि जिहाद था। जो लोग जलकर मरे वह उसी जिहाद की आग में जलकर मरे थे, जो सदियों से चला आ रहा है! हिन्दुओं को मारने और काटने का नारा लगाया जा रहा था और इसमें पाठकों को याद होगा कि मुख्य आरोपी अभी 19 वर्ष उपरान्त फरवरी 2021 में पकड़ा गया था। रफीक हुसैन को पिछले वर्ष गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उस पर आरोप था कि ट्रेन के कंपार्टमेंट को जलाने के लिए पेट्रोल का बंदोबस्त करना, भीड़ को उकसाना और पूरी साजिश रचने में रफीक हुसैन का बड़ा हाथ था।

परन्तु फिर भी हमारे बच्चों के लिए पाठ्यक्रम में परिवर्तन नहीं किया गया।
इस जिहाद में कांग्रेस का नेता हाजी बिलाल शामिल था, उसे लादेन कहा जाता था। संदीप देव लिखते हैं कि “रिपोर्ट के अनुसार साबरमती एक्सप्रेस पर हमलावार स्थानीय मुसलमानों की भीड़ हिन्दुओं को मारो-काटो के साथ नादें ना दुश्मनों को मारो” का भी नारा लगा रही थी। यह लादेन तालिबान का सरगना न होकर हाजी बिलाल था।
इसी पुस्तक में पृष्ठ 38 पर लिखा है कि कैसे इस हमले में, इस जिहाद के कृत्य में बुजुर्ग मौलवी से लेकर नगर पार्षद, गेस्ट हाउस का मालिक, नेता, वेंडर, किशोर आदि शामिल थे। फायर ब्रिगेड के अधिकारियों ने भी कहा कि “जब हमें सूचना मिली कि साबरमती एक्सप्रेस जलाई गयी है, तो हम तुरंत आग पर काबू पाने के लिए चल पड़े, परन्तु सिग्नल फालिया के पास बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं और बच्चे दमकल गाड़ी के सामने लेट गए थे, जब तक कि ट्रेन पूरी तरह जल न जाए!” अर्थात इस जिहाद में बच्चे और महिलाऐं भी शामिल थे!
और हमारे बच्चों को सरकार क्या पढ़ा रही है कि
“अयोध्या से आ रही एक ट्रेन की बोगी कारसेवकों से भरी हुई थी और इसमें आग लग गयी। सत्तावन व्यक्ति इस आग में मर गए। यह संदेह करके कि बोगी में आग मुसलमानों ने लगाई होगी, अगले दिन गुजरात के कई भागों में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक जारी रहा।”
प्रश्न यही है कि आखिर यह झूठ क्यों पढ़ाया जा रहा है और क्या इस कारण ही हमारे बच्चे उस कत्लेआम को न जानकर जो हिन्दुओं के साथ हुआ, हिन्दुओं के कातिलों के साथ खड़े हैं।
इन बच्चों की दृष्टि में हिन्दुओं और नरेंद्र मोदी की छवि को कातिल ठहराने का दोषी कौन है? उनके दिमाग को एकदम वाश कर दिया गया है, और एक ऐसा जोम्बी बनाकर रख दिया है, जिसे न ही यह पता है कि हिन्दुओं के साथ क्या हुआ, क्या हो रहा है और क्या होगा, बल्कि वह उनलोगों के साथ खड़े होकर अपने ही धर्म के पीड़ितों की पीड़ा की हंसी उड़ा रहा है, और वामपंथियों के कुचक्र का शिकार बन रहा है!
फिर से प्रश्न यही है कि बच्चों को मानसिक जोम्बी बनाने का और वामपंथियों के खेमे में भेजने का दोषी कौन है? क्यों इस सरकार के आने के बाद भी यह झूठ बच्चों को पढ़ाया जा रहा है? कोई भी व्यक्ति यह दलील नहीं दे सकता है कि सरकार ने पुस्तकों को अपडेट नहीं किया है, कम से कम यह अध्याय अपडेट हुआ है क्योंकि इसमें 17वीं लोक सभा में विभिन्न दलों की स्थिति तक अपडेट है!

परन्तु उस झूठ को नहीं बदला गया? क्यों सरकार अपने ही युवाओं को उस दलदल में धकेल रही है, जहाँ पर वह जिहाद के खतरे को ही न पहचान सके?
बच्चों के साथ हुए इस मानसिक अत्याचार के विषय में आप सोचिये कि उन्हें एक ओर तो उस पूरे जिहादी पैटर्न के विषय में बताया नहीं जा रहा, हिन्दुओं के हर जीनोसाइड को उनके समक्ष एक क़ानून की समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और फिर यह भी उन्हीं से अपेक्षा की जाती है कि वह हिन्दुओं की पीड़ा को समझें! उनकी पीड़ा को कौन समझेगा? वह भी प्रश्न करेंगे कि आखिर वह खलनायक क्यों?
यह पुस्तक अभी भी एनसीईआरटी की वेबसाईट पर उपलब्ध है!
हालांकि सरकार ने कई वर्ष पहले अर्थात वर्ष 2018 में यह आश्वासन अवश्य दिया था कि शीघ्र ही इस अध्याय को बदला जाएगा, गोधरा के विषय में जो झूठ फैलाया जा रहा है, उसे हटाया जाएगा. परन्तु आज तक ऐसा नहीं हुआ है! इसी पर द वायर पर भी एक लेख लिखा था, जिसमें लिखा है कि “हैरत की बात यह है कि भाजपा के सत्ता में आए हुए चार से ज्यादा का समय होने के बाद भी सरकार की इस सामग्री पर नजर नहीं पड़ी”
यही बात आम लोग पूछते हैं कि 7 वर्ष से अधिक समय हो गया, अभी तक सरकार की नजर नहीं पड़ी?