श्वेता पुरोहित। एक सेठ और एक परमहंस जी रेल में जा रहे थे और वेदान्त की बातें कर रहे थे। एक स्टेशन पर एक बाबूजी ने अपना सूटकेस लाकर उस डिब्बे में रखा। उसने परमहंस और सेठ जी से कहा कि कृपा करके मेरे इस सूटकेस की आप निगरानी रखें, मैं अपना और सामान, बिस्तर आदि लेकर आता हूँ। गाड़ी छूट गयी और बाबू नहीं आये। दूसरे स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो सेठ ने गार्ड से कहा कि एक बाबू अपना सूटकेस रख कर गये थे, वे अभी तक आये नहीं, शायद पिछले स्टेशन पर रह गये हैं। आप इसे उनकी तलाश करके दे देवें। उस सूटकेस को खोलकर देखा गया तो उसमें एक स्त्री का शव रखा मिला। गार्ड ने पुलिस के द्वारा उस सेठ को पकड़वा लिया। महात्माजी ने बहुत कहा इस बेचारे का कोई दोष नहीं, परंतु पुलिस ने नहीं माना कि यह निर्दोष है।
सेठ ने परमहंसजी से कहा कि आप मेरे सम्बन्धियों, पुत्रों को यह सूचना दे दीजिये कि तुम्हारा पिता इस तरह फँस गया है। इधर पुलिस सेठ को जेल में बन्द करने के लिये ले गयी। महात्मा इससे बहुत व्यथित हुए। विचार करने लगे – ‘हे भगवान् ! तेरे यहाँ इतना अन्याय, इस बेचारे निर्दोष सेठ की यह दुर्गति ?’ यह विचार करते हुए उनको नींद आने लगी और वे चिन्ता में सो गये।
स्वप्न में उनके गुरुजी आये और कहने लगे- ‘तुम इसकी चिन्ता क्यों करते हो ? भगवान्के यहाँ अन्याय नहीं। उस सेठने १५ वर्षपूर्व ऐसा ही काण्ड किया था। उसीका फल अब उसको मिल रहा है। उसको तो फाँसी भी हो जायगी।’ জালা
महात्माजी की इतने में नींद टूट गयी और वे बहुत घबराये। यह मैं सपने में क्या देख रहा था ? उनके मनमें आया कि चलें पता लगायें। अगले स्टेशन पर उतरकर वापस लौटे। सेठ का पता लगाकर जेलमें पहुँच गये। उससे बात हुई। उसने महात्माजी को बतलाया कि मेरे पास एक आम का बाग था। उसमें चोर आकर आम तोड़ ले जाते थे। नौकर रोज-रोज आकर शिकायत करते। एक दिन मुझे गुस्सा आया और मैं रात्रिभर जागकर बाग में बैठा रहा। मैंने उसको पकड़ लिया और इतना मारा कि वह मर गया। मैंने डर से कि कोई देखने न पाये, वहीं गड्डा खोदकर लाश को गाड़ दिया और ऊपर घास-फूस रख दी।
यह सुनकर महात्माजी की आँखें खुल गयीं। उनका दृढ़ विश्वास हो गया कि पाप और पुण्य का फल ईश्वर कभी-न-कभी दे ही देता है।