हिंदू – मंदिर लुटवाते रहने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
हिंदू को गला कटाने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
इस्लामी-शासन को सहने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
हिंदू-बेटी के पैंतीस- टुकड़े , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
म्लेच्छ-यवन सर पर ढोने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
गुंडागर्दी सहते रहने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
दिशा-सुशांत के हत्यारों को , बचाने की क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
कतर-कुवैत से इतना डरने की ,आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
शाहीन – बाग़ होने देने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
रोड – जाम होने देने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
दंगाइयों से पुलिस मरवाते , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
चीन – पाक से डरते रहने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
भारीभरकम टैक्सों से लुटने की,आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
बात-बात पर रिश्वत देने की , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
भ्रष्टाचार बढ़ाया कितना ? आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
नौकरशाह बन गये हैं मालिक , आखिर क्या मजबूरी है ?
अच्छी सरकार जरूरी है ।
यदि अच्छी सरकार जरूरी है, तो हो घटिया नेता से दूरी ;
इकजुटजम्मू,इकजुटहिंदू,इकजुटभारत की सरकार जरूरी।
“जय हिंदू-राष्ट्र”,रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”