सारा कुमारी। प्रजातंत्र के तहत् सामान्य जन मानस के अंदर एक ऐसी छवि गढ़ी जाती हैं, कि ये व्यवस्था जनता द्वारा खुद बनाई गईं वयवस्था हैं। (For the people by the people) यदि हमें ये नेता पसंद नहीं तो हम चुनावो के माध्यम से दूसरा व्यक्ती चुन सकते है। जिससे हम खुश हैं उस कैंडिडेट को जीता सकते है। अंत में, यदि सही नेता का कोई option नहीं मिल रहा तो, स्वयं की पार्टी बना सकते है, खुद चुनाव लड़ सकते है। मतलब हर चीज़ की आजादी है। जनता के ओपिनियन का सम्मान हैं।
एक ऐसा भ्रम क्रिएट किया जाता हैं, की केवल प्रजातंत्र ही एक ऐसा सिस्टम हैं, जहां हर नागरिक को फ्रीडम मिलती हैं। लेकिन इन सब के पीछे ये बात छुपा ली जाती हैं, की राजनैतिक पार्टियां किस तरह से कर्रपशन करती हैं, चुनावों में कितना पैसा लगता हैं, किसी आम नागरिक के लिए चुनाव लड़ना, असंभव है। और suppose लड़ने के लिए मैदान में आ भी जाता है, तो बड़ी बड़ी पार्टियों के इतने बड़े नेटवर्क से उलझना आसान नहीं है।
उसके बाद उसको ब्यूरोक्रेट से काम निकलवाना होता हैं, जो सालों से बगैर चुनाव के अत्यधिक करप्ट लोगों का एक जाल हैं। जिनको जनता किसी भी तरह से बदल नही सकती हैं।
इसके बाद मिडिया भी सरकारी प्रोपोगंडा टूल की तरह काम करता है, जो भी व्यक्ति सरकार की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं, सरकार की हर बात में हां में हां नहीं मिलाते हैं, उसको नीचा दिखाने या देश का शत्रु दिखाने की चेष्टा करते है।
दरअसल स्टेट पॉवर एक ऐसी शक्ति है जो की समाज की कमियों को दूर नहीं करती बल्कि वो समाज में और ज्यादा विभेदीकरण करके, वैमन्स्य उत्पन्न करती है। समाज को डिवाइड करके खुद पावर में बने रहने को प्रजातंत्र का नाम दे दिया जाता हैं। सरकार कैसी भी हो लम्बे समय तक शासन करते करते वो निष्ठुर हो ही जाती हैं। और समान्य जनता से कट जाती हैं। अपनी मनमर्जी करने लगती हैं।
इसलिए देश में चाहें प्रजातंत्र व्यवस्था क्यों ना हो, एक समांतर व्यवस्था भी अवश्यम्भावी होनी चाहिए। जनता के हितों के लिए बनाई गई, एक ऐसी व्यवस्था जो अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए सरकार पर निर्भर ना हो। एक ऐसी व्यवस्था जो सत्ता के लिए संघर्ष ना कर रहीं हों। सरकार के घटकों के साथ ही, लेकिन अपने लोगों के लिए काम कर रही हो। हां उसकी आवाज़ इतनी सृर्दण हों, इतनी लाउड हो की, वो सरकार तक पहुंचे, क्योंकि आम नागरिक की बात तो इतनी ऊंचाई पर बैठी सरकारों तक नहीं पहुंच पाती हैं।
ये व्यवस्था आम नागरिकों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक शक्तियों को बढ़ाने की दिशा में, सरकार की मदद के बगैर ही काम करने का मादा रखती हों।
यदि हम हमारे देश मे ईसाई और मुस्लिम समाज की ओर देखेंगे तो वहां सरकार से इतर ऐसी समांतर व्यवस्था काम करती है, जो ना सिर्फ़ अपने समाज के लोगों के लिए काम करती है, उन्हे मार्गदर्शन देती हैं, वरन सरकारों पर दबाव बनाएं रखने के दायित्वों का निर्वहन भी करती हैं।
1989 में ईस्टर्न युरोप में क्रांति आने से पूर्व, कई वर्षो तक वहां के देशों ने कम्युनिस्ट सरकारों से मुक्ति पाने के लिए, आम जनता ने मिलकर, ऐसी ही समानांतर व्यवस्था खड़ी करी, क्योंकि सरकार और उसके बनाएं सिस्टम से लड़ना असंभव था। और फिर अलग अलग देशों में ऐसे ही संघर्ष से एक दिन उनको कम्युनिस्ट gov से छुटकारा मिला।
जब तक हिंदुओं की एक ऐसी समांतर व्यवस्था काम कर रही थीं, तब तक हिंदुओं का इतना बुरा हाल नहीं था। हिंदू भी अपनी बात कह सकते थे, ऊपर तक पहुंचा सकते थे। परंतु इस सरकार को उसकी शक्ति का पता था, इसलिए सत्ता में आने से पहले सरकार ने उस समानांतर व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
अब पुनः धीरे धीरे, अलग अलग फील्ड से लोगों को जोड़ कर फिर से ऐसी व्यवस्था खड़ी करनी होगी, परंतु ये स्पष्ट होना चाहिए की उनका सरकार या सरकार को बनाने में कोई दखलंदाजी ना हो, क्योंकि ऐसा होने पर, शनैः शनैः वो व्यवस्था भी करप्ट होने लगती हैं। वो पूर्ण रूप से सांस्कृतिक व्यवस्था हो जो हिंदुओं के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए भी कार्य करें।
अब भविष्य में चाहे देश में प्रजांतन्र की सरकार आए या, किसी और तरह की सरकार, हिंदुओं को एक बाद सदैव याद रखनी होगी की, सरकार के साथ साथ एक समानांतर व्यवस्था जरूर बना कर रखनी है, उसको खोने नहीं देना हैं।जो सरकार पर दबाव डालने का कार्य करें।आम आदमी की आवाज़ बने।
जय हिन्द जय भारत